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Showing posts from May, 2013

थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे -अशोक वाजपेयी

"विदा" तुम चले जाओगे पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद  हवा में धरती की सोंधी-सी गंध  भोर के उजास में  थोड़ा-सा चंद्रमा खंडहर हो रहे मंदिर में अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार तुम चले जाओगे पर थोड़ी-सी हँसी आँखों की थोड़ी-सी चमक हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी यहीं रह जाएँगे प्रेम के इस सुनसान में तुम चले जाओगे पर मेरे पास रह जाएगी प्रार्थना की तरह पवित्र और अदम्य तुम्हारी उपस्थिति, छंद की तरह गूँजता तुम्हारे पास होने का अहसास तुम चले जाओगे और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे -अशोक वाजपेयी

An Epitaph

एक नया जीवन चाहिए होगा, नए लोग, नई प्रेरणाएँ, नए स्वप्न, और नई जमीन - जहाँ जाकर सुप्तावस्था से जागकर पोषित - पल्लवित होना होगा तभी बात बनेगी............आज 'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' पांचवी बार देखकर लगा कि हम नए अध्याय तभी लिख सकते है जब अपने अंदर के डर निकाल दें और फ़िर दूर कही गहरे पानी पैठें या ऊँचे आसमान में निर्द्वंद उड़े !!! अपने कच्चे पक्के सपनों को ऊँची उड़ान देना जरूरी है. बस सपने साफ हो, कही से मटमैलापन उनके आसपास ना छलकता हो, उन सभी लोगों से दूर रहना होगा जो कही से अपने होने का दम भरते है, उस माहौल से दूर जाना होगा जो आपको एक फेंटेसी की दुनिया में वास्तविकता का बोध कराये चाहे वो टमाटर उत्सव जैसा गल्प या बैलो की दौड़ हो या अपने अतीत की काली परछाईयों से मुक्ति की कामना. Epitaph  28th May 2013 कौन ठगवा नगरिया लूटल हो चंदन काठ के बनल खटोलाता पर दुलहिन सूतल हो उठो सखी री माँग संवारो दुलहा मो से रूठल हो आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा नैनन अंसुवा टूटल हो चार जाने मिल खाट उठाइन चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता छूटल...  

प्यार तभी हो सकता है जब आप गहरी घृणा को अपनाने के लिए तैयार हो……

हम    सब अंदर से कितने खोखले है और दिखावा ऐसा करते है मानो सृष्टि के रचयिता हम स्वयं हो .......... भूलना    चाहते हो सब कुछ तो पहले उस सबको याद करो जिसमे तुम हताहत हुए थे, तार-तार हो गई थी इज्जत तुम्हारी, छलनी कर दिए गये थे तुम्हारे स्वप्न उनींदे से, रौंद दिया गया था सारे दिवास्वप्नों को भर दोपहरी में और फ़िर लादकर अपना वजूद तुम पर कहा गया था कि लो तुम्हें अब आजाद किया जाओ.... विचरों संसार में और मत भूलना कि सब नश्वर है, माया है और यही चुकाना पडता है लिए-दिए का.........बस याद रखो...... यह सब चुकता करो एक-एक हिसाब और निकल पडो.... उस अंतहीन यात्रा पर जो हर पल खत्म हो रही है तुम्हारे भीतर बगैर किसी का संज्ञान लिए......... बचना    चाहते हो तो इन्हें मारना होगा पहले जो बचाने का स्वांग धरकर तुम्हारे भीतर पैठ करके बैठे है जीवन    की सार्थकता अपनी मौत के आईने में ही देखी जा सकती है जब तक मौत को आप अपने समक्ष नहीं देखते तब तक जीवन को ढोते और खींचते चले जाने का कोई और अर्थ तो नहीं है प्यार    तभी हो सकता है जब आप गहरी घृणा को अपनाने के लिए तै

स्वास्थय की दुर्गति और माधुरी बहन की नाजायज गिरफ्तारी.

माधुरी बहन को मप्र शासन के नुमाइंदों ने गिरफ्तार किया. बडवानी मे मनरेगा का बदला लेने के लिए बेताब जिलाधीश और शासन को आखिरकार एक ऐसा मौका मिल ही गया कि वे माधुरी बहन को गिरफ्तार कर लें. एक झूठे मामले मे उन्हें गिरफ्तार करके डरा हुआ प्रशासन क्या साबित करना चाहता है. जननी सुरक्षा के इतने बुरे हाल है कि सडकों पर प्रसुतियाँ रोज हो रही है और सरकारी अस्पताल कुछ नहीं कर रहें. हाल ही मै मैंने एक अध्ययन समाप्त किया तो पाया कि नगद राशि के प्रलोभनों की स्थिति बहुत खराब है खासकरके स्वास्थय विभाग मे. मेरे अध्ययन के दौरान ही सागर के जच्चा वार्ड मे दो नवजातों की मृत्यु हो गई थी, दोनों सद्य प्रसूताओं ने बताया था कि अस्पताल मे डाक्टर ड्यूटी पर होते हुए भी नहीं पहुंचे थे वार्ड मे, जब मैंने सम्बंधित अधिकारी और ड्यूटी डाक्टर से कहा और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थय मिशन के नियमों का हवाला देते हुए "डेथ आडिट" का पूछा तो बताया गया कि जब वो नवजात बीमार था तो सम्बंधित महिला डाक्टर आपरेशन वार्ड मे तीन महिलाओं के आपरेशन कर रही थी और शिशु रोग विशेषग्य अपनी सीट पर नहीं थे. बाकि जच्चा वार्डों की हालत बह

बदलना ही होगा वह सब जो सिर्फ और सिर्फ बदलने से ही बदलेगा.........

उसने कहा तो था कि कि वो जंग जीत लेगा - पर धीरे धीरे शाम ढलने लगी, सूरज मद्धम होता गया........कही दूर सडकों पर परछाईयाँ लंबी होती गई और फ़िर वो थक हार कर एक जगह बैठ गया, बहुत सोचा बिचारा, अपने दोस्तों को याद किया, सारे पाप-पुण्यों को याद करता हुआ चुपचाप बैठा रहा और फ़िर उसने अपने चारों ओर एक बार घूम कर देखा, बहुत बारीकी से आने वाली हर आवाज को सुना- महसूसा और फ़िर पाया कि यही समय है एक निर्णय लेने का....अचानक उसे याद आया कि कई कागजात है उसके पास यहाँ-वहाँ और फ़िर त्वरित गति से भागता हुआ अपने दडबे मे गया और खोल दी उसने पोटली और बिखेर दिए वो सब कागज़ जो उसके होने को परिभाषित करते थे और उसकी अस्मिता को इतने सालों से सहेजकर रख रहे थे............बस अब मोह खत्म हो गया था.......हाथों मे एक खाली झोला रखा और चल दिया अपने लक्ष्य की ओर.... और आज उसे किसी की पर्वाह नहीं है, आज उसे किसी का डर नहीं है, आज उसे किसी की नहीं सुननी है, आज उसे किसी माकूल फैसलें पर पहुँचना ही है, ताकि आने वाले समय मे फ़िर कोई इस तरह से हैरान ना हो............ इस तरह से ज़िंदा रहने का कोई मतलब नहीं है कब तक ढोया जाये........बस अब

The Harsh reality.......

The Harsh reality.......

नैहरवा हम का न भावै - कबीर........

http://www.youtube.com/watch?v=_6aJchKdDvo तुम्हारे लिए ..............सुन रहे हो ................कहाँ हो तुम............. और यह नैहरवा अब ज्यादा सताता है...... जीवन से लगाव और भटकाव अब खामोश होने को है, रंग-रंगीली गाड़ी चलाकर बहुत भटक लिए, अब इस पार से उस पार देखने का समय आ गया है जो कबीर कहते है, वही खुसरो कहते है कि कि गोरी सोई सेज पर, सर पर डारे केश, चल खुसरों घर आपणे, रैन भई चहूँदेस...........यह चलाचली की बेला है, यह समय तपते सूरज के बीच से गुजर जाने का समय है, यह निस्तब्ध रात मे पुरे चन्द्रमा के सानिध्य मे से हलके से गुजर जाने का समय है. पूरी धरती एक सन्नाटे मे है और बेचैन.... जिस तरह से कही से दूर आवाजों के घेरे पास आ रहे है, कोलाहल भयभीत कर रहा है, कही दूर गहरे पानी मे से सुबकियों का दर्द पानी की सतह को अपने निर्वात से भर दे रहा है, क्योकि मन पूरी तैयारी से एक निर्विघ्न यात्रा पर निकल पड़ा है, उसमे लगता है कि अब बस यही निर्वाण है क्योकि प्रारब्ध भी यही था था ........वो कहते है कि "सुपने में प्रीतम आवै, तपन यह जिय की बुझावै" तो अब क्या बचा है यहाँ......... और पं

तुम्हारे लिए.........सुन रहे हो ...........कहाँ हो तुम.........डफरीन

आखिर कौन है यह शख्स जो मेरे भीतर पाँव पसारे रह रहा है गत पांच माह से .......? आज तक तो मै नहीं समझ पाया.............पर मामला कुछ गंभीर है और अब जवाब देना ही होगा अपने आपको भी .........!!!!! जिस दिन यह सोच लूंगा कि अपने होने और ना होने से जीवन मे कोई फर्क नहीं पडने वाला उस दिन यह नैराश्य, आसक्ति और त्याग सब खत्म हो जाएगा और वह धुंध जो तुम्हारे होने से मेरे होने को ढक लेती थी, वह भी समेट लूंगा......और फ़िर इस सपाट बियाबान मे से लंबी होती जीवन डोर को समेट कर कही दूर चला जाउंगा देखना फ़िर कभी दौरे नहीं पड़ेंगे इस तरह साँसों के और नहीं होगा उद्दाम भावनाओं का ज्वर....सुन रहे हो..... कहाँ हो तुम........ आज फ़िर याद आ गया वो सब कुछ- जो सिर्फ तुम्हारे होने से ही घटित होता था और आज जब मेरे पास नहीं हो तुम यहाँ सम्पूर्ण भौतिक रूप से तो मै पथरा गया हूँ.......क्या निराश हुआ जाये......? अब जबकि कुछ बचा ही नहीं है और छठे चौमासे बात करना मानो एक बार फ़िर से अपने आपको भ्रम मे रखना है कि जीवन का शाश्वत रुदन जारी है साँसों के बीच से जीवन की रूठी हुई गाड़ी को ढोते हुए श्मशान तक खींचते हु

on Mother's Day 12 May 2013

सैयद सिब्ते अली सबा

                                                         सैयद सिब्ते अली सबा सिब्ते-अली ’सबा’ रावलपिण्डी के क़रीब एक फ़ैक्टरी में मामूली मुलाज़िम थे और वहीं 41 साल की उम्र में उनकी वफ़ात (मृत्यु) हुई। सिब्ते अली सबा की किताब ’तश्ते-मुराद’ (1986) उनके मृत्यु के बाद छपी । ये कह के उसने शज़र को तने से काट दिया कि इस दरख़्त में कुछ टहनियाँ पुरानी है हम इसलिए भी नए हमसफ़र तलाश करें हमारे हाथ में बैसाखियाँ पुरानी है अजीब सोच है इस शहर के मकीनों का मकाँ नए है मगर खिड़कियाँ पुरानी है पलट के गावँ में, मैं इसलिए नहीं आया मिरे बदन पे अभी धज्जियाँ पुरानी है  

नरेश सक्सेना दीर्घायु हो सृजनशील रहे

हिन्दी के वरिष्ठ कवि श्री नरेश सक्सेना का आज लखनऊ मे सम्मान है. नरेश जी दीर्घायु हो सृजनशील रहे, इन्ही मंगल कामनाओं के साथ......हम देवास के साथी प्रयासरत है कि उन्हें यहाँ बुलाये और ओटले पर उनकी कवितायें सुनें देखे कब मौका आता है.? . I मुझे एक सीढ़ी की तलाश है सीढ़ी दीवार पर चढ़ने के लिए नहीं बल्कि नींव में उतरने के लिए मैं किले को जीतना नहीं उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूँ ....! II दुनिया के नमक और लोहे में हमारा भी हिस्सा है तो फिर दुनिया भर में बहते हुए खून और पसीने में हमारा भी हिस्सा होना चाहिए - नरेश सक्सेना

"माई तोरा ख़ातिर" - मजरूह सुल्तानपुरी

एक नायाब गीत और शब्द मजरूह सुल्तानपुरी के : साभार Adnan Kafeel "माई तोरा ख़ातिर" माई री हाँ माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की माई री ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाये ना तन मन भीगो दे आके ऐसी घटा कोई छाये ना मोहे बहा ले जाये ऐसी लहर कोइ आये ना ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाये ना पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी पी की डगर में बैठा मैला हुआ री मोरा आंचरा मुखडा है फीका फीका नैनों में सोहे नहीं काजरा कोई जो देखे मैया प्रीत का वासे कहूं माजरा पी की डगर में बैठा मैला हुआ री मोरा आंचरा लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी माई री ... आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे बैंया की छैंया आके मिलते नहीं कभी साँवरे दुःख ये मिलन का लेकर काह कारूँ कहाँ जाउँ रे आँखों में चलते फिरते रोज़ मिले पिया बावरे पाकर भी नहीं उनको मैं पाती माई री ... - मजरूह सुल्तानपुरी कब से खोज रहा था इन शब्दों को जो बहुत करीब है दिल और दिमाग के ......धन्यवाद अदनान

पांच वर्षीय परीक्षा

पांच वर्षीय परीक्षा                                 (सभी प्रश्न अनिवार्य है केवल अंत मे से किसी एक को हल करिये) प्रश्न 1 -  2 /3 जी के प्रकार और इसमे सम्मिलित भागीदारों के नाम और उनके कार्यों पर प्रकाश डालिए प्रश्न 2-  कोयले का हमारे जीवन मे क्या महत्व है इसकी राजनैतिक व्याख्या करते हुए देश मे कोल समस्या पर प्रकाश डालिए. प्रश्न 3-  राजनीती  मे महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डालते हुए तानाशाही और सत्ता के सन्दर्भ मे भारत मे नारी पूजा के विभिन्न रूपों  को प्रस्तुत कीजिये. प्रश्न 4-  भारतीय प्रशासन सेवा के सन्दर्भ मे इस कथन की व्याख्या करें कि "भारतीय प्रशासन सेवा इस देश के पतन के लिए एकमात्र जिम्मेदार व्यवस्था है" प्रश्न 5- राजनीती मे तोते की परिभाषा को समझाते हुए इसके कार्यों पर विस्तृत रूप से टिप्पणी करें या राजनीती मे बकरे की ऊपादेयता पर व्याख्या करें और इसके महत्व पर सारगर्भित टिप्पणी करें. (सभी प्रश्नों के अंक समान है, कृपया रफ कार्य और भडास हेतु फेसबुक जैसे विकल्प मौजूद है यहाँ उत्तर पुस्तिका पर अपनी भड़ास निकाल कर सफाई के अंक व्यर्थ ना जाने दे)

जंगल प्रांत मे बिल्लियाँ

I जंगल के सोलह प्रांतरों मे नयी व्यवस्था बनाई गई थी सिर्फ दो बिल्लियाँ थी जो यह तय कर रही थी कि किन चूहों और लोमड़ियों को सूबेदार बनाया जाये और इसमे एक बड़ा जो शेर जैसा दिखता होगा उस सियार को सरदार बनाया जाये ...........बस काम शुरू हो गया बाहरी माल था और शिकार भी वही थे पुराने पापी और पुराने गठिया के रोगी........जंगल प्रांत मे बिल्लियाँ आपस मे लड़ मरी एक जवाँ बिल्ली ने बूढ़ी बिल्ली से तंग आकर जंगल छोड़ दिया आजकल वो बूढ़ी बरलाई की बिल्ली गरियाती फिरती है और पूरी मलाई खा रही है. जंगल के सोलह प्रांतरों मे हालात कोई सुधरे तो नहीं है पर नए लोगों के आने से स्थानीय कुत्ते, सुअर, खरगोश और मधुमख्खियाँ सतर्क हो गई है कि मलाई साफ़ करने वालों मे बँटवारा लेने वाले बढ़ गये है......... II यह एक ऐसी बिल्ली की कहानी है जो एक सीधे सादे तोते को और उसके सलाहकार बगुले को सिर्फ अपने महिला जेंडर होने के नाते घटिया राजनीती करके सत्ता हडपने की है. यह मोटी काली घाघ बिल्ली बहुत शराबी थी और जंगल मे हर जगह से हकाल दी गई थी, बिल्ली ने एक जगह ऐसी देखी जहाँ तीन जानवर बैठकर कुछ ठोस सार्थक काम कर रहे थे, घर प

जंगल के बीचोबीच पशु साक्षरता सदन

जंगल मे कमोबेश सब साक्षर हो चुके है पर जो ठीक जंगल के बीचोबीच पशु साक्षरता सदन बनाया गया था वहाँ अब बकरियां रमती है, गधे बिचरते है और सांड मद मस्त होकर भांग घोटे मे पड़े रहते है, परिसर मे कबूतर की गुटर गूं सुनाई देती है और कुत्ते बिल्लियों और बकरियों की लेंडीयाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है. सारा दिन कुछ शाने कौवे, लोमड़ी और तीतर-बटेर सारे जंगल मे शिकार खोजते रहते है कि कही से कोई मुर्गा आ जाये और फ़िर ये लोग उसे नोच लें. बहुत सभ्य तरीका है नोचने का कि वे बाकायदा लिखकर, प्रवचन देकर और अनुसंधान करके रूपया ऐंठते है इससे दो फायदे होते है- एक तो नाम की भूख खत्म होती है दूसरा रूपया कमा लेते है. बस दुखी है तो सांड जो पहले भी किसी काम का नहीं था और ना अब है. बस सारा दिन पानी मे पड़े-पड़े सड गया है उसके वंश मे एकाध ही होगा जो शायद उसके नाम का रोना रो लेगा पर जंगल मे सारे छोटे-मोटे जीव जंतु उससे बेहद घृणा करते है. सांड जो किसी काम का नहीं बचा है पता नहीं किस गुरुर मे अभी तक टिका है पर अब जंगल छोडने का मतलब भी नहीं है ना- क्योकि जो भांग यहाँ मिल रही है उसे प्राप्त करने के लिए तो

Welcome to Social Work Field TISS Graduates......

a nice and wonderful pair of SRD, TISS Mumbai , They really did hard work and when I was there they would always discuss with me on social problems of Jharkhand and always tried to learn more and more.today when they both are Post Graduated  and Graduated, I see a spark in them and also look forward for their dazzling Future. I am really proud of you.......and happy to see you after convocation  Khudi Ram Mahto  &  Kranti Kumari  - You are really Pride Students of TISS..... Our tenure in SRD Tuljapur bought me close to all this young budding social workers especially  Akshat Krishna ,  Varun Kumar ,  Shailja Nand   Sandeep Chaurasia  Ashish Borade.  Lal Tlaite Lal   Satyajit Kale   Vishnu Govindwad Lh Lallen Khongsai  Nikita Mishra, Pragyan Behara and all were so nice and enthusiastic students that we also learnt so many things from them. Above all Pushpendra Kumar was the team leader........wow what are the sweet memories...... Wish you all the Best in all wal

यश मालवीय की तीन कविताएं

कहो सदाशिव कहो सदाशिव कैसे हो! कितने बदल गये कुछ दिन में तनिक न पहले जैसे हो खेत और खलिहान बताओ कुछ दिल के अरमान बताओ ऊंची उठती दीवारों के कितने कच्चे कान बताओ चुरा रहे मुंह अपने से भी समझ न आता ऐसे हो झुर्री–झुर्री गाल हो गये जैसे बीता साल हो गये भरी तिजोरी सरपंचों की तुम कैसे कंगाल हो गये चुप रहने में अब भी लेकिन तुम वैसे के वैसे हो मां तो झुलसी फसल हो गयी कैसी अपनी नसल हो गयी फूल गए मुंह दरवाजों के देहरी से भी ‘टसल’ हो गयी धंसी आंख सा आंगन दिखता तुम अब खोटे पैसे हो भूले गांव गली के किस्से याद रहे बस अपने हिस्से धुआं भर गया उस खिड़की से हवा चली आती थी जिससे अब भविष्य की भी सोचों क्या थके हुए निश्चय से हो घर–आंगन चौपाल सो गये मीठे जल के कुएं खो गये टूटे खपरैलों से मिलकर बादल भी बिन बात रो गये तुमने युद्ध लड़े हैं केवल हार गये अपने से हो चिड़िया जैसी खुशी उड़ गयी जब अकाल की फांस गड़ गयी आते–आते पगडंडी पर उम्मीदों की नहर मुड़ गयी अब तो तुम अपनी खातिर भी टूट गये सपने से हो सुख का ऐसा उठा फेन था घर का सूरज लालटेन था लोकगीत घुट गये गले में अपना स्वर ही ता

न मैं जीवित हूँ, न मनुष्य हूँ- - निर्मल वर्मा

"अगर मै दुःख के बगैर रह सकूं, तो यह सुख नही होगा; यह दूसरे सुख की तलाश होगी; और इस तलाश के लिए मुझे बहुत दूर जाना होगा; वह स्वंय मेरे कमरे की देहरी पर खड़ा होगा, कमरे की खाली जगह को भरने.... ...किंतु जिस दिन कोई ऐसा क्षण आएगा, जब मैं यह सोच सकूँगा - कि न यह मैं हूँ, न यह क्षण मेरा है, न मेरी अपनी कोई जगह है, न मैं जीवित हूँ, न मनुष्य हूँ... इसलिए जो नहीं हूँ, उसे कौन मुझसे छीन कर ले जा सकता है? जिस दिन मैं यह सोचूँगा, उस दिन मैं मुक्त हो जाऊँगा, अपनी स्वतंत्रता से मुक्त, जो अंतिम गुलामी है... " - निर्मल वर्मा

भारतीय शास्त्रीय संगीत और गायिकाएं - एक नए अध्याय की तैयारी.और जन से जुड़ाव का जोश

अभी जब शमशाद बेगम का इन्तेकाल हुआ तो बहुत कुछ पढ़ा उनके बारे मे कल युनुस भाई ने भी भास्कर मे उन्हें शिद्दत से याद किया. मैंने इस बीच महिला गायिकाओं के बारे मे थोड़ा टटोला, तो पाया कि हमारे यहाँ बड़ी महान गायिकाएं हुई है फ़िल्मी दुनिया से लेकर कच्चा और पक्का गाने वाली. ऐसी ही परम्परा मे भारतीय शास्त्रीय संगीत मे भी इधर  कई गायिकाएं पिछले तीन दशकों से बेहद सक्रीय नजर आती है परन्तु उनका काम बहुत ज्यादा दिखता नहीं है. अधिकांश गायिकाओं की समस्या है कि वे या तो अपने गुरु के साथ लगाकर गाती रही और खत्म हो गई या किसी महान संगीतकार गायक के परिवार मे होने से संगीत सीखा और फ़िर पति, पिता, भाई या पुत्र का साथ देते देते गाने लगी और फ़िर कुछ अपने स्तर पर छोटे-मोटे काम करके या रचकर धीमे धीमे खत्म होती गई. कुछ अपवाद जरुर है पर व्यापक तौर पर यह लगा कि शास्त्रीय संगीत मे अपनी पहचान बनाने के लिए जिस स्तर पर काम करना था - वो नहीं किया गया या हो सकता हो उन्हें अवसर नहीं मिला. फिल्मों की बात अलग है नूरजहां, सुरैया, लता, आशा, उषा, वाणी जयराम, सुलक्षणा पंडित, सलमा आगा, अलका, कविता, सुनिधि, रुना लैला, उषा उत्

मैने कितनी मूल्यवान चीजो को गंवा दिया -निर्मल वर्मा [अंतिम अरण्य]

निर्मल जी यह उपन्यास नहीं लिखते तो शायद जीवन अधूरा रह जाता ना सिर्फ मेरा बल्कि और कई ऐसे लोगों का जो जीवन को बहुत ही अपनेपन से जीना चाहते है और समझना भी... मेरे हाथ राख राख में खाली भटकते रहते.और तब मुझे अपने पुराने दिन याद हो आए, जब ख़ाक छानते हुए मैने कितनी मूल्यवान चीजो को गंवा दिया था और अब --राख में उन्हें टटोल रहा था...' 'कभी कभी मै सोचता हूँ कि जिसे हम अपनी जिन्दगी, अपना विगत और अपना अतीत कहते है, वह चाहे कितना यातनापूर्ण क्यों न रहा हो, उस से हमे शान्ति मिलती है. वह चाहे कितना ऊबड़-खाबड़ क्यों न रहा हो, हम उसमे एक संगति देखते है. जीवन के तमाम अनुभव एक महीन धाग े में बिंधे जान पड़ते है. यह धागा न हो, तो कही कोइ सिलसिला नही दिखाई देता, सारी जमापूंजी इसी धागे की गाँठ से बंधी होती है, जिसके टूटने पर सब कुछ धूल में मिल जाता है. उस फोटो अलबम की तरह, जहाँ एक फोटो भले ही दूसरी फोटो के आगे या पीछे आती हो, किन्तु उनके बीच जो खाली जगह बची रह जाती, उसे भरने वाला 'मै' कब का गुजर चुका होता है.' ---निर्मल वर्मा [अंतिम अरण्य]