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Showing posts from September, 2016

Malnutrition in Shyopur, Khalwa and MP Govt , IIT Indore Day 14 Sept 16 and other posts from 9 to 15 Sept 16

नई दुनिया की ख़बरें आज के दिन मैं कह रहा हूँ कई दिनों से आदिवासी हमारी प्राथमिकता नहीं है ना ही हम उन्हें विकास की धारा में देखते है। मप्र में पिछले 12 वर्षों में भाजपा सरकार ने जिस तरह से आदिवासियों के विकास का नाटक खेला है वह बेहद शर्मनाक है। अब जब दो मुख्य सचिव कह रहे है कि गाँवों में पानी, बिजली , सड़क नहीं है, खेती के साधन नही है, रोजगार नही, वन विभाग ने उन्हें जंगल से कुछ भी लेने से मना कर दिया है, एक कमरे में जानवरों के साथ नारकीय जीवन जी रहे है शिक्षा और स्वास्थ्य का तो  छोड़ ही दीजिये, मूल सुविधाएं नही पानी नहीं शौचालय नही तो आप क्या ख़ाक विकास कर रहे है। कांग्रेस ने तो इनका सत्यानाश किया ही, पर शिवराज सरकार ने सिर्फ इस्तेमाल किया और बर्बाद किया। आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते से लेकर तमाम भाजपाईयों ने आदिवासियों को जीते जी मार डाला। मप्र आदिवासी बहुल राज्य है , रोज बच्चे मर रहे है, लोग आजीविका के अभाव में पलायन पर जाने को मजबूर है, सारे ढाँचे चरमरा गए है पर बेशर्म सरकार को उद्योगपतियों की चाटुकारिता, सिंहस्थ में साधू सन्यासियों की पूजा अर्चना और भोपाल में संप्रदाय विशेष

Posts of 7 to 9 Sept 16

Teji Grover  हिंदी की वरिष्ठ कवियत्री है और बहुत संवेदनशील भी। प्रेमचंद सृजन पीठ उज्जैन पर रहते हमने देवास में उनके रचना पाठ किये है। हाल ही में हिंदी कविता में छद्म बनाम असली कविता की एक बहस छिड़ी है जिसमे अविनाश मिश्र जैसे तथाकथित कुआलोचक ने बहुत गन्दगी Umber R. Pande को लेकर फैलाई और tota bala thakur के खिलाफ भी लिखा। ऐसे में तेजी का यह आलेख पठनीय है कि किस तरह से हिंदी कविता को देखने समझने की जरूरत है। वरिष्ठ कवि और आलोचक   Archana Verma   जी ने भी तोता ठकुराइन के नाम का उपयोग करते हुए कविताएं पढ़ी और यदा कदा टिप्पणियां की है। बहरहाल तेजी का यह आलेख आपके हवाले मित्रों।   ************ आप सब मित्र मुझे क्षमा करेंगे, कि मैं इतनी हड़बड़ी में यह मेल लिख रही हूँ. सिवा इसके कोई चारा नहीं. जीवन इन दिनों इतना कठिन और विकट चल रहा है कि जितना धैर्य और सौम्यता मेरे हिस्से में आई है, उसका भरपूर उपयोग अपने आप हो रहा है. खैर, आज के दिन सिर्फ इतना, कि पिछले कई दिनों से तोता बाला की कविताओं को बीच बीच में पढ़ रही हूँ. उनकी identity का रहस्य कोई भी हो, उससे कविता को कोई फर्क नहीं पड़ता. (

तोताबाला ठाकुर की कविताएँ

हिंदी में कविता पर कम कवि, उसके खेमे, माई बाप पर ज्यादा विवाद होते है। कई लोगों की जान पर बन आई है। द्रोपदी और तोता बाला ने जबसे कविताएं लिखकर सारी पुरुष सत्ता को लगभग चुनौती देते हुए निजी क्षणों को उघाड़ा और प्रेम, हत्या और तमाम मिथक या बिम्बों का प्रयोग करते हुए हकीकत सामने रखी तो ऊह आह, और आउच होने लगा। इधर कवियत्रियों ने भी संगठित होकर घोषणा कर दी कि यह महिला के भेष में पुरुष वर्चस्व है और उनकी दुकानदारी पर अतिक्रमण। बहरहाल, पढ़िए सिर्फ कविता और बहस कीजिये - तर्क के आधार पर । याद रहें किसी की निजता में झांकना बेहद गंदे दिमाग का पर्याय है। तोताबाला ठाकुर की कविताएँ - १ आओ अगली ट्रेन पकड़के जितनी जल्दी हो सके चले आओ   कीचड़ में लथपथ चढ़ी गंगा तैर   मेघों पर पाँव रख रख कर आ जाओ आ जाओ देवदास की तरह   मैंने खोल रखे है द्वार   मैंने दे रखा है अपने स्वामी को विष तुम आओ निडर   भूलना मत लाना बेल का फल   और संखिए की पुड़िया। २ सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय व्योमकेश बक्शी की भाँति तुम तो   भटकते रहे पूर