"कब लौटे दिल्ली से"- मैंने पूछा
"आज ही आया हूँ" - दुखी लाईवा बोला
"तो कैसी रही पुस्तक मेले की यात्रा" - सवाल दागा मैंने
"सब साले हरामी है, जिन कबूतरियो की फेसबुक में सिंगल लिखा था वो पकी उम्र की निकली - 120 किलो वजन वाली, अपने बूढ़े और गंजे पति के साथ मिली, आख़िर में मुझे ही हाथ पकड़कर गोल्फ गाड़ी में दोनो को चढ़ाना पड़ा, सब साली अंजू, मंजू, सीता, गीता, अनिता, सुनीता टाइप पेज थ्री की औरतें एक जैसी निकली घटिया और बर्बाद" - लाईवा दुखी था
"और तुम्हारी किताब जो श्मशान प्रकाशन, हरियाणा से आई - उसका विमोचन हुआ" - मैंने पूछा
बोला - "क्या ही कहें सर जी, साला परकासक हरामी निकला , मेन गेट के बाहर फुटपाथ पर धूप में 2×2 का लोहे का टेबल लेकर बैठा था, चने के साथ मेरी किताब रखी थी बिकने को, जब विमोचन का पूछा तो सुबह - सुबह गवालियर से कोई फटी धोती में कोई बूढ़ा पगलाया सा आदमी आया था - उसे पकड़ लिया साले ने और एक सफाईकर्मी को बुलाकर विमोचन करता सा फोटू हिंचवा लिया मेरे ही मोबाइल से, मेरे डेढ़ किलो पेड़े रख लिए हरामखोर ने और 5 कॉपी किताब की दी, बोला जे फोटू फेसबुक पर पेल देना" - अब तो लाईवा रोने को था लगभग
"और चाय पानी" - मैंने आखिरी में घी डाला
"इनकी माँ का, स्टाल के पास जाओ तो पानी की बोतल नीचे छुपा देते थे और चुपचाप कोने में जाकर रोटी खा लेते थे, इनमे वो भी शामिल थे - जिन्हें अपन ने दारू - मुर्गा खिलाया था अपने घर की छत पर" - लाईवा घर जा रहा था - ग्यारह किलो रद्दी लेकर जो दिल्ली पुस्तक मेले में मुफ्त बंटी थी
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|| जो दिखेगा वही घृणास्पद है ||
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कसम खा रखी है कि पुस्तक मेले की कोई पोस्ट लाइक नही करूँगा, ना ही कमेंट, ना ही बधाई, सारी मूर्खताएँ हमने भी की है पर ऐसी भौंडी अश्लीलता का प्रदर्शन नही किया, हिंदी के आत्म मुग्ध ठलुए कुछ ज्यादा ही उत्तेजित है जो कि गंवारपन के अलावा कुछ नही
यह बेहूदगी की सीमा है और घटियापन की इंतेहा, चार किलो का मेकअप चौपड़ कर फैशन परेड में आई गैंगबाज औरतें, पुरुष और लौंडे लपाटों ने कितना गन्द मचा रखा है यह समझ आ रहा, 70 - 80 का बूढ़ा, सरकारी भोंपू पर शीर्ष पद का कवि या रिटायर्ड तानाशाह ब्यूरोक्रेट जिस तरह से स्वयंभू चम्पादकों और छिछोरे, हरामखोर और कमीन युवाओं की चाट रहे है , हर स्टाल पर जा जाकर किताबो का केश लोचन कर भद्द अपनी ही पिटवा रहें है - वह हास्यास्पद है, लेखक और घाघ प्रकाशक इन ठलुओं को मंच पर बैठाकर यहाँ उन्हें खुदा बनाकर पेश कर रहे है - कितना लज्जास्पद है - कह नही सकता, ऊपर से दिन में 10 पोस्ट्स लगाकर मूर्खता का परिचय दे रहे है
तमाम धोती छाप और कुर्ते पाजामा से लेकर सूट बूट पहने बाबू, मास्टर, घर पहुँच मसाज देने वाले हिंदी के युवा और फर्जी काम"रेड्स वहाँ है - उन्हें देखकर अब घिन आने लगी है कि छि यह भी मल्लब you too brutas
उफ़्फ़, अभी यह नाच - गाना कल और फिर 15 दिन और चलेगा, कोई उम्मीद ना रखें कि किताब मेले पर कोई और टिप्पणी होगी, लाइक - कमेंट तो दूर की बात है, पते और स्टाल नम्बर के डिटेल्स ना भेजें - ब्लॉक किया जायेगा
जेब का रुपया बर्बाद कर दिल्ली में कु - कवियों और कुपढ़ लेखकों से गले मिलने और नकचढ़ी महिलाओं के संग फोटो खिंचवाने के साथ मिलने जा रहे है, कितना शर्मनाक बना दिया इनकी "flight of fantasy" ने पुस्तक मेले को
जो घटिया होगा वही दिखेगा और वही बिकेगा अब
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लोग ईश्वर को राजा मानते रहे
और राजा में ईश्वर को ढूंढ़ते रहे
राजा ने खुद को एक दिन
ईश्वर का कारिंदा घोषित कर दिया
ईश्वर के लिए
भव्य प्रार्थना-स्थल बनाने में लगा दिया
उसके नाम पर बाज़ार सजा दिया
भूखी असुरक्षित बेरोजगार पीढ़ियां
अपने पुरखों की सम्पत्ति
और समृद्धि वापस मांगते हुए
उन भव्य प्रार्थना-स्थलों के दरवाजों पर
अब सिर झुकाए बैठी हैं
आदमी के लिए
ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता
बाज़ार से होकर क्यों जाता है?
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शुक्रिया Ravish भाई , साझा करने को
अयोध्या, बनारस, उज्जैन से लेकर दिल्ली, बरेली, बाराबंकी, गलियाकोट, मुम्बई, गोवा, अमृतसर, बेटमा, महू तक यही हाल है जगह - जगह
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