फिर जाने के लिए लौट आना ही एक दुष्चक्र है
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सत्ता में आते ही समान नागरिक संहिता लागू कर दी होती तो ये मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की इतनी हिम्मत ना बढ़ती महिलाओं को बेइज्जत करने की पर महबूबा के साथ सरकार भी बनानी है, शाहनवाज खां को भी खुश रखना है, यूपी बिहार में चुनाव भी जीतना है, 370 पर भी चुप रहना है - तो करते रहिए प्रलाप, क्यों सुनेगा कोई आपकी । जाकिर नाइक हो, दाऊद हो या ये पर्सनल बोर्ड ये सब आपको आईना दिखाते रहेंगे।कल ईसाई उठेंगे और परसों पारसी या सिख या कि जैन !!!
जियो महाराज मेहर तो आयेगा 2019 में जब जनता कहेगी तड़ाक, तड़ाक और तड़ाक !
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'मुझे मालूम है मै जो कुछ कहूँगा, वह बहुत नीरस और निरर्थक है। बहुत से शब्द हैं और मैं अक्सर बोलते हुए गलत शब्दों को चुन लेता हूँ और फिर मुझे बुरा लगता है, और फिर ज़िद बंध जाती है, और मैं विषय से भटक जाता हूँ, लेकिन तब चुप रहने का अवसर चूक जाता है, और जब अंत में बोलकर चुप हो जाता हूँ, तो मुझे लगता है कि मुझे शुरू में ही चुप रहना था'
तुम्हे और उस सबको याद करते हुए जो कभी घटित हुआ ही नही
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ये एक उदास शाम है और दूर कही आसमान झुक रहा है, सड़कें सूनी हो गयी है, पक्षियों का कलरव चरम पर है, पेड़ों से आलोक का झिरना मद्धम हो गया है, झोपड़ों से धुआँ उठ रहा है और मुझे लगता है कि इस बेला में मैं फिर कभी नही लौटूंगा। यह अनिर्वचनीय मौन जो अब स्थायी भाव की तरह से जीवन में आकर समा गया है - हमेशा के लिए, तो अब कहाँ , क्या , कैसे का कोई अर्थ बचा है ? बहुत दूर हूँ और अब इन आँखों के सामने ये दृश्य बने रहें बस !!!
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सत्तर साल में आजाद भारत से रिलायंस भारत बनने की मुबारकबाद। कल यहां संघ के एक व्यक्ति ने बहुत दुखी होकर कहा कि मोदी जी ने सत्तर अस्सी साल की मेहनत पर पानी फेर दिया, धीरू भाई को कांग्रेस ने और उनके बेटो को मोदीजी ने प्रमोट कर देश बेच दिया।
सही पीड़ा है, यह शर्मनाक है कहने के लिए भी कुछ नही बचा, जब एक जन प्रतिनिधि किसी मुनाफाखोर के लिए मोबाइल की सिम बेचने मैदान में आ जाए, तो आप क्या उम्मीद करेंगे। डिजिटल इंडिया का स्वप्न यहां आकर पूरा होता है। यह ध्यान रखिए कि ताजा आंकड़ों के अनुसार अपराध साइबर के स्तर पर ज्यादा है, धोखाधड़ी से लेकर अश्लील सन्देश तक और ऐसे में आप युवाओं को रोजगार देने के बजाय समय गंवाने और उकसाने के हथियार दे रहे हो। गैस चोरी के रूपये वसूलने के बजाय उस कम्पनी के फ्री प्रोडक्ट को लांच कर रहे हो, जब एक मुनाफाखोर आपकी पीठ कंधे पर हाथ रखें उसकी बीबी आपके ट्वीटर हैंडल करें तो हम क्या उम्मीद करें आप जैसे लोगों से मोदी जी।
मजेदार यह है कि तमाम बुढापे, कठपुतली बनने के बाद नरसिम्हाराव, मनमोहन, अटल बिहारी, में इतनी नैतिकता और ईमानदारी थी कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से ये कुकृत्य नही किया और आप तो 62 में ही इतने खुले रूप में सामने आ गए कि पूरा देश ताली बजा रहा है, आईये जॉकी, और मूड्स, कामसूत्र से लेकर पिज़्ज़ा बर्गर और केंटुकी चिकन फ्राय की दुनिया में स्वागत है। उस माँ का तो सोच लेते जो सफ़ेद खादी की सूती साड़ी में बैठी आपको दुलारती है यदि आपको उसमें भी भारत माता नजर नही आती तो नीता अंबानी का दोष नही !
मित्रों बात सिर्फ एक टुच्चे होते जा रहे प्रधान मंत्री की नही वरन् देश की और बाजार की है जो हमारी सारी विरासत को लील कर हमारे घर से लेकर सत्ता को हथिया गया है और अगर यही हाल रहा तो आप सोच लीजिये आपके आज का क्या होगा, भूलिए कल को और भविष्य को। ये सिर्फ मोदी को टारगेट करके बात नही चलेगी, मोदी जैसे ताकतवर उभरते सत्ता के केंद्र को जो अम्बानी अपनी दो कौड़ी की फ्री सिम बंटवाने के लिए पूरी दुनिया के सामने बाजार में खड़ा कर दें कल वह आपके घर में घुसके क्या कर लेगा आप कल्पना कर सकते है, वह हिलेरी या ट्रम्प का मुजरा आपके दालान में करवा देगा अपनी रिलायंस की चड्डी बिकवा देगा।
सोचिये क्या इसी सब के लिए आपने भ्रष्ट कांग्रेस को हटाकर इन्हें वोट दिया था, क्या ये वे लोग है जो कश्मीर या 370 पर बात करने लायक भी है, क्या ये उस संस्कृति के संवर्धक है जो कहती है असतो मा सदगमय ! क्या ये वही है जो एक अम्बानी को देश बेचकर जग सिरमौर बनाने की काबिलियत रखते है।
मुझे गुस्सा नही तरस आता है आडवाणी, मुरली मनोहर, गोविंदाचार्य, उमा, जावड़ेकर, गडकरी, सुषमा, वेंकैया, जेटली से लेकर मोहन भागवत को इतने मजबूर हो गए है कि दो गुजराती व्यापारियों जो देश सौंपने के बाद अपनी जुबान खोलना तो दूर सही गलत समझने की शक्ति भी खो चुके है, ये वो मानसिक रोगी है जो अब चुपचाप बिस्तर में पड़े टट्टी पेशाब कर रहे है और टुकुर टुकुर देख रहे है वरना क्या बात है कि संघ के तगड़े बौद्धिक घूँट पीकर आये ये सब देश, संस्कृति और आत्म सम्मान भूल गये।
शुक्र है कि फेसबुक या दीगर साइट्स है जहां हम इन दो ठगों को इनकी औकात दिखा सकते है पर दुर्भाग्य यह है कि भक्तो को अभी भी समझ नही आ रहा। अमित शाह और नरेंद्र मोदी इस दशा में देश के सबसे अहितकारी व्यक्ति है यह कहने समझने में कोई गुरेज़ नही होना चाहिए।
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यह बरसात और ठण्ड के बीच की धूप है जो श्राद्ध पक्ष में जी उठी अपने परायों की द्रवित और प्यासी प्रेतात्माओं को लेकर आई है और जब ये धूप अपने साथ जाड़े के माह में मावठा और ओंस लेकर आएंगी तो मैं तुमसे मिलने आऊंगा - तब तक तुम मेरा उस खिड़की पर, मुंडेर और छज्जे पर नहीं, चूल्हे की उस चिमनी से उठते हलके होते जा रहे धुएँ में इंतज़ार करना जो मिट्टी के कवेलू को पार करके एक आसमान को खोल कर तुम्हारी ओर किसी गेंदे के फूल की तरह उछाल देता था, क्योकि वही से एक लपट के रूप में धधकूंगा और फिर भड़क कर पल भर में शांत हो जाऊंगा।
सुन रहे हो ना, जहां भी हो तुम, यह सिर्फ तुम्हारे लिए है।
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विकास
आदिवासी
मुख्यधारा
बाजार
भूमंडलीकरण
स्त्री, बच्चे और शोषण
सत्ता, समाज और स्वामित्व
सहरिया, बेगा, गौंड, कोरकू, भील - भिलाला, मवासी सब इस दमन के पहिए में व्यथित है और हम आजादी के सत्तर साल बाद भी हाँफते हुए पूछते है कि असली हिंदुस्तान किसका है , क्यों है और ये रोटी के पहले डिश गाँव में क्यों पहुँचती है, संडास के पहले कुरकुरे क्यों आ जाते है बिकने, राशन के पहले माणिक चंद और रजनीगन्धा क्यों पहुँच जाते है ?
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए !!!
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आईये भाषा को दुरूह करें, बचपन की स्मृतियों, परिवार की गरीबी, रिश्तों और दोस्ती की अमीरी और अब बदलते समय में ग्लोबल समय को कोसते हुए उस सबको कठिनतम भाषा में लिखकर महान और चर्चित बनने की भीड़ में शामिल हो, क्या आप तैयार है इस अनुष्ठान के लिए ?
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