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Showing posts from March, 2011

एनजीओ पुराण भाग अठारह

आज वडगाँव में गए थे एक आदमी से मिले जिसका नाम रावण था पुछने पर उसने बताया की बचपन में उसका नाम श्रावण था पर लोगो ने रावण कर दिया , तब से आज ५५ वर्षो से वो इसी नाम के साथ ज़िंदा है. दस्तावेजो में भी वो रावण ही है, कितना मुश्किल है गलत नाम के साथ जीना और वो भी ऐसे नाम के साथ जो समाज में निंदनीय हो . शर्मनाक है यह सब और धन्य है श्रावण जो सबके बाद भी खुश है (इतिश्री एनजीओ पुराण भाग अठारह समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग सत्रह

ये देश का बड़ा नामी गिरामी संस्थान था जहां खूब समाज सेवा का काम भी होता था और देश के भावी रेडिकल चेंज एजेंट तैयार होते थे, सिगरेट, दारू और धूए के बीच में नयी पीढ़ी देश के लिए प्लान बनाती थी, और दिनभर अपने इशक में डूबी रहती थी हाँ इस सबमे हदे पार हो जाना कोइ नई बात नहीं थी, इसे देश में बदलाव की बयार के रूप में देखा जाता था, हाँ इससे बेचारे छोटे शहरों से आये लोगो को बड़ा अजीब लगता था पर उनकी सुनता कौन था(इतिश्री एनजीओ पुराण भाग सत्रह समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग सोलह

वो देश के पिछड़े इलाके में उस संस्था में काम के लिए चयनित हुई थी उससे स्पष्ट रूप से पूछा गया था कि क्या वो इन पिछड़े आदिवासियों कि बोली जानती है? उसके हाँ कहने पर ही उसे इस गरीब इलाके में भेजा गया था, पर जब रपट लिखने की बारी आई तो उससे बेहतरीन अंगरेजी में रपट लिखने को कहा गया क्योकि संस्था के लोग और रूपया देने वाले इन गंवारो की भाषा नहीं समझते थे(इतिश्री एनजीओ पुराण भाग सोलह समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग पन्द्रह

वो देश के पिछड़े इलाके में काम करता था लंबी लंबी यात्राये निकालना उसका पेशा था, और साल के छह माह वो विदेश में रहता था क्योकि यहाँ की गर्मी उसे सहन नहीं होती थी,राज्य के कमोबेश हर जिले में उसके ऑफिस थे जहा वो हर विदेश यात्रा से लाई नई उम्र की कमसिन लड़कियों के साथ रहता था और उन्हें अपनी नई पत्नी बताता था. में चकित हूँ उसकी मेधा पर, आज भी यह खेल जारी है, उसका में कायल हूँ (इतिश्री एनजीओ पुराण भाग पन्द्रह समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग चौदह

यदि कोई आपको बिना मांगे सलाह दे, ऐसी जानकारी दे जिसके बारे में आप जानते हो और जिसको जानने से कोइ फ़ायदा नहीं हो और कुछ नुकसान भी ना हो तो यकीन मानिए वो व्यक्ति एनजीओ वाला ही होगा (इतिश्री एनजीओ पुराण भाग चौदह समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग तेरह

संस्था को गांव में शौचालय बनाने का ठेका मिला था, सारे गांव में यदि शौचालय बन जायेंगे तो संस्था के फायदे के साथ लोगो को भी फ़ायदा होगा, इस हेतु सब घूम रहे थे . एक घर के आगे बहुत झिक झिक के बाद एक गरीब सी दुबली पतली महिला ने कहा कि बाई जी, खाने को ही कुच्छ नहीं तो संडास बनवाकर क्या करेंगे पेट में कुछ जाए तो संडास में जाए ना?(इतिश्री एनजीओ पुराण भाग तेरह समाप्त)

अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं

अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं पहली ही नजर में अपने गठन और कथ्य के कारण चौंकाती हैं। लेकिन इन कविताओं के भीतर प्रवेश करने पर हमें कविता का एक अजस्त्र स्त्रोत दिखायी पड़ता है जिसमें हम खोते चले जाते हैं। अंबर लय और तुक में कई तरह के प्रयोग करते दिखते हैं। उनके कहन में एक अलहदा किस्म की सुगंध है। इन कई कारणों से अंबर कवि और कविताओं की भीड़ में अलग से पहचाने जा सकते हैं। एक दाड़ो दोई हाथ नयन मिलाये पर फोड़ दिए काम न आये जी तोड़ दिए तात-मात रोग में छोड़ दिए निज भ्राता लूट, ठोंका माथ दुखी-दीन पलटकर न देखे लुन्ठना, लीलना ही लेखे नख से शिख मेखें ही मेखें किया कुकर्म धोबन के साथ. दो सुनो मेरी कथा जीवन गया बृथा बाहर सारे वैभव भीतर भरी व्यथा सुनो मेरी कथा इस तरह जीने को मैं बार बार मरा हूँ गटागट जहर पिया कुछ यों मुझ लोलुप तुकबंद ने जीवन जिया भर घाम एक पाँव ठाढ़ा रहा हाट बीच सब बेचा-खरीदा भू, भवन, भूषण, वसन, अवसन देह, नेह, तिया शेष बूढ़ा पिंड फूटी आँख, टूटे हाथ, पछताता हिया लगा गया काल माथे के नीचे पाथर का तकिया तीन संगी मिलना बहुत दुहेला घाम की घुमरी में हैं बस बेला की धूल दोपहर ठाढ़ी लिल

एनजीओ पुराण भाग बारह

प्रदेश में वो सब वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी थे, एनजीओ वालो से उनकी दोस्ती होना स्वाभाविक था, वो ज्ञान देते और ये अनुदान लेते, इस तरह की मिलीभगत से राज्य अपनी कल्याणकारी योजनाओं का काम कर रहा था. कालान्तर में धीरे धीरे ये रिटायर्ड होते गए, एनजीओ वालो ने उन्हें मदद की, और जो दुकाने इन लोगो ने नौकरी के आखिर दिनों में खोली थी, चलाने में मदद की. आजकल सब अधिकारी समाजसेवा की दुकाने चलाते है.(इतिश्री एनजीओ पुराण भाग बारह समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ग्यारह

एक वैज्ञानिक था, नौकरी से तंग आकार उसने समाजसेवा का काम ले लिया ठेके पर, इसके साथ साथ उसने हर जिले में कंप्यूटर की दुकाने भी खोली, बाद में वो बड़े ठेके लेने लगा, फिर उसने सबसे पिछड़े प्रदेश में विश्वविद्यालय खोला और बाद में तो विश्वविद्यालय की भी चैन खोल ली, इस तरह से वामपंथ की सीढ़ी से वो पूंजी की सीढ़ी पर चढ गया, आजकल देश का बिरला शिक्षाविद है वो.(इतिश्री एनजीओ पुराण भाग ग्यारह समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग दस

वो देश के सबसे बड़े संस्थान में काम करता था, फिर उसने गांव जाने की सोची, शिक्षा में नवाचार की सोचे, अपने आय ए एस दोस्तों से संपर्क किया, विदेशी पत्नी से शादी की और फिर पिछड़े प्रदेश में नवाचार का बेहतरीन काम किया बस इसी काम के बल पर दिल्ली के विश्वविद्यालय में विभाग प्रमुख हो गया, फिर रिटायर्ड होकर कन्सल्टंट बन गया आजकल खूब लिखना पढाना और रुपया कमाना यही काम है, जय हो शिक्षा और नवाचार की. (इतिश्री एनजीओ पुराण भाग दस समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग नो

वो एक भला आदमी था, जिंदगी भर बड़ी कंपनियों के खिलाफ लड़ता रहा, मजदूरों को संगठित किया , फिर महिलाओं को शोषण के खिलाफ उकसाया, मोर्चे लिये, सरकारों के खिलाफ बोलता रहा कुल जमा अपना एक कैडर तैयार किया प्रदेश में. फिर एक दिन चुपके से देश के सबसे बड़े घराने में बड़े पद पर चला गया, कारपोरेट सोशाल रिस्पोंसिबिलिती के नाम पर आजकल मजदूरों के साथ काम करता है. (इतिश्री एनजीओ पुराण भाग नो समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग आठ

उसने जिंदगी भर संघर्ष किया, आंदोलन किये, संगठन बनाये, पुलिस की मार खाई, फिर एक संस्था बनाकर खूब अनुदान लिया और समाज परिवर्तन का बेहतरीन काम किया. वामपंथ की कडवी कुनैन पीकर उसने पूंजीवाद की बांसुरी बजाई. आजकल वो एक लाख रुपया कमाता है देश सबसे बड़े पूंजीपति के महाविद्यालय में समाजसेवा का पाठ्यक्रम पढाता है जय हो . . ( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग आठ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग आठ

उसने जिंदगी भर संघर्ष किया, आंदोलन किये, संगठन बनाये, पुलिस की मार खाई, फिर एक संस्था बनाकर खूब अनुदान लिया और समाज परिवर्तन का बेहतरीन काम किया. वामपंथ की कडवी कुनैन पीकर उसने पूंजीवाद की बांसुरी बजाई. आजकल वो एक लाख रुपया कमाता है देश सबसे बड़े पूंजीपति के महाविद्यालय में समाजसेवा का पाठ्यक्रम पढाता है जय हो . . ( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग आठ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग सात

उसने देश की समाज सेवा के सर्वोच्च संस्था से पढाई करके न्यूनतम मजदूरी पर पांच साल काम किया देश के पिछड़े प्रदेश में फिर वो देश के दक्षिण के राज्य में एक सरकारी विभाग में एक बड़ी संस्था की निदेशक बन गयी, माँ -बाप दोनों सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी थे सो निदेशक बनाना ही था, आजकल वो सामाजिक अंकेक्षण कर नाम और रुपया कमा रही है खादी के महंगे कपडे से अंकेक्षण ही हो सकता है धन्य है यह देश. ( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग सात समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग छः

वो देश की सर्वोच्च नौकरी यानि सेवा में था हां ऐसा मानते थे कि उसका सामाजिक सरोकार बहुत गहरा था, सो उसने बीस साल नौकरी करने के बाद वो नौकरी छोड़ दी और फिर देश सेवा में लग गया फिर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सेवाए देने लगा फिर कई जगहों पर वो पूजा जाने लगा. आजकल वो भूख, भय और प्रजातंत्र पर लिखता पढ़ता है और खूब यश कमाता है. ( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग छः समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग पांच

यह देश का विचित्र समय था जब बेरोजगारी भीषण हो गयी थी नौजवानो को काम नहीं था, तो सात दोस्तों ने एक बिसिनेस करने का सोचा, खूब विचार करने की बाद उन्होंने तय किया कि एक एनजीओ डाला जाए - समाज सेवा की समाज सेवा और रुपये का रुपया साथ में शोहरत अलग से मिलेगी, पुण्य तो पक्का है.( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग पांच समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग चार

एक आदमी था देश के एक इन्गिनीरिंग कालेज से पढ़ा था, जब उसे कोइ नौकरी नहीं मिली तो उसने एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था में समाज सेवा का काम ले लिया, और कालान्तर में वो दूसरी संस्था में क्षेत्र का प्रमुख बन गया, आजकल वो कई प्रकार की सेवाओं में व्यस्त है और अपने दोस्तों यारो और रिश्तेदारों को इस नई नवेली संस्था में नौकरिया देता है और फिर कई लोगो को निपटाने लगा ै.( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग चार समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग तीन

एक लड़की थी या है वो दिल्ली के जे एन यूं से पढ़ी थी फिर उसकी शादी नहीं हुई वो एनजीओ में आ गयी. उसने एक बढ़िया काम किया जिसने नौकरी दी थी उसके गड्ढे खोदने शुरू किये और फिर सबको हैरान परेशान करके, अपनी मोटी काली काया का इस्तेमाल करके नौकरी छोडने पर मजबूर कर दिया, आजकल वो शराबी महिला प्रदेश के एक बड़े एनजीओ की मालकिन बनी बैठी है.( इतिश्री एनजीओ पुराण भाग तीन समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग दो

एक आदमी था या है. बेचारा जब किसी लायक नहीं रहा और कमोबेश हर जगह से हकारा गया तो उसने एक एनजीओ वाले से रिश्ता जोडने की सोची और वो अपने कुत्सित प्रयासों में सफल हो गया बस फिर क्या था उसके दिन फिर गए उसने उस महान व्यक्ति की बहन से शादी कर ली. वो नाकारा आदमी आजकल एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का शेत्रीय प्रभारी है. जय हो साले महाराज की. जैसे उसके दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे. इतिश्री एनजीओ पुराण भाग दो समाप्त

एनजीओ पुराण भाग एक

एक आदमी था या है, उसने १५ साल तक ट्रेक्टर बेचा और फिर ना जाने क्या क्या नौकरिया की उसे हर जगह से निकाल दिया गया, आखिर उसे काम मिल गया और वो एक प्रतिष्ठित संस्था में काम करने लगा और प्रदेश भर का मुखिया बन गया. उस नौकरी का नाम था एनजीओ.आजकल वो ट्रेक्टर बेचने वाला आदमी शिक्षा, एड्स और व्यावसायिक शिक्षा का सिद्धहस्त खिलाड़ी है और ढेर सारा रुपया कमाता है. जैसे उसके दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे. इतिश्री एनजीओ पुराण भाग एक समाप्त