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Showing posts from March, 2023

World Poetry Day Modified Poem of Gyanendrapati 21 March 23

  मेट्रो के सम्मान में ____ चेतना पारीक तुम अभी भी माणिकचंद, रजनीगंधा, कमला पसंद या 320, 120 और कीमाम की चटनी वाला पान ख़ाकर रंगे मुंह से मेट्रो में चढ़ती हो राजीव चौक से रोज़ सुबह 8.33 पर वही काला भैंगा ऑटोवाला तुम्हारा आशिक है, जिसके मुंह से रात की बिरियानी सड़े अंडे, सूखे पापड़, बासी सलाद और सस्ती बीयर की बदबू महकती है रास्ते भर या कोई पार्षद फँसा लिया है मेट्रो की भीड़ में ताकती हो अभी भी खोजती हो किसी भोले नत्थूलाल को जब कोई फंस जाता है तो उसे अपनी पर्स से डायरी निकालकर सुना देती हो दस - बारह कविताएँ और कथेतर विधा का कोई ट्रेवलॉग शुक्र है मेट्रो की खिड़कियां बन्द होती है और अब दरवाजे भी दिल्ली में दाहिनी ओर खुलने लगे है 2014 से वरना दर्जनों लौंडे रोज आत्महत्या कर लेते तुम्हारी कविताएँ सुन -सुनकर चेतना पारीक कैसी हो कलकत्ता अब कोलकाता, इलाहाबाद प्रयागराज हो गया विजय मालया को भी इंतज़ार है नीरव मोदी याद करता है तुम्हे ट्राम अब पुरानी बात है ममता नई इंदिरा बन गई देश में अब मोदी जैसा सज्जन पुरुष जननेता है और कल्लू मामा सबसे प्रभावी मैनेजर राजनीति का प्रशांत किशोर पैदल चलता है बिहार में ईडी, स

Khari Khari and other Posts from 18 to 21 March 2023

आवश्यक ---- मित्रों, विश्व पुस्तक मेले के बाद मेरी जानकारी में अभी आया कि कुछ मित्रों की किताबों में प्रस्तावना, समर्पण और प्रेरणा के रूप में मेरा नाम है हाल ही में 5 -7 साहित्यिक किताबों में यह देखने मे आया है, कृपया आगे से यह सब ना करें और नाम छापने से पहले अनुमति जरूर लें, खासकरके साहित्य से जुड़ी किताबों में यह बहुत जरूरी है मेरे काम, लेखन, अनुवाद, सम्पादन और व्यवसायिक काम जो अलग मसला है, उसमे तो खैर उल्लेख करना अनिवार्य भी है मैं इस लायक अभी नही हुआ हूँ ना कभी इस लायक बनूँगा कि प्रेरणा आदि बन सकूँ - यह एक तरह से भावनात्मक शोषण है, इस बात का ध्यान रखें और 3 - 4 किताबें तो इतनी अप्रासंगिक और अनावश्यक है कि अपना नाम उनमें देखकर ही शर्म आ रही है, शराफत यह है कि कुछ ने भेज दी और बाकी तो सिर्फ पता ही चला है अभी Save the Children मप्र ने मुझसे एक परियोजना का मूल्यांकन करवाया था वे गांधी आश्रम मुरैना के सहयोग से मप्र के धार जिले के कुक्षी ब्लॉक में बच्चों को कपास चुनने से मुक्ति दिलवाकर मुख्य धारा की शिक्षा में लाने का काम कर रहें थे, मैंने मेहनत से फील्ड वर्क किया, 10 - 15 गाँवो में गया

Durgesh Sharma's book, Tribal Girl and Judge's Exam Khari Khari, Kuchh Rang Pyar Ke - Posts of 15 to 18 March 2023

Book on the Table अग्रज दुर्गेश नंदन शर्मा यदि यह कहूं कि मध्य प्रदेश के उन बिरले शिक्षकों में से हैं, जिन्होंने प्रदेश और देश की प्राथमिक शिक्षा के सुधार के लिए अपना पूरा कैरियर और जीवन लगा दिया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी अग्रज दुर्गेश शर्मा को मैं 1987 से जानता हूं जब हरदा जिला भी नहीं था और होशंगाबाद जिले का एक ब्लॉक हुआ करता था, एक लम्बी टीम थी, स्व दिनेश शुक्ला, सरोज चतुर्वेदी ( स्व माखनलाल चतुर्वेदी जी की बेटी) शोभा वाजपेयी, धर्मेंद्र पारे, हरिओम शर्मा, हेमंत टाले, चंदन यादव, आदि ऐसे मित्र है जो जीवन की धरोहर है दुर्गेश बहुत ही सक्रिय, वोकल फ़ॉर लोकल, बोल्ड और रचनात्मकता से भरे हुए एक संवेदनशील इंसान हैं - जो समय, काल और परिस्थिति की नब्ज़ पर अपनी पकड़ मजबूत रखते हैं, साथ ही उन सभी पलों, घटनाओं, बारीक विवरणों, और स्मृतियों को दबोच कर भी रखते हैं जो उनकी नजरों के सामने से गुजरती हैं और सिर्फ पकड़कर ही नहीं रखते - बल्कि वे उन्हें शब्दों में पिरो कर एक तरह की सार्थक अभिव्यक्ति करके समय के इतिहास पर भी अंकित करते हैं सोशल मीडिया आने के बाद उनकी सक्रियता काफी बढ़ी और शिक्षा, नवाचार, प

Manoj Pawar's Rangoli on 7 March 2023 , Kuchh Rang Pyar Ke - Post of 12 March 2023

हमेंशा की तरह बालसखा और कलाकार Manoj Pawar की रंगोली कला ने देवासवासियों का मन मोह लिया था शहर में प्रसिद्ध चित्रकार स्व प्रो अफ़ज़ल द्वारा शुरू की गई होली के अवसर पर सड़कों पर रंगोली बनाने की परम्परा आज भी जारी है शादाब, आमेला से लेकर कई कलाकार अब इस कला में निपुण है और पारंगत होने की ओर अग्रसर है , एक रिटायर्ड शिक्षक राजकुमार चंदन तो स्थानीय तालाब में पानी पर दुनिया की सबसे बड़ी रंगोली बनाकर विश्व रिकॉर्ड बना चुके है उल्लेखनीय है कि यह अलबेलों का शहर है और एक से एक धुरंधर है और नवरत्नों की कमी नही है, होली है तो यह भी कह दूँ कि नगीनों की भी कमी नही , दिलफेंक आशिक और मजनूँ भी बहुतेरे है शहर में, हर घर में गायक, शायर, कवि और फेंकूँ किस्म के नेता भी है, साहित्यिक वाद- विवाद से लेकर टुच्ची राजनीति वाले तो खैर हर जगह होते ही है इनका क्या कहना और इनका क्या उल्लेख करना - बस जीवित भर है और घटियापन में लगे रहते हैं हरदम यूँ तो मालवा के लोगों ने जनसामान्य में संझा, मांडने और दीवारों पर भित्ति चित्र बनाना जारी रखा ही हुआ है, परंतु मराठा राज्य होने से मराठी ब्राह्मण और क्षत्रिय मराठा परिवारों ने स

जाने भी दो यारों - Satish Koushik RIP 9 March 2023

जाने भी दो यारों वो सात दिन में अपना काम करके अनंत यात्रा पर निकल ही गया बन्दा आख़िर, एक दिन हमें भी यह सब छोड़कर जाना ही है, अब आदत हो गई और मौत से ख़ौफ़ नही होता, किसी सहेली सी लगती है और लगता है -"फूलै फूलै चुन लिए, काल्ह हमारी बार" और फिर हमारे पास भी तो कुल चार ही दिन है जीवन में, काम करते रहो अपना और ऐसा कुछ कर चलो कि कोई तनिक ठहरकर ओम शांति लिख दें, समय हो तो कंधा देने आ जाए, समय हो तो दो घड़ी बुदबुदा दें, दो घड़ी सम्हल जाये अपने हालात में, दो घड़ी विचार लें, दो घड़ी मुस्काते हुए देख लें घर परिवार को कि सब ठीक है ना, अपने बाद की जुगत से सब ठीक चलता रहेगा ना ...क्योंकि वो कहते है ना - "उड़ जायेगा हंस अकेला" सतीश बाबू बहुत जल्दी क्यों थी इतनी जाने की, एक भरपूर ठहाका तो और लगाते जमकर , वैसे ही गम कम है क्या इस संसार में ख़ैर, ख़ुश रहो जहाँ भी रहो, "मौत सबको आनी है, कौन इससे छूटा है आज जवानी पर इतराने वाले कल तू ठोकर खायेगा ...." जानी बाबू की कव्वाली लगा दें कोई रिकॉर्ड प्लेयर पर, मन उदास है - पिछले दस दिनों से मौत का तांडव ही नही रुक रहा लोग बेतहाशा ढंग से मर रहे

जाने वाले कभी नही आते Pushpendra Pal Singh PP Sir 7 March 2023

  || जाने वाले कभी नही आते || विश्वास करना ही मुश्किल हो रहा है, Pushpendra Pal Singh यानी पीपी सर , आपके साथ 2003 से मित्रता थी, माखनलाल पत्रकारिता विवि में नियमित जाना, आपके साथ दर्जनों कार्यशालाएं और बैठकें की है, कितनी ही जगहों पर हम लोग साथ साथ गए है - पचमढ़ी, बांधवगढ़, ओरछा, मांडव, चंदेरी, महेश्वर से लेकर कहाँ - कहाँ नही, सारी मीडिया की गोष्ठियां बेतहाशा याद आ रही है अभी और वो खिलखिलाहटें जो अब धरोहर बन गई इतनी जल्दी - अभी तो लम्बा सफ़र करना था पुष्पेंद्र जी आपके विराट व्यक्तित्व और आपके साथ आपके पत्रकारिता के छात्र संग साथ होते थे मैं अक्सर मज़ाक में कहता कि "पुष्पेंद्र जी, आपको देखकर बेग पाइपर वाली कहानी याद आती है - आगे आप और पीछे पूरी फ़ौज" और यह हक़ीक़त भी था, देश के शायद ही कोई हिंदी भाषी युवा या अधेड़ पत्रकार होंगे जो आपके मुरीद न हो, हर कोई कहता था कि सर मेरे सबसे करीब है , भोपाल के माखनलाल विवि में कितना खुलापन और कितने सीखने के अवसर आपने छात्रों के अलावा भी लोगों को दिए, कितना वृहद नेटवर्क और कितना आपुलकी से हरेक के साथ बातचीत विकास संवाद की राष्ट्रीय गोष्ठियों के सा

Drisht Kavi, Khari Khari , Posts of 3 and 4 Feb 2023

"कब लौटे दिल्ली से"- मैंने पूछा "आज ही आया हूँ" - दुखी लाईवा बोला "तो कैसी रही पुस्तक मेले की यात्रा" - सवाल दागा मैंने "सब साले हरामी है, जिन कबूतरियो की फेसबुक में सिंगल लिखा था वो पकी उम्र की निकली - 120 किलो वजन वाली, अपने बूढ़े और गंजे पति के साथ मिली, आख़िर में मुझे ही हाथ पकड़कर गोल्फ गाड़ी में दोनो को चढ़ाना पड़ा, सब साली अंजू, मंजू, सीता, गीता, अनिता, सुनीता टाइप पेज थ्री की औरतें एक जैसी निकली घटिया और बर्बाद" - लाईवा दुखी था "और तुम्हारी किताब जो श्मशान प्रकाशन, हरियाणा से आई - उसका विमोचन हुआ" - मैंने पूछा बोला - "क्या ही कहें सर जी, साला परकासक हरामी निकला , मेन गेट के बाहर फुटपाथ पर धूप में 2×2 का लोहे का टेबल लेकर बैठा था, चने के साथ मेरी किताब रखी थी बिकने को, जब विमोचन का पूछा तो सुबह - सुबह गवालियर से कोई फटी धोती में कोई बूढ़ा पगलाया सा आदमी आया था - उसे पकड़ लिया साले ने और एक सफाईकर्मी को बुलाकर विमोचन करता सा फोटू हिंचवा लिया मेरे ही मोबाइल से, मेरे डेढ़ किलो पेड़े रख लिए हरामखोर ने और 5 कॉपी किताब की दी, बोला जे फो

March and its Memories 1 to 31 March 2023

गहन संताप, पीड़ा का अनुष्ठान और सतत परिणाम पाने के लिए संघर्ष और मन की गुत्थियों को सहेजने का समय है मार्च *** गुम हो चुकी आस्थाओं, क्षुब्ध मन, गुम्फित जालों में उलझी आशाएँ, टूटी हुई संकल्पनाओं के बीच तैरती किसी निर्बन्ध से बंधी नाव कब तक जीवन का बोझ लेकर उद्दाम वेग से बहती नदी में सम्बल ढोते रहेगी, कड़ी होती मार्च की धूप सब कुछ सूखा देगी *** अपनों से खाई चोट और उपेक्षा जब क्षण भंगुर जीवन का स्थाई भाव बन जाये और यह गलीज़पन जब हर बखत तारी होने लगे अपने ही मन - मस्तिष्क पर, तो मार्च का पतझड़ आपको बहुत कम लगने लगेगा - क्योंकि बरसात की चार बूंदों से शाखाएँ तो पल्लवित हो जायेगी - पर ये उपेक्षा कभी मन के नेहसिक्त सूखे ताल को पुनः भर नही पायेंगी *** सूर्यास्त के बाद घुप्प अँधियारो के मध्य कुटिल एवं वाचाल आत्माओं के संग हिंसा के षड्यंत्र बुनती परछाइयाँ जब यवनिका से निकल कर छाती ठोक मंच के ठीक मध्य में अपने सबसे वीभत्स रूप में सामने आती है और बेशर्मी से ठहाके लगाकर हल्कान होती है तो फागुन की गालियाँ भी शर्मसार होकर किसी घने गहरे भूतल में छुपने का जतन करती नज़र आती है *** भटकी हुई आस्थाएँ, सदियों से