ये देश का बड़ा नामी गिरामी संस्थान था जहां खूब समाज सेवा का काम भी होता था और देश के भावी रेडिकल चेंज एजेंट तैयार होते थे, सिगरेट, दारू और धूए के बीच में नयी पीढ़ी देश के लिए प्लान बनाती थी, और दिनभर अपने इशक में डूबी रहती थी हाँ इस सबमे हदे पार हो जाना कोइ नई बात नहीं थी, इसे देश में बदलाव की बयार के रूप में देखा जाता था, हाँ इससे बेचारे छोटे शहरों से आये लोगो को बड़ा अजीब लगता था पर उनकी सुनता कौन था(इतिश्री एनजीओ पुराण भाग सत्रह समाप्त)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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