Vihag Vaibhav ने अपनी इस कविता के माध्यम से बहुत वाजिब प्रश्न उठाये है
बहुत वाजिब सवाल है इस हिंदी के धूर्त संसार से
पिछले दिनों मैंने यही सब बहुत तार्किक ढंग से पूछा था तो एक वाट्स ग्रुप के तथाकथित तीन प्रशासकों ने ग्रुप में स्क्रीन शॉट लगाकर हटा दिया मानो वे गंवार कोई कलेक्टर हो
दो कौड़ी की बहस, ठिठोली और महिलाओं के बीच विशुद्ध ठिलवई करने वाले हिंदी के ये कवि कितने पतित है यह समझ आया और दिल्ली की एक घटिया औरत और चापलूस महिला कवि ने मुझे अनफ्रेंड भी कर दिया
दुख यही है कि हिंदी का कवि, कहानीकार सरकारी नौकरी करते हुए कम्युनिस्ट बनता है, इस समय जब बोलने की जरूरत है तो प्रेम कविताएं लिख रहा है , एक वरिष्ठ कवि फिल्मों और लाइक्स कमेंट्स मिलने वाली चलताऊ पोस्ट्स लिखता है और वही सम्भ्रान्त किस्म की औरतें जो कवि नही, बस हाई सोसाइटी की तितलियाँ है, कमेंट करती है और यह लाइक्स गिनता हैं, एक काला कलूटा और बदबूदार कवि अपने थोबड़े को सुंदर बनाकर बेवकूफ बनाता है ( रंग भेदी नही पर असली सूरत को गोरा चिकना बनाकर यहां चैंपने की जरूरत हिंदी के कवि को क्या और क्यों, कबसे है, इतने ब्यूटी कांशस हो तो सौंदर्य स्पर्धा में जा बाबू, कविता से क्रांति के पोस्टर क्यों बेच रहा है)
ये गलीज और लिजलिजे लोग है और इनकी प्रतिबद्धता पर अब शक होता है, अब सच कहूँ तो पीड़ा होती है, दो कौड़ी के लफ़्फ़ाज़ प्रकाशकों की गपोड़ बातों में आ जाने वाले ये असरकारी या सरकारी नौकरी करने वाले क्या साहित्य रचेंगें और कुछ करेंगें, अपनी नौकरी, कम्फर्ट जोन और सुविधाएं बचाकर जो साहित्य की सेवा करें उसे तो शैतान भी माफ ना करें
शर्म आती है कि हिंदी के बड़े और चुके हुए कवि काम करने के बजाय पुरस्कार बटोर रहें है , और इनके अंध भक्त आकर मुझसे पूछते है साफ बोलो कौन है, अबे तुम्हे नही समझती क्या भाषा और मेरे मुंह से क्यों सुनना चाहते हो, इतनी समझ नही तो जाओ ना पंसारी की दुकान खोल लो, वाट्स एप ग्रुप के फर्जी और कुंठित ज्ञानियों जब कुछ नही समझ सकते तो क्यों बने हो टैग लगाकर कवि , कहानीकार और आलोचक
निगेटिव कह लो मुझे पर इन अवसरवादियों की चुप्पी पर अफसोस होता है
अश्लील शांति से भरा है ये समय
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लिजलिजे और अश्लील शांति से भरा है ये समय
शायर , लेखक , विचारक ,ज्ञानी-विज्ञानी
या तो चुप हैं या बघार रहे हैं
सबसे विभत्स दुर्गंधयुक्त पीप भरा दर्शन
जिन मुसलमानों के लाल हत्या में गए
वे बचे हुए परिवार को बचाने में
ज़ुबान गिरा आये प्रशांत सागर
जिन अछूतों के आशियाने फूँक डाले गए
वे बुझी राख पर बैठकर
किसी दिव्य सुबह का इंतजार कर रहे हैं
जिनकी फूल जैसी बच्चियों के गुप्तांगों में
ठूँसा गया सृष्टि का प्राचीनतम पत्थर
उनकी आवाजों की घिग्घियाँ अब तक नहीं खुली हैं
तनी हुई मुठ्ठियाँ टूटी हुई हैं
खुले हुए जुबान सिले हुए हैं
तो क्या इतने भर ही हैं जिन्दा लोग?
कोई क्यों नहीं पूछता इस सरकार से
इन हत्याकांडों में तुम कैसे शामिल हो?
कोई क्यों नहीं पूछता कि
खून के सबसे ताजा और बड़े धब्बे
देश के मुखिया के कुर्ते पर कैसे आये?
खेत में लहराता हुआ हल कहाँ गया
दरवाजे की खनकती हुई किलकारी क्या हुई
आदिल मियाँ की टोपी का रंग लाल क्योंकर है
टिर्कियों के पहाड़ किसने चुराए
हजार हजार सवाल हैं
हजार हजार यातनाएँ
और एक मैं हूँ कि चीखता जा रहा हूँ
मगर मेरे साथियों की बेशरम चुप्पी
इस कदर कि
इतने लिजलिजे और अश्लील शान्ति से भरा है ये समय ।
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Ravish Kumar की एक पोस्ट पर मेरा जवाब
रविश भाई
तस्लीम
कैंसर छोड़िए मलेरिया से लेकर कुत्ते काटने की दवा नही जिला अस्पतालों में
शुगर के मेरे जैसे गम्भीर रोगी को 3 से 4 हजार रुपये माह की दवाई गोली और इन्सुलिन बाजार से लेना पड़ता है
मेरे सगे छोटे भाई का डायलिसिस लगातार 13 साल हमने निजी अस्पतालों में करवाया और टूट गए बुरी तरह से
कैंसर की पहचान के उपकरण नही आप कीमो और रेडिएशन की बात कर रहें है
मप्र के झाबुआ, आलीराजपुर, पन्ना में सिलिकोसिस के मरीज रोज मरते है पूरे मप्र में इनकी जांच की मशीन नहीं सरकारी अस्पताल टीबी की दवा देकर अपनी इतिश्री कर लेते है
हमारे मप्र में डेंग्यू की जांच में महीनों गुजर जाते है, मस्तिष्क ज्वर के मरीज मर जाते है तब रिपोर्ट आती है, आंखों का ऑपरेशन जंग लगे उपकरणों से कर दिया जाता है और 50 , 100 लोग अँधे हो जाते है, डिलीवरी के लेबर रूम में होशंगाबाद के जिला अस्पताल में एक कुतिया बच्चों को जन्म दे देती है और डिलीवरी स्थगित करना पड़ती है, नवजात बच्चों को एम वहाय अस्पताल इंदौर में चूहे खा जाते है - ये हालत है
कुपोषण की कहानी पूछिये ही मत महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग का झगड़ा सास बहू का है यहां और कभी कन्वर्जेंस नही हो सकता
जब मैं नर्मदापुरम सम्भाग में था तो मुख्यमंत्रीजी के बुधनी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बी एम ओ साहब नशे में धुत्त रहते थे और संभागायुक्त भी कुछ नही कर पाते थे क्योंकि डाक साब एक दिन छोड़कर मुख्य मंत्री निवास पर हाजिरी बजा आते थे और पूरे अस्पताल में किसी को काम नही करने देते थे
देवास में 30 वर्षों से वही डाक्टर जमे है जो थे और पूरा तंत्र खोखला कर दिया और आप कैंसर जैसी बीमारी की बात कर रहें है, शिवराज सरकार ने पी पी पी योजना में व्यापमं के दोषी डाक्टर को ठेका देकर कैंसर से बड़ी बीमारी दे दी थी - उसका क्या, कौन भुगतेगा
जमीनी हालत बहुत खराब है राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन यूनिसेफ से लेकर भाड़े के कंसल्टेंट खा गए अरबों रुपया बर्बाद हो गया
मप्र राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हालत यह है कि हम लोग जिस समिति में है उसकी बैठक जुलाई में हुई थी उसका यात्रा भत्ता जो मुश्किल से 1500 रुपये होगा आज तक नही मिला और आप बात कर रहें कि स्वास्थ्य मंत्री कुछ काम करें
ये सब जानते है कि इन्होंने क्या किया और क्या करना चाहते है
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सिकंदर दुनिया फतह के बाद किसी शहर से गुजर रहा था
वहां एक आदमी दुनिया से बे-खबर सो रहा था सिकंदर ने उसे लात मार के जगाया और कहा - "तू बे-खबर सो रहा है, मैंने इस शहर को फतेह कर लिया है"
उस आदमी ने सिकंदर की तरफ देखा और कहा - "शहर फतेह करना बादशाह का काम है और लात मारना गधे का, क्या कोई इंसान दुनिया में नही रहा कि बादशाहत एक गधे को मिल गई ?"
वोट देने से पहले सोचना ज़रूर , वरना बादशाहत किसी गधे को मिल गई तो पांच साल लातें खाओगे
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