|| जाने वाले कभी नही आते ||
विश्वास करना ही मुश्किल हो रहा है, Pushpendra Pal Singh यानी पीपी सर , आपके साथ 2003 से मित्रता थी, माखनलाल पत्रकारिता विवि में नियमित जाना, आपके साथ दर्जनों कार्यशालाएं और बैठकें की है, कितनी ही जगहों पर हम लोग साथ साथ गए है - पचमढ़ी, बांधवगढ़, ओरछा, मांडव, चंदेरी, महेश्वर से लेकर कहाँ - कहाँ नही, सारी मीडिया की गोष्ठियां बेतहाशा याद आ रही है अभी और वो खिलखिलाहटें जो अब धरोहर बन गई इतनी जल्दी - अभी तो लम्बा सफ़र करना था पुष्पेंद्र जी
आपके विराट व्यक्तित्व और आपके साथ आपके पत्रकारिता के छात्र संग साथ होते थे मैं अक्सर मज़ाक में कहता कि "पुष्पेंद्र जी, आपको देखकर बेग पाइपर वाली कहानी याद आती है - आगे आप और पीछे पूरी फ़ौज" और यह हक़ीक़त भी था, देश के शायद ही कोई हिंदी भाषी युवा या अधेड़ पत्रकार होंगे जो आपके मुरीद न हो, हर कोई कहता था कि सर मेरे सबसे करीब है , भोपाल के माखनलाल विवि में कितना खुलापन और कितने सीखने के अवसर आपने छात्रों के अलावा भी लोगों को दिए, कितना वृहद नेटवर्क और कितना आपुलकी से हरेक के साथ बातचीत
विकास संवाद की राष्ट्रीय गोष्ठियों के साथ हर छोटे मोटे काम में साथ, गौतम भोपाल आया तो घूमना आपकी बुलेट पर, सौरभ, सोहन, सौरभ, सुमित, ब्रजेश, शालू, आनंद, सचिन, दयाशंकर, अनस और वे ढेरों नाम जो आज पत्रकारिता के क्षितिज पर जगमग कर रहें है आपके ही तो शिष्य है, आपका घर मतलब सबके लिए शरणगाह और सबसे बढ़िया कि एक माह हुआ नही कि आपका फोन - "संदीप भाई, कैसे है, कोई दिक्कत तो नही, कही बात करूँ, कुछ लिखकर दीजिये ना, नियमित लिखिए यहाँ से पेमेंट बढ़िया होता है, भोपाल आओ तो घर आओ बहुत दिन हुए"
कितनी स्मृतियाँ है , पत्नी की मृत्यु के बाद बिखरे थे पर सम्हल गए थे, विवि से माध्यम गए तब भी टूट गए थे पर फिर बड़े - बड़े उत्सव सरकार के लिए किए सब कुछ मनमाफिक नही होने के बाद भी महत्वपूर्ण काम किये - एकदम सहज, सरल और निष्कपट सा व्यक्ति - आप कहें कि बॉस मिलना है, एक कार्यक्रम में आपको आना है अतिथि बनकर तो कहते - अरे मैं आ जाऊँगा ये अतिथि का बोझ मत डालो मुझ पर
कितने ही युवा मित्र, पत्रकारिता के छात्र और मीडिया के मित्र उन्ही की वजह से बने और हम सब मिलकर जो गप्प शप करते, गोष्ठियों में रात को अंताक्षरी और सरलता से मीडिया के गुरू मंत्रों पर चर्चा वह अब कहाँ मिलेगा
स्तब्ध हूँ यह सब सुनकर, कुछ समझ नही आ रहा, देवास आये थे, तो पत्रकार मित्रों के आयोजित एक कार्यक्रम के बाद थोड़ी देर के लिये घर आये थे बोले 'संदीप भाई, आपके हाथ का बना कुछ खिला दो', उम्र में मुझसे छोटे थे और उन्हें हार्ट अटैक आया कल रात और सब खत्म हो गया - कुछ समझ नही आ रहा कि हो क्या रहा है
उफ़्फ़, भयावह है यह मृत्यु, कितनी ही लम्बी और सुखद स्मृतियाँ है उनके साथ, यह ठीक नही किया सर आपने, इतनी जल्दी कोई जाता है क्या ऐसे छोड़कर
कैसी अपशगुन वाली होली है जो जीवन में दोस्ती के रंग उड़ाकर चली गई
सादर नमन
[अपना ख़याल रखिये मित्रों, बड़ा विचित्र समय चल रहा है - तनाव, विवाद और अवसाद से दूर रहें, स्वस्थ रहें और ख़ुश रहने का जतन करें, दिल के दौरे बहुत ज़्यादा बढ़ रहें है ]
Comments