Skip to main content

Manoj Pawar's Rangoli on 7 March 2023 , Kuchh Rang Pyar Ke - Post of 12 March 2023

हमेंशा की तरह बालसखा और कलाकार Manoj Pawar की रंगोली कला ने देवासवासियों का मन मोह लिया था

शहर में प्रसिद्ध चित्रकार स्व प्रो अफ़ज़ल द्वारा शुरू की गई होली के अवसर पर सड़कों पर रंगोली बनाने की परम्परा आज भी जारी है
शादाब, आमेला से लेकर कई कलाकार अब इस कला में निपुण है और पारंगत होने की ओर अग्रसर है , एक रिटायर्ड शिक्षक राजकुमार चंदन तो स्थानीय तालाब में पानी पर दुनिया की सबसे बड़ी रंगोली बनाकर विश्व रिकॉर्ड बना चुके है
उल्लेखनीय है कि यह अलबेलों का शहर है और एक से एक धुरंधर है और नवरत्नों की कमी नही है, होली है तो यह भी कह दूँ कि नगीनों की भी कमी नही , दिलफेंक आशिक और मजनूँ भी बहुतेरे है शहर में, हर घर में गायक, शायर, कवि और फेंकूँ किस्म के नेता भी है, साहित्यिक वाद- विवाद से लेकर टुच्ची राजनीति वाले तो खैर हर जगह होते ही है इनका क्या कहना और इनका क्या उल्लेख करना - बस जीवित भर है और घटियापन में लगे रहते हैं हरदम
यूँ तो मालवा के लोगों ने जनसामान्य में संझा, मांडने और दीवारों पर भित्ति चित्र बनाना जारी रखा ही हुआ है, परंतु मराठा राज्य होने से मराठी ब्राह्मण और क्षत्रिय मराठा परिवारों ने सदियों से रंगोली की कला को ज़िंदा रखा है - इस परम्परा पर बहुत लिख चुका हूँ पर हर बार लगता है कि कम पड़ गया, यह महिलाओं और जेंडर के साथ एक विपरीत धारा के विरुद्ध रंगोली की बूंदों से कल्पना और खुलेपन का भी प्रतीक है, हवा के विरुद्ध बगावत का भी प्रतीक है और अपने तरह की जिद और अकड़ का भी श्रेष्ठ उदाहरण है
मनोज इस परम्परा को बखूबी निभा रहे है यह प्रशंसनीय है, नए बस रहे देवास में स्टेडियम के पास भी रंगोली एक उत्सव ही नही बल्कि बेहतरीन इवेंट बनते जा रही है और यह सुखद है और एक आश्वस्ति भी कि कला का विकेंद्रीकरण हो रहा, नए लोग, फाइन आर्ट्स के छात्र अपना हुनर इस बहाने निखार रहें हैं
बहरहाल, मनोज की रंगोली देखिये और होली मनाइए
रंग पंचमी की रँगारंग शुभकामनाएँ
अपनी तो परीक्षा है सो घर में बन्द है और पढ़ाई कर रहा हूँ











Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...