Skip to main content

Khari Khari and other Posts from 18 to 21 March 2023

आवश्यक
----
मित्रों, विश्व पुस्तक मेले के बाद मेरी जानकारी में अभी आया कि कुछ मित्रों की किताबों में प्रस्तावना, समर्पण और प्रेरणा के रूप में मेरा नाम है
हाल ही में 5 -7 साहित्यिक किताबों में यह देखने मे आया है, कृपया आगे से यह सब ना करें और नाम छापने से पहले अनुमति जरूर लें, खासकरके साहित्य से जुड़ी किताबों में यह बहुत जरूरी है
मेरे काम, लेखन, अनुवाद, सम्पादन और व्यवसायिक काम जो अलग मसला है, उसमे तो खैर उल्लेख करना अनिवार्य भी है
मैं इस लायक अभी नही हुआ हूँ ना कभी इस लायक बनूँगा कि प्रेरणा आदि बन सकूँ - यह एक तरह से भावनात्मक शोषण है, इस बात का ध्यान रखें और 3 - 4 किताबें तो इतनी अप्रासंगिक और अनावश्यक है कि अपना नाम उनमें देखकर ही शर्म आ रही है, शराफत यह है कि कुछ ने भेज दी और बाकी तो सिर्फ पता ही चला है अभी
Save the Children मप्र ने मुझसे एक परियोजना का मूल्यांकन करवाया था वे गांधी आश्रम मुरैना के सहयोग से मप्र के धार जिले के कुक्षी ब्लॉक में बच्चों को कपास चुनने से मुक्ति दिलवाकर मुख्य धारा की शिक्षा में लाने का काम कर रहें थे, मैंने मेहनत से फील्ड वर्क किया, 10 - 15 गाँवो में गया, विश्लेषण कर बड़ी मेहनत से रिपोर्ट भेजी, मुझे धनराशि दी गई थी इस हेतु और फिर रिपोर्ट पर उनके सुझाव आने के करीब दस बार उस रिपोर्ट को संशोधित किया - क्योंकि वो सब अच्छा - अच्छा चाह रहे थे, बाद में किसी ने कहा कि वह छपी है, मैंने राज्य संयोजक से एक प्रति की मांग की, पर उस टुच्चे ने नही दी और यह कहा कि यह अनुबंध में नही था, एक मित्र ने वह रिपोर्ट उपलब्ध करवाई तो पता कि Save the Children के राज्य संयोजक ने अपने नाम से मेरी मूल अंग्रेज़ी की रिपोर्ट छाप ली, मुझे लगा और समझ आया कि तभी वह एक प्रति मुझे नही दे रहा था हरामखोर, निजी पारिवारिक जीवन में अवसादग्रत नालायक ने उस रिपोर्ट में मेरा उल्लेख तक नही किया, कहाँ भुगतेगा जाकर मालूम नही
ऐसे ही मप्र शासन के "महिला बाल विकास विभाग" की समस्त आंगनवाड़ियों के लिये मप्र में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों और खाद्य सामग्री के आधार पर GIZ नामक जर्मनी की एक संस्था के लिए मैंने 30 व्यंजनों की किताब बनाई थी, और जब किताब छपकर आई तो कही से मालूम पड़ा और जब लेखक का नाम देखा तो दिल्ली की उस शरीफजादी का नाम था - जो संयोजन कर रही थी, हिंदी - अँग्रेजी भाषा मे मेरे द्वारा लिखी गई यह पुस्तक तत्कालीन प्रमुख सचिव , महिला बाल विकास विभाग, जो मेरे परिचित थे, ने मुझे उस किताब की दो प्रतियाँ बमुश्किल उपलब्ध करवाई
यह हाल है चोट्टे प्रोफेशनल्स का, वही दूसरी ओर "विकास संवाद" नामक संस्था के साथ जब मैं किसी काम में राई के सौवें हिस्से बराबर योगदान भी देता हूँ तो वे प्रकाशन में नाम देते है - जिससे अपराध बोध होता है कि मैंने तो कुछ खास किया ही नही था
इन मुद्दों पर अलग से लिखूँगा फ़िलहाल इतना ही
***
लोकसभा भाजपा ही नही चलने दे रही है पूर्ण बहुमत में है ये लोग फिर क्यों दिक्कत
दिक्कत यह है कि लोकसभा चली तो अडाणी का भंडा फूटेगा और इनके पास जवाब नही गठजोड़ का
अब सुप्रीम कोर्ट को सत्र के दौरान कार्यवाही ना होने पर सांसदों, केबिनेट और प्रधान मंत्री पर कड़ी कार्यवाही करना चाहिये - जनता का ना काम होता है ना भला होता है, रुपया बर्बाद होता वह अलग
***
ये वही पप्पू है ना - जो मूर्ख था और अहमक था, आज 56 इंची छाती वाली पूरी सरकार को पसीना ला दिया है और लोकसभा रोक रखी है 6 दिनों से
एक बयान से डर गए क्या उस्ताद या अपने कम पढ़े -लिखें होने, निरक्षर होने या अँग्रेजी ना आने का अपराध बोध सता रहा है - क्या था वो " एंटायर पॉलिटिक्स", अब समझे एंटायर पॉलिटिक्स क्या होती है
***
भोत दिक्कत है कि कुछ लोग देश का नाम कैम्ब्रिज जाकर उल्टा पुल्टा बोलकर अख्खा दुनिया में अपने मुलुक का नाम डूबो रहें है
एकदम सही, पर अनपढ़, कुपढ, गंवार और फर्जी एमए लोग्स का क्या करें - जो गुजरात विद्यापीठ, गांधी नगर, गांधी विद्यापीठ - वेडछि, इरमा आणन्द, गिजू भाई के प्राथमिक स्कूल भावनगर में प्राथमिक शिक्षा नही ले पायें या दिल्ली विवि या जेएनयू तक न जा पायें, केम्ब्रिज की तो औकात ही नही
गहरा फ्रस्ट्रेशन एक उम्र के बाद होता है रे बाबा, इसलिये जरूर पढ़ने का, साक्षर होने का, अँग्रेजी भी सीखने का बोलने और समझने का नई तो लाइट जाने पर ससुरा टेलीप्रॉम्प्टर भी धोखा दे जाता है कब्बी कब्बी
***
|| मप्र में किसानों के साथ इस समय कोई नही है और बरसात हो रही जगह - जगह ||
सरपंच, सचिव, पटवारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा से लेकर नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम, सीईओ जनपद और जिला, कलेक्टर्स सिर्फ और सिर्फ लाड़ली बहना के प्रशिक्षण, विकलांग शिविर, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अभियान की खानापूर्ति और राष्ट्र निर्माता मास्टर लोग परीक्षा में लगे है, अपने एनजीओ भी प्रशिक्षण का कोटा पूरा करके अपने बिल सेट करने में लगे है जाहिर है सब काम बोले तो "सईं साट हो रियाँ है भिया"
मतलब इन सबको मार्च माह के आखिरी तीन सप्ताह ही याद आते है, कहने की आवश्यकता नही कि सिर्फ़ बजट खत्म करना है और अपना पेट भरना है, पूरी मशीनरी एक्टिव है तो जाहिर है ठेकेदार से लेकर फोटोकॉपी वालों तक की चांदी है
ऐसे में बरसात हो तो हो, ऐयाशियों का महत्व कम नही होगा, मीडिया को चुनाव के लिए दाना फेंक दिया गया है, बस वो भी यूट्यूब चैनल खोलकर नेता नगरी की रासलीला दिखाने को सज धज रहें है
मरण है तो किसान का और आम आदमी का जिसे हिम्मत करके साल भर का गेहूँ लेना है 3 - 4 क्विंटल और वो जुगाड़ में है कि कही से रुपया मिलें तो खरीद लें
मेरे बहुत से संवेदनशील कलेक्टर मित्र है उनसे अनुरोध है कि इस पर ध्यान दें, कम से कम सचिवों को गांव में रहने दें - उन्हें शिविरों में भोजन परोसने के मूर्खता पूर्वक आदेश निकालने के लिए तहसीलदार और एसडीएम को मना कर दें और बाकी फर्जी प्रशिक्षणों पर तुरंत रोक लगायें - आंगनवाड़ी से लेकर पटवारी, नायब तहसीलदार, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के एई साहेबान, सब इंजीनियर साहेबान आदि टाइप लोगों को अनिवार्य रूप से मुख्यालय पर रहने हेतु आदेशित करें
हो यह रहा है कि तरह - तरह के प्रशिक्षण इन दिनों गांव और ब्लॉक स्तर पर, जिला स्तर पर हो रहे हैं - लोग कुल मिलाकर वही हैं - सरपंच, सचिव और ग्राम पंचायत की तीन तदर्थ समितियों के सदस्य, आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ये लोग एक प्रशिक्षण में आधा दिन बैठते हैं - फिर उधर भागते हैं, फिर वहां से इधर आते हैं, फिर इधर से पंचायत जाते हैं, फिर पंचायत से जनपद जाते हैं, फिर जनपद से जिला जाते हैं, जिले से जिला अस्पताल जाते हैं, जिला अस्पताल से कलेक्टर की मीटिंग में जाते है, फिर वीडियो कांफ्रेंसिंग करते है, कलेक्टर की मीटिंग करके फिर गांव में आते हैं, फिर प्रशिक्षण में जाते हैं और एक दिन में चार - चार जगह घूम - फिर कर रात को घर चले जाते हैं , ऐसे में ना काम हो रहा है - ना कुछ सीख रहे हैं, और ना जनता के साथ खड़े हैं, इस तरह की खानापूर्ति करने का क्या मतलब है, और फायदा - फायदे की तो पूछिए मत - ठेकेदारों से लेकर प्रशिक्षण और भोजन बनाने वालों, स्टेशनरी, टेंट, ट्रांसपोर्ट, वीडियोग्राफर, फोटोग्राफर, इंटर नेट कैफ़े वालो और फ्लैक्स छापने वालों तक और दलालों को जितनी खुशी हो रही है इतनी खुशी तो पी साईनाथ की किताब "तीसरी फसल" में भी नहीं झलकी थी
पर सब चंगा सी, बागों में बहार है
***
ये कोई मौसम तो नही बरसात का
इतना दुख है संसार में और ये बारिश, खेतों में घूम रहा हूँ और देख रहा कि फसलें खड़ी है पककर कटने को, कटकर खलें में पड़ी है, थ्रेशर से निकलकर साफ़ हो रही है - सरसों, गेहूँ, चना, दालें और इफ़रात में प्याज, लहसन और ढेरों सब्जियां सड़ने लगी है अब तो - किसको दोष दें, अपने ही जाये दुख है, दोहन कर करके प्रकृति का सत्यानाश कर हम जगसिरमौर हो ही गए है
और ईश्वर भी जालसाज है बड़े वाला - किसानों को खून के आँसू पिला रहा है और हमारे शासकों को वोट की पड़ी है, शासकीय कर्मचारी ऐयाशी में मस्त है क्या कलेक्टर्स, एसडीएम, ग्राम पंचायत सचिव, पटवारी, या तहसीलदार साहेबान और कोई अतिशयोक्ति नही आँखों देखी कह रहा हूँ
बहरहाल, आप हम सब पकौड़े बनायें, चाय की चुस्कियों से आल्हादित हो और यह मदहोश कर देने वाला गाना सुनें
मित्र मनीष दांगी जो युवा किसान है, राजगढ़ में रहते है, रोज प्रदेश के सर्वमान्य नेता और किसान पुत्र, संवेदनशील मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहें कि किसानों की ओर ध्यान दें, पर महान सरकार अभी लाडली बहना योजना के तहत राखी मना रही है , बहनों के वोट कबाड़ने है हुजूर को, इसलिए "आया सावन झुम के" - हो गया है प्रदेश का माहौल
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...