Skip to main content

प्यार तभी हो सकता है जब आप गहरी घृणा को अपनाने के लिए तैयार हो……

हम   सब अंदर से कितने खोखले है और दिखावा ऐसा करते है मानो सृष्टि के रचयिता हम स्वयं हो ..........

भूलना   चाहते हो सब कुछ तो पहले उस सबको याद करो जिसमे तुम हताहत हुए थे, तार-तार हो गई थी इज्जत तुम्हारी, छलनी कर दिए गये थे तुम्हारे स्वप्न उनींदे से, रौंद दिया गया था सारे दिवास्वप्नों को भर दोपहरी में और फ़िर लादकर अपना वजूद तुम पर कहा गया था कि लो तुम्हें अब आजाद किया जाओ.... विचरों संसार में और मत भूलना कि सब नश्वर है, माया है और यही चुकाना पडता है लिए-दिए का.........बस याद रखो...... यह सब चुकता करो एक-एक हिसाब और निकल पडो.... उस अंतहीन यात्रा पर जो हर पल खत्म हो रही है तुम्हारे भीतर बगैर किसी का संज्ञान लिए.........

बचना   चाहते हो तो इन्हें मारना होगा पहले जो बचाने का स्वांग धरकर तुम्हारे भीतर पैठ करके बैठे है

जीवन   की सार्थकता अपनी मौत के आईने में ही देखी जा सकती है जब तक मौत को आप अपने समक्ष नहीं देखते तब तक जीवन को ढोते और खींचते चले जाने का कोई और अर्थ तो नहीं है

प्यार   तभी हो सकता है जब आप गहरी घृणा को अपनाने के लिए तैयार हो……

लड़ना   है तो अपने लिजलिजेपन को छोड़ना होगा………

अगर   तालाब में मछली पकड़ना हो तो तालाब खाली करो और आसमान में उड़ना है तो जमीन से पाँव उठाने ही होंगे

किसी   का विश्वास जीतना है तो उसे गहरा सदमा देना होगा और एक बड़ा धोखा, तभी किसी को अपना सर्वस्व देकर विश्वास जीत पाओगे.

हिसाब   करने से पहले उन जख्मों को तसल्ली से याद करना जरुरी है जिन्होंने नासूर दिए थे गहरे और रिसते हुए, उस सबको संजीदगी से याद  किये बिना हिसाब करने का कोई  अर्थ नहीं है जीवन में। चुन चुनकर हिसाब लो उन सबसे जो हाथों में सिर्फ नमक लिए खड़े थे, जिन्होंने रिश्तो, दोस्ती की आड़ में भावनाओं के पुल बनाकर तुम्हे मथ डाला इतना कि  निकले जहर को तुम्हे ही पीना पडा और जाहिर है अमृत पान वो डकार कर चले गए और आज उसी बुनियाद पर तुम्हारी राह का काँटा बनाकर खड़े है, ले लो पूरा हिसाब ले लो, बस मत भूलो उन जख्मों को जो नासूर बनकर अभी भी सड-गल रहे है जगह-जगह…… 

जब  सामने थाली आती तो सर शर्म से झुक जाता था और एक एक कौर कहता था की इज्जत नहीं की ना खाने की तो यह भुगतना ही पडे गा……. अब सब कुछ ख़त्म होने को है तो यह थाली, यह पानी, यह हवा और ना जाने ऐसी कितनी चीजें है जो हिसाब में ही नहीं है उनका हिसाब कैसे कब कहाँ होगा……?


प्रबल आशावाद में जीना है तो निराशा के गहरे कूएँ में उतरकर देखना होगा की जीवन कहाँ छूट गया और फिर उन सभी निराशाओं को इकठ्ठा करके संजोना होगा की चुन चुनकर बदला लिया जा सके तभी हम एक प्रबल आशावाद की झलक जीवन में देख सकेंगे

रास्ते कभी ख़त्म नही होंगे, चलना तो हर हाल में पडेगा चाहे कुत्ते की माफिक सोच लो कि गाडी मेरे भरोसे चल रही है या कि एक शेर की माफिक सोच लो कि आने जाने वाले रास्ता दे दे

नए सम्बन्ध बनाना हो तो पुराने रिसते हुए घावों को जड़ से उखाड़कर फेंकना होगा तभी नयी कोपलें फूटेंगी और फिर पल्लवित करना होंगे नए वो रिश्ते जिन्हें एक लम्बे समय तक अपने बनाए रिश्तों की भाँती निभाना हो, ना कि थोए गए , हाँ ध्यान यह रहें कि इन अपने बनाए रिश्तों के लिए खून की जरुरत होगी ना कि पानी की, क्योकि रिश्ते निभाने के लिए खून देना पड़ता है ना कि पानी …



Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...