वोट क्या क्या नही करवाते है
दीवाली की मिठाई और देवास विधायक
देवास को सामंतवाद से अब मुक्ति नही मिली तो यह शहर गुलाम ही रहेगा और यहां के लोग गुलामी में ही मर जायेंगे
जो महल कभी जनता के बीच नही गया, जिसमे कोई आम आदमी अपनी समस्या के लिए जा नही सकता, जिसने ई एम फास्टर जैसे ख्यात साहित्यकार के सागर महल को संरक्षित करने के बजाय नेस्तनाबूद कर दिया वह जन की ओर अब उन्मुख है, मराठा आन बान की हेकड़ी ने 1992 से राज कर छुट भैया नेताओं, दलालों को पालकर जनता का जीना दूभर कर रहा हैं उस महल को अब इस मौसम में देवास की बस्तियों में दीवाली बनाम वोट नजर आ रहें है, कितने झोपड़ी वालों को मकान दिलवाया या महीने का राशन भी दिलवाया यह बता दें कोई
शहर के स्कूल, आंगनवाड़ी, अस्पताल से लेकर नगर निगम या जिला पंचायत को ही कोई देख लें , जिस प्रमिला राजे होस्टल में बच्चे रहकर पढ़ाई करते थे उसे भी होटल बना दिया - एक जगह नही - गंदगी, ट्राफिक और आधार भुत ढाँचे भी नही है, एक बड़ी पानी की टँकी या संस्कृति के नाम पर भवन भी नही, चोर उचक्कों ने शहर पर कब्जा किया हुआ है और ना बसें ना ट्रांसपोर्ट के साधन, रोते झिकते सीटी बस चालू हुई तो उसका कोई माँ बाप नही, उद्योग धन्धे बन्द पड़े और बेरोजगारी का आलम यह कि हर तीसरा आदमी ठुल्ला है शहर में
सारा शहर सीवेज के नाम पर खुदा पड़ा है और कोई जिम्मेदार नही बताने वाला कि कब ठीक होगा, सांसद भी विधायक बन रहे है अपने इलाके में जाकर इससे ज़्यादा भाजपा की दुर्गति क्या होगी यह समझना मुश्किल नही है , मजेदार यह है कि ठेकेदार, कमिश्नर और सीटी इंजीनियर भी अपना हिस्सा लेकर भाग गए और नगर निगम कुछ ना कर सका, नर्मदा के पानी के नाम पर बरसों से इंदौर से पानी खरीद रहा है जनता के रुपयों की बर्बादी ऊपर से शिवराज क्षिप्रा नर्मदा लिंक के नाम पर एक गढ्ढे में नर्मदा का पाइप छोड़ गए जिसे जनता ढो रही है, ऐसे पढ़े लिखें गंवार और गुलाम देखे हैं जो गढ्ढे में लाकर पाइप छोड़ने को नदी जोड़ो या लिंक परियोजना मानकर पूजा करें जन प्रतिनिधियों की
किसी को भी वोट दें पर सामंतवाद को परास्त करें , जनता को जनप्रतिनिधि चाहिए महलों में रहने वाले लोग नही जिन्हें दर्द का ना एहसास है ना सरोकार
*****
क्या उखाड़ लिया पुलिस, प्रशासन और सुप्रीम कोर्ट ने
जब हमारे रोल मॉडल्स ही शबरीमाला के बहाने से जनता को कोर्ट को गाली देने, अवज्ञा के लिए उकसाएंगें तो जनता किसकी परवाह करेगी, हमारे जागरूक वकील यह कहेंगें कि रात 10 से 12 तक पटाखें हम छोड़ेंगे कर लें जिनको जो करना है तो फिर हम किससे उम्मीद करेंगें
मानें या ना मानें हम पिछले 4 सालों में जितने उज्जड, बदतमीज, निरंकुश और उद्दंड हुए है उतने इतिहास में कभी नही थे, इस सबमे सबसे ज़्यादा नुकसान और कानून का मखौल वकीलों ने उड़ाया है और मुझे शर्म आती है ऐसे वकीलों पर , सिवाय धिक्कार के कुछ कह नही सकता जो पंथ निरपेक्ष संविधान के दायरे में काम करने के लिए सनद लेते है
खेद है कि हमने राष्ट्रीय चरित्र खो दिया है और आज इस समय इस बात की पुष्टि हो गई कि हम ना न्याय में यकीन करते है , ना अनुशासन में और ना किसी बन्धन में और यह सुनियोजित षड्यंत्र है जिस तरह से ऐन चुनावों के बखत मन्दिर विवाद में नेता लोग घोषणा कर रहें है उसका पूरे देश मे कुछ बड़ा भयानक करने का यह पूर्वाभ्यास है
सनद रहे कि कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को नरसिम्हाराव के साथ वादा किया था कि उनकी सरकार विवादित ढाँचे की रक्षा करेगी और वह टूट गया, योगी के साथ संघ और भाजपा के नेताओं ने कहा है कि दीवाली के बाद मन्दिर निर्माण चालू होगा और यदि ऐसे में सुप्रीम कोर्ट कुछ कहती है तो उसका उल्लंघन कैसे होगा इसकी बानगी मुझसे नही अपने आसपास देखिये, सुनिए और आते हुए ख़तरे की पदचाप को महसूस करिये जनाब
दीवाली इस समय सिर्फ अयोध्या में नही पूरे देश ने भव्य तरीकों से मनाई जा रही है
*****
दोस्ती की दीवानगी सच मे पागल बनाती है
और बरसों इसी पागलपन में निकल भी जाते है
और बरसों इसी पागलपन में निकल भी जाते है
यही वो पागलपन है जो रिश्तों के कोमल तंतुओं को जोड़े रखता है, हम जिंदा है तब भी और मरने के बाद भी
पवन, चेतना बहुत छोटे थे और हम युवा होते समझ बना रहे थे, खूब खेल, गतिविधियां और सीखना सिखाना बस 1987 से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक बना हुआ है जबकि दुनिया में इतना बदलाव आ गया है कि चेतना और पवन की शादी हो गई है और गंगा से लेकर टेम्स और दुनिया की नदियों से तमाम पानी बह चुका है, नियाग्रा फाल का और फाल हो गया है - इधर ट्रम्प और उधर भी ट्रम्प बिराज गए है
चेतना अपने पति मनीष के साथ केंद्रीय विद्यालय संगठन में क्रमशः विज्ञान और गणित के पीजीटी है इंदौर में और पवन अपनी वैज्ञानिक पत्नी फाल्गुनी के साथ नासा अमेरिका में वरिष्ठ वैज्ञानिक है
दोनो के दो - दो बड़े प्यारे बच्चें है , पवन और फाल्गुनी जब भारत आते है तो हम सब मिलते है और खूब गप्प करते है अबकी बार देवास नही आये तो हम लोग इंदौर में मिलें , बहुत कम समय मे बहुत ही कम समय मिला तो फिर क्या था - खूब गप्प और गप्प, निंदा -पुराण, शिक्षा, विज्ञान, स्वास्थ्य, राजनीति और अर्थ व्यवस्थाओं का विश्लेषण और लब्बो लुबाब यह कि दोनों देशों में जो शिक्षा , स्वास्थ्य, बेरोजगारी और मानव विकास सूचकांकों में तेजी से ह्रास हुआ है - वह चिन्तनीय है और घातक भी
छाया , जो अमेरिका में है, को सोते में से उठाया कि हम तेरी निंदा कर रहे तो उसका बुखार गायब हो गया फट से और वह भी ठेठ अमेरिकन लहज़ा छोड़कर मालवी तड़के पर आ गई और खूब हंसी , राहुल से बात की
आज भी मैं , रवि कांत मिश्रा, पवन, फाल्गुनी, चेतना और मनीष मिलें सुबह सुबह इंदौर में और दो तीन घँटे साथ गुजारें
एक पागल सी बेताब सुबह ने हमें पच्चीस साल पीछे से खींचना शुरू किया और जब लौटे तो याद आया कि आज भाई दूज भी है और हमारे घर परिवार भी बस दुखी मन से पुनः मिलने की उम्मीद में लौट आएं है कि वो सुबह फिर आएगी, कल से सब अपने कामों में व्यस्त होंगे, पवन फाल्गुनी उड़ जाएंगे
इस बीच छाया से वीडियो पर बात की, चुन्नी को मिस किया पर एक बार मन है सबके साथ मिल बैठकर दो तीन दिन तसल्ली से गुजारे , दोस्त है तो जीवन वरना शहर में गालिब की आबरू ही क्या है
आमीन
*****
और हमारे सबसे लाड़ले #Sharwil जी की पहली दीवाली अपने घर
जिनसे हमारी होली - दीवाली और सारे जहां की खुशियाँ है उन्हें इत्ता बड़ा होते देखकर मन प्रसन्न है और दिल से दुआएँ ही दुआएँ ही निकल रही हैं
अपने घर में सिद्धार्थ, अनिरुद्ध और अमेय के बाद बचपन सालों बाद लौटा है , किलकारियां, जोर से रोने और रूठने की अदाएं, नाजों - नख़रे, बच्चों के खिलौनें, खाने की बातें, सफाई और रंगों की विशेष सजावट
दीवाली का बड़ा दिन कल है पर कल देर रात जब से आये है - घर के सारे लोग सेवा चाकरी में लगें हैं कि एक मिनिट भी अकेला ना छोड़ें और जब सोते है तो सब बारी बारी से निहारतें रहतें हैं और जागने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं
बच्चे हैं तो घर है, परिवार है, दुनिया है - बाकी सब बेकार है
आइये, दुनिया के सब बच्चों के लिए दुआएँ करें - एक दिया उनकी बेहतरी, सुरक्षा और उज्ज्वल भविष्य के लिए लगाएं कि इस नन्हें दिए और पवित्र अग्नि के आलोक में वे हमारी ताकत बनें और राष्ट्र और समाज के लिए श्रेष्ठ करें
आपके आशीष की आकांक्षा में
- चिरंजीव शरविल स्नेहल सिद्धार्थ नाईक
Comments