वो सात दिन में अपना काम करके अनंत यात्रा पर निकल ही गया बन्दा आख़िर, एक दिन हमें भी यह सब छोड़कर जाना ही है, अब आदत हो गई और मौत से ख़ौफ़ नही होता, किसी सहेली सी लगती है और लगता है -"फूलै फूलै चुन लिए, काल्ह हमारी बार"
और फिर हमारे पास भी तो कुल चार ही दिन है जीवन में, काम करते रहो अपना और ऐसा कुछ कर चलो कि कोई तनिक ठहरकर ओम शांति लिख दें, समय हो तो कंधा देने आ जाए, समय हो तो दो घड़ी बुदबुदा दें, दो घड़ी सम्हल जाये अपने हालात में, दो घड़ी विचार लें, दो घड़ी मुस्काते हुए देख लें घर परिवार को कि सब ठीक है ना, अपने बाद की जुगत से सब ठीक चलता रहेगा ना ...क्योंकि वो कहते है ना - "उड़ जायेगा हंस अकेला"
सतीश बाबू बहुत जल्दी क्यों थी इतनी जाने की, एक भरपूर ठहाका तो और लगाते जमकर , वैसे ही गम कम है क्या इस संसार में
ख़ैर, ख़ुश रहो जहाँ भी रहो,
"मौत सबको आनी है,
कौन इससे छूटा है
आज जवानी पर इतराने वाले
कल तू ठोकर खायेगा ...."
जानी बाबू की कव्वाली लगा दें कोई रिकॉर्ड प्लेयर पर, मन उदास है - पिछले दस दिनों से मौत का तांडव ही नही रुक रहा
लोग बेतहाशा ढंग से मर रहें है, किसे फ़िक्र है बाबू, सब चुप है और व्यवस्था मुस्कुरा रही कि जिम्मेदारी कम हो रही उसकी
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सादर नमन
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