हमेंशा की तरह बालसखा और कलाकार Manoj Pawar की रंगोली कला ने देवासवासियों का मन मोह लिया था
शहर में प्रसिद्ध चित्रकार स्व प्रो अफ़ज़ल द्वारा शुरू की गई होली के अवसर पर सड़कों पर रंगोली बनाने की परम्परा आज भी जारी है
शादाब, आमेला से लेकर कई कलाकार अब इस कला में निपुण है और पारंगत होने की ओर अग्रसर है , एक रिटायर्ड शिक्षक राजकुमार चंदन तो स्थानीय तालाब में पानी पर दुनिया की सबसे बड़ी रंगोली बनाकर विश्व रिकॉर्ड बना चुके है
उल्लेखनीय है कि यह अलबेलों का शहर है और एक से एक धुरंधर है और नवरत्नों की कमी नही है, होली है तो यह भी कह दूँ कि नगीनों की भी कमी नही , दिलफेंक आशिक और मजनूँ भी बहुतेरे है शहर में, हर घर में गायक, शायर, कवि और फेंकूँ किस्म के नेता भी है, साहित्यिक वाद- विवाद से लेकर टुच्ची राजनीति वाले तो खैर हर जगह होते ही है इनका क्या कहना और इनका क्या उल्लेख करना - बस जीवित भर है और घटियापन में लगे रहते हैं हरदम
यूँ तो मालवा के लोगों ने जनसामान्य में संझा, मांडने और दीवारों पर भित्ति चित्र बनाना जारी रखा ही हुआ है, परंतु मराठा राज्य होने से मराठी ब्राह्मण और क्षत्रिय मराठा परिवारों ने सदियों से रंगोली की कला को ज़िंदा रखा है - इस परम्परा पर बहुत लिख चुका हूँ पर हर बार लगता है कि कम पड़ गया, यह महिलाओं और जेंडर के साथ एक विपरीत धारा के विरुद्ध रंगोली की बूंदों से कल्पना और खुलेपन का भी प्रतीक है, हवा के विरुद्ध बगावत का भी प्रतीक है और अपने तरह की जिद और अकड़ का भी श्रेष्ठ उदाहरण है
मनोज इस परम्परा को बखूबी निभा रहे है यह प्रशंसनीय है, नए बस रहे देवास में स्टेडियम के पास भी रंगोली एक उत्सव ही नही बल्कि बेहतरीन इवेंट बनते जा रही है और यह सुखद है और एक आश्वस्ति भी कि कला का विकेंद्रीकरण हो रहा, नए लोग, फाइन आर्ट्स के छात्र अपना हुनर इस बहाने निखार रहें हैं
बहरहाल, मनोज की रंगोली देखिये और होली मनाइए
रंग पंचमी की रँगारंग शुभकामनाएँ
अपनी तो परीक्षा है सो घर में बन्द है और पढ़ाई कर रहा हूँ
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