"अगर मै दुःख के बगैर रह सकूं, तो यह सुख नही होगा; यह दूसरे सुख की तलाश होगी; और इस तलाश के लिए मुझे बहुत दूर जाना होगा; वह स्वंय मेरे कमरे की देहरी पर खड़ा होगा, कमरे की खाली जगह को भरने....
...किंतु जिस दिन कोई ऐसा क्षण आएगा, जब मैं यह सोच सकूँगा - कि न यह मैं हूँ, न यह क्षण मेरा है, न मेरी अपनी कोई जगह है, न मैं जीवित हूँ, न मनुष्य हूँ... इसलिए जो नहीं हूँ, उसे कौन मुझसे छीन कर ले जा सकता है? जिस दिन मैं यह सोचूँगा, उस दिन मैं मुक्त हो जाऊँगा, अपनी स्वतंत्रता से मुक्त, जो अंतिम गुलामी है... "
- निर्मल वर्मा
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