"आज मेरी कविता पर 41 लाइक आये और ढाई कमेंट" - लाईवा चहक रहा था
"अबै, समझ थोड़ा, तू हर अड़ी-सड़ी कविता या भौंथरे गद्य के साथ अपने नँग - धड़ंग या कोई भी फोटो चैंप देगा तो 5000 में से 40 - 50 तो श्री श्री चमन बहार होते ही है ना और इनमें आधे से ज़्यादा तो वो है जो गुट निरपेक्ष के राष्ट्राध्यक्षों की तरह जो कही भी उठकर चल देते है, अपना लिखा बार-बार पढ़कर उजबक की तरह से फोन मत किया कर और लिंक मत भेजा कर, ब्लॉक कर दूँगा सड़ियल" - फोन काट दिया मैंने
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"देश की जनता और एकता ने पूछा है कि कलेक्टर साहब तुम्हारी औकात क्या है"
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एक किताब है पीयूष मिश्रा की "पीयूष मिश्रा तुम्हारी औकात क्या है" और दूसरा व्यवहारिक प्रश्न पूछा मप्र के शाजापुर जिले के कलेक्टर साहब ने ट्रक ड्राइवर से कि "ड्राइवर, तुम्हारी औकात क्या है"
पर ब्यूरोक्रेसी का यह नुमाइंदा यह भूल गया कि जब औकात ट्रम्प की नही रही, चर्चिल, कैनेडी, गोर्बाच्योव, पुतिन, नेतन्याहू, इमरान खान, भुट्टो की नही रही, लार्ड माउंटबेटन, नेहरू, इंदिरा - राजीव गांधी, वीपी सिंह, मोरारजी, जगजीवन राम, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी, या नरसिम्हाराव, शिवराज, भूपेश, अशोक गेहलोत या किसी तुर्रे ख़ाँ की नही रही लोकतंत्र में तो तुम किस खेत की मूली हो बाबू
जुम्मे - जुम्मे चार दिन हुए नही थे नये कानून पास हुए और दो जोकर्स को झुकना पड़ा , दुनिया के सबसे बड़े और फर्जी नेता को झुकना पड़ा, कार्पोरेट्स के गुलामों को झुकना पड़ा और उस शक्तिशाली सरकार को झुकना पड़ा - जो पूरे असंगठित ट्रांसपोर्ट सेक्टर को अडाणी जैसे सेठ और अपने आका को देने के पूरे मूड में थी ताकि सबके धन्धे पानी खत्म हो जाये
मैं हमेशा कहता हूँ कि "लबासना - मसूरी" में जब तक बम लगाकर उड़ाया नही जायेगा तब तक ब्यूरोक्रेसी के ये मुंहजोर अफ़सर सुधरेंगे नही, ये संस्थान पेम्परिंग करके युवाओं को बर्बाद कर देता है ; आप किसी भी रट्टा मारकर और जुगाड़ से पास होकर आये नायब तहसीलदार से या गांव की एकाध सरकारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या पटवारी या नर्स या हेण्डपम्प मैकेनिक से बात करके देखिये तो उसके पीछे जो राज्य सत्ता का गुरूर, अहम और दर्प दिखाई देगा - वह अप्रतिम होता है, तो कलेक्टर साहब की तो बात ही निराली है - कितने भी महत्वपूर्ण काम से आप जाये - ये बन्दा मिलता नही कभी और मिला भी किस्मत से तो कभी एक मिनिट से ज़्यादा बात नही करेगा, बैठने को तो शायद बाप को भी ना बोलता हो अपने
देश में लोकतंत्र के बाद 73, 74 वां सँविधान संशोधन लागू हो गया, पर इन ब्यूरोक्रेट्स की रीढ़ टेढ़ी की टेढ़ी रही, पूँछ सीधी नही हुई यह भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी, बात सिर्फ "शाजापुर कलेक्टर साहब" की नही - बल्कि इस पूरे वर्ग की है - जो 140 करोड़ की आबादी को मूर्ख नेताओं के पीछे से हांक रहा है - आलीशान बंगलों में रहकर और जनसुनवाई के नाटक करके ये लोग सिर्फ और सिर्फ ऐयाशी कर रहें है, दिमाग से प्लेन और पैदल ये लोग सिर्फ़ पेम्परिंग से पैदा हुए है,रट्टा मारके पास हुए ये लोग एक कल्पनालोक में जीते है - इसलिये ना किसी के लिये इनके मन में इज्जत है और ना सरोकार और बाकी तो देश के तीनों पायों से हम वाकिफ़ ही है, चौथा स्तम्भ परम पूज्य सरकार ने गोदी में बैठा ही रखा है - सुधीर, दीपक से लेकर रजत तक की अमृत बूंदें है हमारे पास और जितना सत्यानाश मीडिया का हो सकता था, हो ही गया है - अब तो भगवान भी सुधार नही सकता, एनजीओ सेक्टर तो खत्म कर ही दिया है कबाड़ियों ने
दुर्भाग्य है कि देश को आजाद हुए 77 वर्ष हो गए है और एक बार फिर गणतंत्र दिवस सामने है - रोता, कलपता और बिफरता गणतंत्र - और उसके ठीक चार दिन पहले लोक कल्याणकारी पंथ निरपेक्ष राज्य में सरकारी टैक्स के रुपयों से बने धर्म विशेष के मंदिर में प्रधान मंत्री प्राण - प्रतिष्ठा करने जा रहा है, पूरे देश की ऊर्जा और संसाधनों को इसमें झोंका जा रहा है - एक मुबारकबाद और प्यार की झप्पी तो बनती है सरकार बहादुर के लिये
इस पूरे मामले में तीन बिंदु ध्यान रखना है -
◆ जब कलेक्टर साहब ड्राइवर को औकात बता रहे थे ठीक उसी समय केंद्रीय गृह सचिव ड्राइवर संगठन से यह अधिनियम लागू ना करने की बात कर रहें थे, तो कलेक्टर साहब बड़े है या केंद्रीय गृह सचिव
◆ शाजापुर में बैठक कलेक्टर साहब ने बुलवाई थी ना कि ड्राइवर खुद होकर बात करने आये थे
◆ और सबसे महत्वपूर्ण बात कलेक्टर अपनी पोस्टिंग जिलों में चिरौरी करके और जुगाड़ अर्थात सेटिंग से लेते है ना कि उन्हें पोस्टिंग आम तौर पर दी जाती है - इस बात को गम्भीरता से वही समझ सकते है जिसने प्रशासन में काम किया है
बहरहाल, कलेक्टर साहब ने मुआफ़ी माँग ली यह सुना है, इस घटनाक्रम से किसकी औकात सामने आई यह समझ नही आया अभी तक
जनता ने और एकता ने पूछा है कि कलेक्टर साहब तुम्हारी औकात क्या है
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