एक नया जीवन चाहिए होगा, नए लोग, नई प्रेरणाएँ, नए स्वप्न, और नई जमीन - जहाँ जाकर सुप्तावस्था से जागकर पोषित - पल्लवित होना होगा तभी बात बनेगी............आज 'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' पांचवी बार देखकर लगा कि हम नए अध्याय तभी लिख सकते है जब अपने अंदर के डर निकाल दें और फ़िर दूर कही गहरे पानी पैठें या ऊँचे आसमान में निर्द्वंद उड़े !!! अपने कच्चे पक्के सपनों को ऊँची उड़ान देना जरूरी है. बस सपने साफ हो, कही से मटमैलापन उनके आसपास ना छलकता हो, उन सभी लोगों से दूर रहना होगा जो कही से अपने होने का दम भरते है, उस माहौल से दूर जाना होगा जो आपको एक फेंटेसी की दुनिया में वास्तविकता का बोध कराये चाहे वो टमाटर उत्सव जैसा गल्प या बैलो की दौड़ हो या अपने अतीत की काली परछाईयों से मुक्ति की कामना.
Epitaph 28th May 2013
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
चंदन काठ के बनल खटोलाता पर दुलहिन सूतल हो
उठो सखी री माँग संवारो दुलहा मो से रूठल हो आये
जम राजा पलंग चढ़ि बैठा नैनन अंसुवा टूटल हो
चार जाने मिल खाट उठाइन चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता छूटल...
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