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Showing posts from November, 2018

Posts of 27, 28 and 29 Nov

सब्जी भाजी, लहसून प्याज़, आलू से लेकर छोटे कारीगरों की बनाई चीजों के भाव करना बंद कीजिए , घर के सामने से ठेले पर माल बेचने वालों, फेरी लेकर गुजरने वालों से भाव करके उन पर इमोशनल अत्याचार कर खरीदना बन्द कीजिये - फल हो या सब्जी वे बड़ी मुश्किल से हिम्मत करके गांव की कांकड़ छोड़, अपना घर और बच्चों को घर में अकेला छोड़ आप जंगली जानवरों और सीमेंट कांक्रीट के भयावह जंगल में अपना माल बेचने आएं है उनसे खरीदिये - इतना तो कर सकते हो ना पढ़ें लिखें शरीफजादों एहसान होगा आपका इतना ही - ज्यादा चतुर सुजान हो तो अपने हिस्से के दाल चावल, गेंहूँ मक्का और सब्जी फल उगा लो अपने मकान और फ्लैट में ***** संघ तो सांस्कृतिक संगठन है, फिर किसान आंदोलन में क्यों नही आज भी कल से किसान आंदोलन में खाना बांटते दिखा नही क्यों अब समझ आया कि इनकी कार्यवाही, मानसिकता और कार्यप्रणाली किसके इशारों पर चलती है जो देश की आजादी में शामिल नही थे वो किसानों के क्या होंगे किसान भाई बहनों - बन्द करो इनके टुकड़े तोड़ू लोगों को मुफ्त का भोजन परोसना गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का आभार जो नर्मदा आंदोलन से लेकर भूकम्प पी

Posts of 26 and 27 Nov 2018

देवास के सामंती अंधे और दिमाग़ से पैदल भक्त को अभी रास्ता दिखाया - बेवकूफ मेसेज बॉक्स में आकर बदतमीजी करने लगा , खिसियाये हुए ये उजबक और बेवकूफ अब ज्यादा सिर चढ़ रहें है -जब हिसाब मांगा जा रहा है और इनकी गले मे बजी घण्टी बज रही है जूते मारो और भगाओ कमीनों को, साले दारू पीकर बर्बाद हो गए, गुलाम कही के , खाने को रुपया नही, घर की औरतें पापड़ बड़ी बेचकर दारू बीड़ी के पैसे जुगाड़ रही है और ये मुस्टंडे सुधर नही रहें महाराजाओ वाली अकड़, जागीरदारों के नखरे जारी रखें है, साले दो कौड़ी के गु लाम सायकिल पर पैडल मार रहें है और दिमाग़ से बाग बगीचे और महल जा नही रहें , घर में हगने को संडास नही और मुगल गार्डन में मॉर्निंग वॉक के सपने देख रहें ससुर सारी सम्पत्ति दारू में बर्बाद हो गई, टपरी खोलकर बैठे है आईसक्रीम से लेकर किराने की और अपने आपको किसी मरे खपे पृथ्वी सम्राट के वंशज कहते है घटिया साले, मुंह की बदबू ही कुल्ला करके हटा लें तो जीवन धन्य हो जाएं इनका; अब सोच लिया ज्यादा तीन - पांच किया तो धक्के मारकर गाली देकर चलता करो , साले फर्जी अंग्रेजी स्कूल से पढ़कर आये - तर्क है नही और बकर देख लो इनकी

Sharmila Erome, Amit Shah's Confidence and Book Purchase - Posts of 24 Nov 2018

मणिपुर में अप्सा हट गया क्या महिलाओं के नग्न प्रदर्शन से लेकर 12 साल की भूख, हड़ताल और अनशन की क्रांति का सिला शादी के बाद सिमट गया, ये है कहाँ क्रांति की जनक आजकल पिछले हफ्ते विस्तारा, बेंगलोर में ये जोड़ी देखी थी सही है कि सबको अपनी जिंदगी जीने के हक़ है पर अगर आप सामाजिक क्षेत्र को हथियार बनाकर अपना ध्येय साध रहें हैं, कामरेडों का लाल गमछा ओढ़ या संघियों का भगवा चोला पहनकर सैंकड़ो एकड़ जमीन दबाकर निजी शिक्षा को बढ़ावा देते हुए विश्व विद्यालय खोल रहें है या उद्योग तो आपमे और किसी हरामखोर में फर्क नही है बहुत से नाटक देखकर अब मन उचट गया है , अब कोई कहता है कि हम ये कर रहें है फलाना ढिमका तो लगता है गुरु फालतू की बकर मत कर सीधे बता कि दो तीन साल बाद क्या हथियाना है जमीन, रुपया, कोई फेलोशिप, अख़बार, एनजीओ, अंतरराष्ट्रीय यात्रा, किताब लेखन के लिए बड़ा अनुदान, किसी यू एन में पीठ, पद या नोबल पुरस्कार ***** पुस्तक मेले से किताबें खरीदते समय हम किताब, कहानी, कविता नही लेखक से बने सम्बन्ध या बनाने के लिए कृत्रिम मुस्कुराहट खरीदते है कई बार प्रकाशक की दोस्ती भी नजर बेधती है तो लाज श

Posts of 20, 21 Nov 2018

ये गोरमेंट बिकी हुई थी तभी चुनी गई 31 % लोगों द्वारा जम्मू कश्मीर में विधानसभा भंग, महबूबा से नाता तोड़ घटियापन चरम पर - स्वस्थ राजनीति का एक और चरम स्तर से अविकसित फ़ैसला और दूर दृष्टि का अभाव दिखा, ये देश चलाना तो दूर चाय की टपरी नही चला सकते और चायवाला बनकर देश बर्बाद कर दिया , लोकतंत्र को गिरवी रख दिया - कितना और गिरेंगे ये लोग कुछ नही, हड़बड़ा गए है बुरी तरह - अब जब 2019 सामने दिख रहा है तो कुछ समझ नही आ रहा कि क्या करे और क्या जवाब दें , भाषण में मुख मुद्राएं देखिये, भाषण  सुनिए - सिवाय झूठ , गलत तथ्यों और घटिया किस्म के मसखरों की भांति एक्टिंग के अलावा कुछ है और लिख लीजिए ना शिवराज, ना रमण, ना वसुंधरा जीतेंगे - ये ही हराएंगे अपने प्रतिद्वन्दियों को बुरी तरह , विदुषी सुषमा जी ने आज मना कर दिया कि वो चुनाव नही लड़ेंगी यह पूरी नैतिक जिम्मेदारी से उन्होंने कह दिया, सुमित्रा महाजन भी बाहर मानिए और मुरली मनोहर से लेकर आडवाणी पहले ही बाहर है, मुंडे से लेकर अटल जी है ही नही अब , बचे जेटली - गडकरी टाईप लोग जिनकी रीढ़ की हड्डी ही नही और विशुद्ध बनिया बुद्धि है तो इन्हें साफ करना कौन

मोहल्ला अस्सी 19 Nov 2018 and other posts

इस चुनावी संग्राम के समय में "मोहल्ला अस्सी" फ़िल्म का प्रदर्शन असली राजनीति है बै भो.... आने वाले समय में नही बल्कि आज ही भारत सोच कम रहा है और बोल ज्यादा रहा है - बाकी सब बकैतों को छोड़ दो मैं भी शामिल हूँ इसमें पाड़े की पीड़ा हम सबकी है पर हमें भी रुपया चाहिए आदर्शों और चूतियापे से पेट नही भरता हम सब बार्बर बाबा बनना चाहते है - रोग खरीदकर योग भोग बेच रहे है पर हम बार्बर बनने के चक्कर में भयानक बर्बर बन गए हैं हम काली चमड़ी वालों को गोरी चमड़ी का अपराध बोध आज भी सालता है और इस अवसाद में हम कितने गहरे जा चुके है यह हम समझना भी नही चाहते मन्दिर - मस्जिद, चर्च कोई मुद्दा ना कभी था ना होगा, जब भी लोकसभा या विधानसभाएं प्रसव पीड़ा में होगी नाजायज औलादें पैदा होकर तांडव करेंगी गालियां भाषा, समाज और संस्कृति का हिस्सा नही - जरूरी अंग है , जो लोग शुचिता और तहजीब की बात करते है वे घोर अशालीन और अतार्किक है और घटियापन के शिखर पर बैठे है और भाषा के जानी दुश्मन है मोहल्ला अस्सी बनारस ही नही - हर शहर, घर और हर व्यक्ति की कहानी है जो पर्दे पर दिखती है तो हम जो ठहाका लगाते है - व

Posts of 14 to 15 Nov 2018

कुछ कवि जब चूक जाते है और सिवाय घटिया राजनीति के और कविता के बरक्स अपनी जाहिल बुद्धि दर्शाते हैं तो रेखांकित करने के ठेके लेते है चापलूसी इनकी फीस होती है, ये वो मठाधीश होते है जो बुरी तरह से अपराध बोध में घिरे होते है और सबसे रिश्ते निभाकर अच्छा बनने की जुगाड़ में रहते है ये हक मिलता नही ,जबरिया विद्वता झाड़कर या घुसकर हासिल कर लिया जाता है विद्वता की नाकाम कोशिश करते हुए और मज़ेदार यह कि ज्यादातर ठेकेदार अपने पद, रुतबे और कच्चे पक्के सम्बन्धों से अतिक्रमण कर बरसों बरसों कुण् डली मारकर बैठे रहते हैं पत्रिका और अखबारों में - जबकि कविता को खुद बोलना चाहिए या बोलती ही हैं - उसे किसी घसियारे की लम्बी रेखांकित टिप्पणी की कतई जरूरत नही होती - नही जी , हम तो उपकृत करेंगें उन्हें जो चरण पकड़कर बैठे है हमारे और कुछ कवि जो रेखांकित हो जाते है वे अपने आप को नोबल विजेता मानकर शेष जिंदगी बीता देते है , इस गुरुर में कि वे अब महान है और अपने कविता के विद्यालय चालू कर बाकायदा गंडाबद्ध शिष्य बनाकर कवितालय चालू कर देते है और एक जमात कुछ भी कच्चा पक्का लिखकर पहुंच जाती है जंचवाने इस सबमे पत्रिका

Posts of 11 and 12 Nov 2018

Vihag Vaibhav  ने अपनी इस कविता के माध्यम से बहुत वाजिब प्रश्न उठाये है बहुत वाजिब सवाल है इस हिंदी के धूर्त संसार से पिछले दिनों मैंने यही सब बहुत तार्किक ढंग से पूछा था तो एक वाट्स ग्रुप के तथाकथित तीन प्रशासकों ने ग्रुप में स्क्रीन शॉट लगाकर हटा दिया मानो वे गंवार कोई कलेक्टर हो दो कौड़ी की बहस, ठिठोली और महिलाओं के बीच विशुद्ध ठिलवई करने वाले हिंदी के ये कवि कितने पतित है यह समझ आया और दिल्ली की एक घटिया औरत और चापलूस महिला कवि ने मुझे अनफ्रेंड भी कर दिया दुख यही है कि हिंदी का कवि, कहानीकार सरकारी नौकरी करते हुए कम्युनिस्ट बनता है, इस समय जब बोलने की जरूरत है तो प्रेम कविताएं लिख रहा है , एक वरिष्ठ कवि फिल्मों और लाइक्स कमेंट्स मिलने वाली चलताऊ पोस्ट्स लिखता है और वही सम्भ्रान्त किस्म की औरतें जो कवि नही, बस हाई सोसाइटी की तितलियाँ है, कमेंट करती है और यह लाइक्स गिनता हैं, एक काला कलूटा और बदबूदार कवि अपने थोबड़े को सुंदर बनाकर बेवकूफ बनाता है ( रंग भेदी नही पर असली सूरत को गोरा चिकना बनाकर यहां चैंपने की जरूरत हिंदी के कवि को क्या और क्यों, कबसे है, इतने ब्यूटी क

Posts of Diwali, Sharwil and 8 to 10 Nov 2018

वोट क्या क्या नही करवाते है दीवाली की मिठाई और देवास विधायक देवास को सामंतवाद से अब मुक्ति नही मिली तो यह शहर गुलाम ही रहेगा और यहां के लोग गुलामी में ही मर जायेंगे जो महल कभी जनता के बीच नही गया, जिसमे कोई आम आदमी अपनी समस्या के लिए जा नही सकता, जिसने ई एम फास्टर जैसे ख्यात साहित्यकार के सागर महल को संरक्षित करने के बजाय नेस्तनाबूद कर दिया वह जन की ओर अब उन्मुख है, मराठा आन बान की हेकड़ी ने 1992 से राज कर छुट भैया नेताओं, दलालों को पालकर जनता का जीना दूभर कर रहा हैं उस महल को अब इस मौसम में देवास की बस्तियों में दीवाली बनाम वोट नजर आ रहें है, कितने झोपड़ी वालों को मकान दिलवाया या महीने का राशन भी दिलवाया यह बता दें कोई शहर के स्कूल, आंगनवाड़ी, अस्पताल से लेकर नगर निगम या जिला पंचायत को ही कोई देख लें , जिस प्रमिला राजे होस्टल में बच्चे रहकर पढ़ाई करते थे उसे भी होटल बना दिया - एक जगह नही - गंदगी, ट्राफिक और आधार भुत ढाँचे भी नही है, एक बड़ी पानी की टँकी या संस्कृति के नाम पर भवन भी नही, चोर उचक्कों ने शहर पर कब्जा किया हुआ है और ना बसें ना ट्रांसपोर्ट के साधन, रोते झिकते सीटी बस