Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2015

जिला आपूति अधिकारी श्रीमती ज्योति जैन का सद्व्यवहार

छोटे भाई की मृत्यु पश्चात कागजो की कार्यवाही और ना जाने कौन - कौनसी प्रक्रियाओं से तंग आ गया हूँ. सरकारी देयक अभी तक तो मिले नहीं है, मुख्यमंत्री हेल्प लाइन के भी बुरे हाल है मप्र में. 6 दिसंबर को शिकायत दर्ज करवाई थी परन्तु कुछ होने से रहा, भाई की पत्नी को सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों के तहत अनुकम्पा नियुक्ति मिलना चाहिए परन्तु मप्र के अनूठे प्रशासन और भ्रष्ट राज में किसी का कोई काम समय पर हो जाए तो क्या बात है. जिले के अधिकारियों से लेकर मप्र के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और तमाम सचिवों, आयुक्त उज्जैन श्री रविन्द्र पस्तोर को भी आवेदन किये पर कुछ किसी का काम हो जाए तो वो प्रशासन ही क्या ? जो सरकार अपने मृत कर्मचारी के परिवार के देयको का भुगतान जो उसके परिवार का अधिकार है एक समय सीमा में नहीं कर सकती वह क्या मप्र बनाओ या कुशल प्रशासन का उदाहरण देगी.  ऐसा ही एल पी जी गैस के कागज़ स्थानांतरित करवाने में हुआ, देवास के एक गैस एजेंसी ने कागज़ बदली के नाम पर मूल कागज़ रख लिए और भाभी को धमकाकर कर पांच सौ रूपये ऐठ लिए थे, कल जब एजेंसी पर मै गया और पूछा कि शपथ पत्र की क्या जरुरत ह

“नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं“ - पुरुषोत्तम अग्रवाल (ख्यात साहित्यकार)

इस संकलन के आरंभ में अनेक घटनाओं को एक छोटे शहर के आख्यान के कैनवास पर उकेरते कुछ गद्यांश हैं, जो अपनी समग्रता मेंजीवन, मित्रता,विवशता, निर्वासन और पलायन और आत्महत्या के बयान हैं; साथ ही, खुद उस शहर की मजबूरी के बखान भी। फिर हैं कुछ कहानियाँ जो अपनी सहज कहन के कारण अपनी बेचैनी की स्मृतियाँ पाठक के मन में छोड़ जाती हैं। संदीप नाइक की इन बेचैन कथाओं में नर्मदा नदी व्यक्तिगत और सामूहिक सुख-दु:ख, संघर्षों  और स्वप्नों को धारण करती हुई बहती है, और उसकी आवाज हम संदीप के सहज गद्य में सुन सकते हैं। तेजी से नगरीकरण की ओर बढ़ते समाज में हर तरह की ताकत केन्द्रीकृत होती जा रही है, और छोटे शहर, कस्बे और गाँव सत्ताकेंद्रों की प्रयोगशालाओं और ऐसे अजूबों में बदलते जा रहे हैं, जिनसे सत्ताकेंद्र या तो दया का रिश्ता बनाते हैं, या उपहास का। संकलन की सभी कहानियाँ इस दया और उपहास से उत्पन्न बेचैनी की ही कथाएँ हैं। संदीप की इन कहानियों में आदर्शों की विफल खोज से बेचैन नौजवान हैं, तो फिल्मस्टारों के सपने देखते अपने पागलपन में एकतान जीवन की सीमाएँ लांघ रहे नौजवान भी। इन कहानियों में ‘छोटे शहर का आदम

दिन भर मजदूरी के बाद रात में यहां होते हैं कबीर भजन, ऐसे मिली दुनिया में प्रसिद्धी - भास्कर.कॉम 28 जनवरी 2015

http://www.bhaskar.com/news/c-58-2440911-NOR.html?version=2 भोपाल।  गणतंत्र दिवस से राजधानी भोपाल में शुरू हुए लोकरंग महोत्सव में  मप्र के साथ-साथ देश और विदेश के लोक नृत्यों और गायनों की पेशकश की जाएगी। बुधवार को भी लाेकराग कार्यक्रम के तहत लाेकवाद्यों की यात्रा और  लोकधुनें गाई  जाएंगी। लोकरंग इस साल मालवा की संस्कृति पर केंद्रित है। इसी मालवा में कबीर गायन बेहद प्रचलित है और इस गायन की बदौलत दुनिया भर में मालवा को ख्याती मिली  है। DAINIKBHASKAR.COM के माध्यम से संदीप नाईक आपको बता रहे है इसी कबीर गायन  के बारे में। रात का समय है, ठण्ड अपने चरम पर है, चारो ओर कुहासा है, खेतों से ठंडी हवाएं आ रही है, बिजली नहीं है परन्तु गाँव के दूर एकांत में कंकड़ पर लोग बैठे है, बीडी के धुएं और अलाव के बीच लगातार भजन जारी है और सिर्फ भजन ही नहीं उन पर जमकर बातचीत भी हो रही है कि क्यों हम परलोक की बात करते है, क्यों कबीर साहब ने आत्मा की बात की या क्यों कहा कि “हिरणा समझ बूझ वन चरना”। लोगों की भीड़ में वृद्ध, युवा और महिलायें बच्चे भी शामिल है. यह है मालवा का एक गांव। यह कहानी एक गांव की नह

डा जनक पलटा को पदमश्री मिली सन 2015 में

जनक दीदी के बारे में कल ही राहुल जैन से लम्बी बात हुई और फिर उनके काम और बहाई अध्ययन केंद्र , बरली केंद्र इंदौर आदिवासी लड़कियों के कौशल उन्नयन की बातें, फिर साधना और हेर्विग के काम और कवछा में कल्याणी संस्थान के काम, समाज सेवा और तमाम बातें. अच्छा यह है कि अब गर्व से कह सकता हूँ कि मै चार पदमश्री प्राप्त लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ और इन लोगों से बहुत कुछ सीखा है और अभी बहुत कुछ सीखना बाकी भी है. संगीत के क्षेत्र की आदरणीय वसुंधरा ताई, शिक्षा के डा जे एस राजपूत, कबीर  गायक प्रहलाद सिंह टीपान्या और अब समाज सेवा की जनक दीदी. बधाई और बहुत मुबारकबाद जनक दीदी को, आपने जो काम किये और शुरू किये है और अभी भी सक्रीय है, यह तसल्ली की बात है और इन दिनों जैविक खेती, सब्जियों और उत्पादों का आप जो अदभुत काम कर रही है वह सराहनीय है. जनक दीदी से अभी बात की तो मैंने कहा कि अब जैविक मिठाई बनाओ तो खाने आता हूँ, बहुत सहजता से और प्यार से आमंत्रित करते हुए बोली कि "संदीप, यह सब तुम लोगों के सहयोग और लम्बे साथ की वजह से ही संभव हो पाया है, और जैविक मिठाई का आईडीया भी अच्छा

"अपने अवगुणों को ढकते हुए"

"अपने अवगुणों को ढकते हुए" ************************************ फिर रख दूंगा अखबारों में तह करके यह शाल किसी आलमारी में अगले बरस तक याद ना आयेगी और फिर एक दिन ढूंढून्गा किसी कंपकपा देने वाली सर्दी में अगले बरस सालों से जारी है सिलसिला शाल का इस तरह से कितनी ही शालें आती रही गुमती रही, कभी कोई ले गया और लौटाई नहीं भलमानसहत में पूछा नहीं कभी ट्रेन में, कभी शादी में गुम गयी हर बार एक शाल के लिए दुनिया घूमा कभी तिब्बती से, कभी रेडीमेड वाले से पर हर बार झिक झिक करके नई खरीदी कभी कोई दे गया माँ को तो हड़प ली झपटकर कि अच्छी है ओढ़ा तो लगा हर बार गुमने का खटका था जतन से सम्हालता और सहेजता कभी एक बार तो कभी दो बार धो लिया सीजन में शाल को हलके से कभी शाल को अपने रोज की जिन्दगी में वह स्थान नहीं दे पाया जिसका हक़ वह रखती थी, एक अदद स्थान जीवन में शाल के रेशे यहाँ वहाँ गड़ते रहते और उधड़ते रहते जीवन के ख़्वाबों की तरह शाल के रंगों की तरह बदलता रहा यार दोस्त हर बार या तो गुम गए या ले गया कोई मंजिलों और रास्तों के बीच मेरे सारे अवगुण छुपाती रही शाल और बचाती रही सर्द हवाओं से धुल

The Most Favorite Post of 2014 on Facebook

ये है श्याम लाल अमरकंटक एक्सप्रेस में एसी कोच की देखरेख करते है। कल इन्होने बताया कि लोग कम्बल नेपकिन और सफ़ेद चादरे चुरा ले जाते है फलस्वरूप इनके छह हजार वेतन से हर माह ठेकेदार पंद्रह सौ काट लेता है। इन्होने कहा कि ये दुर्ग के पास एक गाँव में रहते है बहुत गरीब परिवार है चार हजार में गुजारा भत्ता कैसे होगा। यह सोचना ही मुश्किल है।  एक सवाल बड़ी मासूमियत से श्यामलाल यादव ने पूछा कि आप लोग जो एक-दो  हजार का टिकिट खरीदते है रेलवे के कम्बल और नेपकिन क्यों उठा ले जाते है । अगर यही आपका दांत मांजने का ब्रश भी आप बेसिन पर भूल जाते है तो चोरी का इल्जाम हम जैसे गरीबों पर लग जाता है। रात को हमें रूपये देकर सिगरेट दारु माँगते है। कैसे बड़े लोग एसी में आते है और आपकी नियत कितनी खराब होती है। जितनी गन्दगी आप लोग करके जाते है उतनी तो हम भी नहीं करते भले झोपड़ियों में रहते हो।  श्यामलाल ने कहा कि हमें आपके जैसे बड़े लोगों से नफ़रत है जो देश चलाने का काम करते है। गरीबों की हाय लेकर और रेलवे के नेपकिन चुराकर कौनसा मैदान जीत लोगे आप लोग.... श्यामलाल देर तक बड बड रहा था और मै सोच रहा था कि क्या

गिरना - नरेश सक्सेना

––––– चीजों के गिरने के नियम होते हैं मनुष्यों के गिरने के कोई नियम नहीं होते लेकिन चीजें कुछ भी तय नहीं कर सकतीं अपने गिरने के बारे में मनुष्य कर सकते हैं बचपन से ऐसी नसीहतें मिलती रहीं कि गिरना हो तो घर में गिरो बाहर मत गिरो यानी चिट्ठी में गिरो लिफाफे में बचे रहो, यानी आँखों में गिरो चश्मे में बचे रहो, यानी शब्दों में बचे रहो अर्थों में गिरो यही सोच कर गिरा भीतर कि औसत कद का मैं साढ़े पाँच फीट से ज्यादा क्या गिरूँगा लेकिन कितनी ऊँचाई थी वह कि गिरना मेरा खत्म ही नहीं हो रहा चीजों के गिरने की असलियत का पर्दाफाश हुआ सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के मध्य, जहाँ, पीसा की टेढ़ी मीनार की आखिरी सीढ़ी चढ़ता है गैलीलियो, और चिल्ला कर कहता है - 'इटली के लोगो, अरस्तू का कथन है कि, भारी चीजें तेजी से गिरती हैं और हल्की चीजें धीरे धीरे लेकिन अभी आप अरस्तू के इस सिद्धांत को गिरता हुआ देखेंगे गिरते हुए देखेंगे, लोहे के भारी गोलों और चिड़ियों के हल्के पंखों, और कागजों और कपड़ों की कतरनों को एक साथ, एक गति से, एक दिशा में गिरते हुए देखेंगे लेकिन सावधान

डेढ़ इंच का टुकड़ा

फिर लगा कि यह रात नहीं आसमान के नीचे से गुजरने वाली एक लम्बी सुरंग है जो कभी ख़त्म नहीं होगी, ठंडी हवाएं चल रही थी और सामने थी लम्बी विशाल झील जिसका पानी एक बर्फ के मानिंद पडा हुआ था और उस पर से चलकर बत्तखें कही आ - जा रही थी, सिंगाड़े के पौधे चहक रहे थे और कमल के फूल मानो प्लास्टिक में बदल गए थे, क्रूरता अपने शबाब पर थी, और मै दूर उस आसमान में एकटक देख रहा था, घड़ी की सुईयां ऐसे सरक रही थी मानो सीढीयां हो किसी अंधे चढ़ाव की जो कही ख़त्म नहीं होती और सदियों से वही पडी है....थोड़ी  देर  बाद इस सुरंग में एक चाँदनुमा सफेदी का डेढ़ इंच का टुकड़ा कही से निकल आया और फिर मुस्कुराकर मुझसे बतियाने लगा - सवाल, उफ़, ये सवाल और सवाल बस लगा कि अब ये रात, ये सुरंग और ये डेढ़ इंच का चाँद यही ठहर जाए, बर्फ की सतह वाले झील अचानक से बहने लगी और पानी के सोते में से लाल रक्त रंजित सा कुछ बहने लगा, मैंने अपनी नसों में वह दबाव महसूस किया और फिर अचानक से सब कुछ ठहर गया, पौधे एकाएक मेरे पर चढ़ आये और कमल के फूलों में उलझ गया मै और चाहकर भी सांस नहीं ले पा रहा था पता नहीं फंस गया. सोचा था कि उसी छत पर रात गुजार दूंगा,

किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल देश की सत्तर साला राजनीती के दंश

किरण बेदी का भाजपा में जाने से अचरज मुझे बिलकुल नहीं हुआ मुझे सिर्फ अंतोव चेखव का नाटक गिरगिट याद आया जिसमे समाज में किस तरह से लोग अपने चेहरे, व्यवहार और चरित्र बदलते है. कालान्तर में इस नाटक के कई प्रकार के पाठ हुए जिसमे ख़ास करके भारत में ब्यूरोक्रेट्स तो इस मामले में बेहद गंभीरता से इस नाटक को अपना कर अपना "वर्ग चरित्र" बनकर जीते है और पुरी सरकारी नौकरी के दौरान सिर्फ और सिर्फ गिरगिट बनकर जीते है और कांग्रेस हो, भाजपा हो, बसपा हो, वामपंथी हो या हाथी, गधे, घोड़े या उल्लूओं की सरकार हो - वे भलीभांति एडजस्ट हो ही जाते है, चाहे वो खादी पहनकर सेवा दल की भाँती दिखें या संघ की खाकी नेकर पहनकर अलसुबह उठकर संघ की शाखा में नमस्ते सदा वत्सले गाये या लाल सलाम  /जोहार साथी कहकर चरण वन्दना करें यह कोई नई बात नहीं है और इस पर आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए.  मुझे सिर्फ आश्चर्य यह लगा कि किरण बेदी की आत्मा अब तक खुलकर क्यों नहीं यह उगल रही थी जो उनके मन में था. और यह भी भरोसा रखे कि यही किरण बेदी मन पसंद पद ना मिलने पर भाजपा को भी लात मारेगी, क्योकि यह सिर्फ और सिर्फ महत्वकांक्षी ह

सुरक्षित शहर - एक पहल परियोजना के तहत भोपाल में ब्रिटेन की मंत्री

सुरक्षित शहर - एक पहल परियोजना के तहत भोपाल में आज ब्रिटेन की मंत्री Lynne Featherstone (UK Minister , MP, Liberal Democrat) और Macartan Humphrey from Columbia University ने जय हिन्द नगर के बस्ती में भ्रमण किया. पूरा दिन ये दोनों लोग अपने अधिकारियों के साथ उपस्थित थे. कार्यक्रम में नगर निगम भोपाल अधिकारियों के साथ जिन्होंने पूरा मार्गदर्शन दिया, के साथ इस कार्यक्रम में प्रदेश के नगरीय प्रशासन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे, साथ ही कैम्प संस्था के कार्यकर्ताओं के जोश और  सक्रीय भागीदारी से बस्ती की महिलाओं और युवाओं ने महिला हिंसा के खिलाफ किये जा रहे प्रयासों का वर्णन किया. इस अवसर पर संक्रांति के मद्देनजर युवाओं और महिलाओं ने पतंगबाजी का खूब आनंद लिया और अपनी पतंगों पर "हिंसा रोको" जैसे नारे लिखकर जनता को सन्देश दिया.  इस अवसर पर युवा लड़को के लिए स्टीरियोटाईप मानसिकता तोड़ने के लिए रोटी बेलो प्रतियोगिता आयोजित की गयी थी जिसमे सभी दो सौ युवाओं ने उत्साह से भाग लिया और यह मिथ तोड़ा कि रोटी बनाना लड़कियों या महिलाओं का काम है वे भी घर में

देवास के बलराम तालाब और प्रशासन के लिए कमाई का साधन

देवास में पानी की समस्या हमेशा से रही है और यहाँ पर पदस्थ जिला कलेक्टरों के लिए यह एक बड़ी कमाई का साधन रहा है. देवास शहर के विधायक पिछले तीस बरसों से नर्मदा नायक बनकर चुनाव जीतते रहे है. पर जमीनी हकीकत कुछ और है, टोंक खुर्द ब्लाक में तत्कालीन कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव ने 300 के ऊपर बलराम तालाब बनवाये थे परन्तु कालान्तर में ये तालाब महज मखौल बनकर रह गए और अधिकारियों, किसानों और पंचायत कर्मियों ने इस बलराम तालाब का ऐसा भयानक मजाक उड़ाया कि बताया नहीं जा सकता. और तो और देश भर के  पत्रकारों ने भी देवास मॉडल पर बहुत लिखा और फेलोशिप जुगाडी, द्नियाभर में घूमते रहे, मैंने दो साल पहले ऐसे ही एक तथाकथित पत्रकार महोदय को इस तरह के फर्जीवाड़े के बारे में आगाह किया था तो वे भिनक गए थे और जोश में बोले कि यदि मेरे लिखे को आप इस तरह कह रहे है तो मै यूनेस्को से मिले करोड़ डालर को ठुकराकर देवास जिले के किसी गाँव में खेती करना शुरू कर दूंगा और समुदाय के लिए काम करूंगा उस राशि से और बाद में वे मुझे ही ब्लाक करके चलते बनें, सुना कि आजकल यूनेस्को में भू-जल के विशेषग्य है. हाल ही में दिल्ली के एक ए

पहाडा सीख रहा हूँ इन दिनों.

सीख रहा हूँ पहाडा इन दिनों एक धर्म एक दुनिया को तबाह करने के लिए काफी है दो से एक मानसिकता का गुणा कर दो तो हजारों लोग मारे जाते है एक मूर्ख दस हजार की भीड़ में दो वाक्य बोलकर लाखों को बरगला सकता है एक आदमी एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों को तीन से भाग देकर पंद्रह का जाल बन सकता है पहाडा सीख रहा हूँ इन दिनों. __________________ *संदीप नाईक 

विद्या अरुण साने का दुखद निधन

मेरी भाभी की माँ श्रीमती विद्या अरुण साने का आज दुखद निधन हो गया, देवास में नूतन बाल मंदिर से अपना काम शुरू करने वाली विद्या ताई शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शख्सियत थी और उन्होंने उस समय एक छोटा सा स्कूल खोला था जब प्राईवेट स्कूल का नामोनिशान नहीं था. समाज के निम्न और मध्यम वर्ग के बच्चों के लिए न्यूनतम फीस लेकर उन्होंने गुणवत्तापुर्व शिक्षा की बुनियाद डाली और देवास के पुराने स्कूलों में शामिल नूतन बाल मंदिर ने स्कूलों में इतिहास बनाया. श्रीमती शशिकला पोतेकर ने आज अंत िम यात्रा के समय कहा कि "आमची मावली गेली हो, तिनीचं आम्हा सर्वाना उभ केलं, आणि जे पण आमच्या कड़े आहे ते सर्व इचच आहे." सच कहा शशिकला ताई ने जो देवास की अन्य महान महिलाओं में से एक है. ये वो महिलाओं की पीढी थी जिन्होंने शिक्षा का बेहद जमीनी स्तर पर काम किया, सरकारी स्कूलों के समानांतर निजी विद्यालय खोले और उन्हें बेहद मामूली खर्च, सादगी और गुणवत्ता से संचालित किया. मुझे याद है नूतन बाल मंदिर, एवरेस्ट स्कूल, शिशु विहार (श्रीमती पटवर्धन द्वारा संचालित) ऐसे स्कूल थे जिन्होंने देवास की पीढियां सुधारी