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Showing posts from July, 2019

Posts between 21 to 26 July 2019

26 जुलाई 2008 की ही सुबह थी भीगी हुई, अचानक सांसे उखड़ने लगी और मैं बदहवास सा आईसीयू में डाक्टर, डाक्टर चिल्लाने लगा जब तक लोग जागते, कोई मदद के लिए आता - सब कुछ खत्म हो चुका था आज शब्द भी नही है कि कुछ लिखूँ , मन भी नही है और हिम्मत भी नही माँ के लिए जीते जी कोई लिख नही पाता तो देहावसान के बाद कौन लिखेगा बस नमन , स्मृतियाँ और अपने अकेलेपन में पुनः उस सबको जीने की तमन्ना जो माँ के होते ही सम्भव था *** कवि गोष्ठी दोपहर 3 या 4 से रखने का यह बड़ा फायदा है कि 100 रुपये तक की चाय में सब निपट जाते है, आते ही कितने है, दो चार लंगर वही के होते है झाड़ू लगाने वाले तो उसका भी इलाज है - दूर किसी टपरी में चले जाओ - बस्स हो गया काम महिलाएं होने से सब बिजी रहते है चाय के दौरान और साला कोई सिगरेट भी नही उठा लेता कि पेमेंट करना पड़े रविवार को रखो तो और फायदा ज्यादातर आते ही नही और कई बार चिढकू बूढ़े - बुढ़िया आयोजक एन मौके पे आयोजन निरस्त कर ये 100 रूपये भी बचा लेते है *** पूरे समय वह शांति से कहानी कविता सुनता रहा बीच बीच में वह बोला भी, आखिर में हाल से बाहर निकलते समय पूछा कि कौन ह

हिरणा समझ बूझ बन चरना 17 July 2019

हिरणा समझ बूझ बन चरना  ◆◆◆ पर्यावरण से लेकर जल जंगल जमीन की चिंता करने वाले करने वाले हिंदी से लेकर आंग्ल तक लेखकों का एक बड़ा समूह है जो सब कुछ लिखता है और बदले में पैसे कमाता है - अपने साथ-साथ अपने कुत्ते बिल्ली के नाम से भी यह लोग लिखकर पैसा कमा रहे हैं इधर एक नया ट्रेंड जागा है कि इस पूरे कचरे को किताब के रूप में लाया जाए और इनकी कमजोरी का फायदा उठाकर कुछ प्रकाशक देशव्यापी अभियान चलाकर देश भर के ऐसे लेखकों को ढूंढ रहे हैं जो किताब छपवाने के लिए बेचैन है ये वे प्रकाशक हैं - जिन्हें ना कागज की समझ है, न प्रूफरीडिंग की, न डिजाइन की, ना रेखांकन की और ना फॉन्ट की- बेहद घटिया किस्म की किताबें ट्रकों और ट्रेन की बोगियां भरकर छाप रहे हैं और प्रत्यक्ष रूप से पेड़ों को काटकर पर्यावरण का नुकसान कर रहे हैं इस तरह से धंधा चला कर इन्होंने साहित्य - संस्कृति और लेखन का जो नुकसान किया है - उसकी भरपाई आने वाले इतिहास में कभी कोई नहीं कर सकेगा यह दुखद है कि अब प्रकाशन के अड्डे सिर्फ दिल्ली, इलाहाबाद या मुंबई नहीं , बल्कि छोटे राज्यों के छोटे शहरों में भी प्रकाशन के मठ विकसित हो रहे

गुरु की करनी गुरु जानेगा 16 July 2019

गुरु की करनी गुरु जानेगा  ◆◆◆ संसार के गुरुओं को प्रणाम उन्हें भी जो आज का इंतज़ार साल भर करते है और एक दिन पहले से ही रुपया गिनने की मशीन किराए से ले आते है उन तथाकथित गुरुओं को भी प्रणाम जो बैंक से लेकर मास्टरी करते रहें, पेशे से बेईमानी करके भ्रष्टाचार करके निकल लिए पकड़े जाने के पहले और फिर अवैध कब्जे करके विशुद्ध मूर्ख बना रहे है अड्डों में उन गुरुओं को भी प्रणाम जो जमीन जायदाद और सुंदरियों के मायाजाल में धंसे हुए है और अरबों रुपया बना रखा और अब जेल में रहकर कड़वे घूंट पी रहें हैं उन गुरुओं को प्रणाम जो कार्यालयीन समय में फेसबुक, वाट्सएप्प पर कहानी कविता पेलते रहते है उन गुरुओं को भी प्रणाम जिन्हें ना हिंदी आती है ना अंग्रेज़ी और योग्यता में किसी नत्थू खैरे के चरण रज पीकर पीएचडी निपटा दिए और अब हिंदी ,राजनीति रसायन, इतिहास से लेकर विधि पढ़ा रहें हैं और छात्रों का सामना करने की हिम्मत नही होती उन गुरुओं को भी प्रणाम जो बाप दादों के गाये बजाए और दुनिया भर की महफिलों के कैसेट सुनकर घराने बनाकर बैठ गए है - संपत्ति और संगीत के वृहद संसार पर और अब अडानी, अम्बानियों की मह

Posts of 10 to 15 July 2019

देवास जैसे शहर में रोज सुबह यह कचरा दो से तीन लाख लोगों तक अखबारों के माध्यम से पहुंचता है , अमूमन 8 से 10 पर्चें रोज़ आते है अखबारों में और हम अखबार उठाकर झटक देते है और इन विज्ञापनों को उठाकर गोला बनाकर डस्टबीन में स्वाहा कर देते है कितने लोग पढ़ते है, कितना मार्केटिंग का फायदा होता है इन जैसे ब्रोशर, लीफलेट या पैम्फलेट्स से जो 20 से 140 जीएसएम कागज़ पर बांटे जाते है इन पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए क्योंकि पेड़ ही कट रहें हैं ना और पानी से लेकर बाकी सब मुद्दे तो है ही कौन जिम्मेदारी लेगा और कौन लगाएगा प्रतिबंध क्या कोई वन अधिकारी, जिला कलेक्टर, मंत्री, सांसद, विधायक या राज्य सरकार मर्दानगी दिखाएगी बेहद दुखद है, जरा बताईये आपके यहाँ कितना कचरा आता है, कितना पढ़ते है इन्हें और कितना सामान आपने खरीदा या आई वी एफ करवाया या इस जैसे विज्ञापन प्रेमी मानसिक रोगी डाक्टर से मिलें या प्लाट खरीदें *** FCRA के नाम पर जमीनी काम करने वालों को पिछली सरकार ने बहुत प्रताड़ित किया और इसकी वजह से वो लोग जो इन एनजीओ में काम करते थे - बिल्कुल अनपढ़ थे, समाज के एकदम हाशिये पर पड़े लोग थे और एनजीओ

FCRA का धंधा 11 July 2019

FCRA के नाम पर जमीनी काम करने वालों को पिछली सरकार ने बहुत प्रताड़ित किया और इसकी वजह से वो लोग जो इन एनजीओ में काम करते थे - बिल्कुल अनपढ़ थे, समाज के एकदम हाशिये पर पड़े लोग थे और एनजीओ में काम करके दो से सात आठ हजार प्राप्त कर दूर दराज के गांवों में परिवार चलाते थे, अचानक बेरोजगार हो गए एनजीओ वह पांचवा क्षेत्र था जो अति शिक्षित से लेकर एकदम अनपढ़ों को रोजगार उपलब्ध करा रहा था जिससे सरकार के ही फ्लैगशिप कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही थी बल्कि असली हितग्राहियों तक योजना एं भी पहुंच रही थी आज एक बड़ी जनसंख्या सरकार की वजह से बेरोजगार हो गई और सरकार का डाह यह है कि एनजीओ को जो लाख से करोड़ रूपया सालाना मिलता था वह हमारी विचारधारा के लोगों और संस्थानों को मिलें और हमें नही तो किसी को नही, पर सवाल यह भी था कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं दंगों, गाय, गोबर, गौमूत्र के लिए अनुदान नही देती और यह अनुदान लेने के लिए भाषाई दक्षता, अँग्रेजी और प्रबंधन में कुशल होना जरूरी है जो जाहिर है इन लोगों में शून्य है इसके विपरीत एनजीओ ने भी इस तरह के रुपयों का दुरुपयोग किया , 100 डॉलर का अनुदान यदि क

Posts from 4 to 7 July 2019

निर्मला सीतारमण जी को महिला कहना और सशक्तिकरण का उदाहरण देना ज्यादती है जेएनयू से पढ़कर विभिन्न जगहों पर रहते हुए परिपक्व होना और कल वित्त मंत्री के रूप में बहीखाते का हिसाब किताब प्रस्तुत करना और फिर उन्हें महिला कहना बिल्कुल उचित नही है इस स्तर पर यह जेंडर को पुख्ता करने वाली बातें हजम नही होती प्रभुओं नीता अंबानी, इंदिरा नुई आदि से लेकर स्कूल, कॉलेजेस, ब्यूरोक्रेसी, चिकित्सा, न्याय, एनजीओ, मीडिया, फ़िल्म और विज्ञान के बड़े और वृहद क्षेत्रों में बड़े या मुख्य पदों पर काम करने वाली महिलाओं को महिलाओं के खाँचे में फिट करके हम असली सशक्तिकरण भूल जाते है एक बार इन महिलाओं की कार्यशैली, काम के तरीके, विचार और प्रबंधन के तौर तरीकों को देखेंगे तो समझ पाएंगे कि ये पुरुषों से ज्यादा दृढ़, ज़िद्दी, बाज़दफ़ा अड़ियल - सनकी और बेहद घातक होती है जो हर बात को मन में रखती है और समय आने पर बुरी तरह से दुलत्ती देती है मेहरबानी करके निर्मला सीतारमण जी को महिला के रूप में ना व्याख्यित करें और इन जैसी महिलाओं को जेंडर की बहस और समता, समानता से तो दूर ही रखें *** दो और दो का जोड़ हमेंशा चार कहाँ

बिगाड़ का डर 2 July 2019

बिगाड़ का डर  ◆◆◆ दूर देश जाना था मजूरी करने, लगभग पलायन ही था घर से, पर रोक लिया दोस्तों ने, गांव के लोगों ने कहा कि कहां जाओगे परदेस, कोई जानने वाला न हो, कल कुछ हो गया तो - यही सब मिलकर कुछ कर लेंगे, हम लोग है ना - मदद कर देंगे, कसम से बहुत ताकत मिली थी उसे फिर वह भी अनिष्ट की आशंका में रुक गया, उम्र भी हो चली थी, शरीर बीमारियों का घर बन गया था और वह यही रुक गया, दोस्तों ने क्या ही मदद की , मजूरी करने जाना ही पड़ता था, अब वह गांव का बागड़ तभी पार करता - जब एकदम ही भूखों मरने की नौबत आ जाती अपनी लड़ाई खुद ही लड़ना पड़ती है - ना घर वाले काम आते है, ना दोस्त यार, बल्कि दोस्तों को वह सुट्टा, कच्ची दारू, सुल्तान की दुकान से काली चाय पिला - पिलाकर और कंगाल हो गया था, आये दिन कोई संत - महात्मा या विद्वान को दोस्त गांव बुलाते तो उससे भी रुपया मांग लेते बेशर्मी से - बावजूद इसके कि सबको मालूम था कि वो निरापद है और कंगाल, पर दोस्ती थी ना सबसे आज फिर दिखा वह तो आवाज़ दी उसने, दोस्तsssse, सुनो - आओ चाय पिलाता हूँ, मैं तो अचानक घबरा गया कि उधार ना मांग लें पर फिर हिम्मत करके गया , बहुत ख

जुलाई की धूप बादलों की शिकायत है - 7 July 2019

जुलाई की धूप बादलों की शिकायत है बिन बदले बाद्दल जब छूकर निकल जाते है तो उससे बड़ा संताप की नही हो सकता बशर्ते आपको प्यास का अंदाज हो और नेह की एक बूंद का भी महत्व पता हो, ज्यों - ज्यों बादल कारे होते जा रहें हैं गुलमोहर झर रहा है , इन फूलों का झरना यूँ तो नियति का ही एक हिस्सा है पर मन मानने को तैयार नही, रक्तिम लालिमा के इन फूलों से गत 35 बरसों का नाता है , ये स्मृतियों की सफ़ेदी के सबसे बड़े हिस्से रहें है और अपने जीवन के बेहतरीन पल इनकी छाँह में बीताये हैं, ये गुलमोहर सिर्फ एक पेड़ नही जो खोखला हो रहा है , इसके मोटे तने में वलयों को चीरकर दीमकों ने घर बना लिया है , रोज़ काली मिट्टी की एक परत चढ़ती दिखाई देती है और अगले दिन भोर में खिर जाती है भोर से रात के तीसरे पहर तक जब इस पर दूधराज , लाल तरुपिक , हुदहुद , टूटरु , लाल मुनिया , धनेश , ठठेरा बसन्धा , स्वर्ण पीलक , गुलदुम बुलबुल , मटिया लहटोरा , बड़ा महोक , लीशरा अबाबील , उल्लू , कोयल , नीलकंठ , तोता , गिलहरी या गौरैया जैसे पक्षी आकर बैठते , फुदकते खुली छत पर - ढेरों प्रकार के दाने खाते तो मन प्रफुल्लित हो जाता और कोशिश करता क