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Showing posts from May, 2012

सीहोर यह शहर हमेशा याद रहेगा

तुम्हारे लिए...........सुन रहे हो ............कहा हो तुम........ एक शहर जिसे मैंने छूना ही शुरू किया था और अपने अंदर गहराई से महसूस कर रहा था और एकाकार होने लगा था यहाँ की मिट्टी से, लोगों से और हवा से.............अचानक अच्छा लगाने लगा था..... गलिया, रास्ते, दुकानें, भाजी -पाले वाले, पेट्रोल पम्प वाले और वो हर कोई जिसके होने से ये शहर शहर बनता है और इसे सबकी धड़कनों में ज़िंदा रखता है पर छूट रहा है और एक नए शहर की ओर ले जा रहा है जीवन का दुष्चक्र और फ़िर एक बहते प्रवाह को सुना तो था पर अब प्रत्यक्ष देखने का मौका लगेगा और शायद यह नयापन कुछ जादू कर जाए................पर इस शहर को छोडने का दुःख तो है जीवन के इस पड़ाव पर खट्टे मीठे अनुभवों ने इस शहर को मेरे भीतर लगभग एक पूरी सभ्यता को बसाकर लगभग फ़िर से उजाड दिया है...............सीहोर यह शहर हमेशा याद रहेगा. दोस्त और लोग, सडके और राजनीती, टाकीज़ और मंदिर, प्रशासन और अपने पुराण बस सब धडकता रहेगा ...............गिरीश शर्मा जैसे दोस्त जिनसे क्या नहीं सीखा और किस मुद्दे पर बात नहीं की.....लाखन जैसे प्यारे दोस्त जो जीवन भर की अम

सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना- पाश

"सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना" श्रम की लूट सब से खतरनाक नहीं होती पुलिस की मार सब से खतरनाक नहीं होती गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सब से खतरनाक नहीं होती बैठे-सोये पकड़े जाना - बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकडे जाना - बुरा तो है पर सब से खतरनाक नहीं होता कपट से शोर में सही होते हुए भी दब जाना - बुरा तो है किसी जुगनू की लौ में पढ़ने लग जाना - बुरा तो है भींच कर जबड़े बस वक़्त काट लेना - बुरा तो है सब से खतरनाक नहीं होता सब के खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से मर जाना न होना तड़प का, सब सहन कर जाना घर से निकलना काम पर और काम से लौट कर घर आना सब से खतरनाक होता है हमारे सापनों का मर जाना सब से खतरनाक वह घरी होती है तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो तुम्हारी नज़रों के लिए रुकी होती है सब से खतरनाक वो आँख होती है जो सब कुछ देखती हुई भी ठंडी बर्फ होती है जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर मोहित हो जाती है जो रोज़मर्रा की साधारणता को पीती हुई एक लक्ष्यहीन दुहराव के दुष्चक्र में ही गुम जाती है सब से खतरनाक वो चाँद होता है जो हर कत्ल क

तुम्हारे लिए ...............सुन रहे हो..............कहा हो तुम...........

पसीने से गंधाते बदन और धूप के तेज ज्वर में कहा जा रहा है ये मन - भटकाव है या दिशा, मंजिल है या भ्रम, भोर का उजाला है या शफक, संताप है या अपने जाए दुःख, रास्ता है या समानांतर पटरियां, दरख्तों की छाँव है या रूककर इंतज़ार का दंश, मतिभ्रम है या विभ्रम, अक्षत जीजिविषा है या क्षणिक साँसें, जीवन है या लंबी त्रासदी की पीड़ा, पर्दा है या यवनिका, बस यही समझने का प्रयास कर रहा हूँ जब अकेला रह जाना था तो ये सब क्यों, जब सब छूट जाना था तो ये संगवारी का अर्थ क्यों.. आज फ़िर कहता हूँ तुम्हारे लिए ...............सुन रहे हो..............कहा हो तुम...........

जग से नाता छुटल हो

तुम्हारे लिए...............सुन रहे हो...............कहाँ हो तुम.............. जब ये सब छूटना ही था तो आया क्यों था जीवन में और यही से होकर गुजरना था तो ठहर क्यों नहीं गया सब कुछ........................... ...बस इसी उधेड़बुन में लगा हूँ कि कहाँ से कैसे बचकर निकल लिया जाए और फ़िर वही आरोह अवरोह और...............सरोकार के झूठे स्वर और स्वरलहरियां........... "जग से नाता छुटल हो" ............आये किसे देस से तुम...........

"असंख्य सुबहों का सूरज"

दो दिन से मै  "असंख्य सुबहों का सूरज"  के साथ हूँ जहां मै एक कहानी रचने की प्रक्रिया गूंथ रहा हूँ और उम्मीद है यह कहानी एक लंबे समय बाद मेरे हाथों कनवास पर उतरेगी...............यह वादा तो किया है तुमसे और फ़िर यह विहंग, अनघा, नीलम, पन्ना, अम्बरीन, शगुफ्ता, जिज्ञासा, जैसे चरित्र जीने नहीं दे रहे, सोने नहीं दे रहे मुझे कल नदी के किनारे पर ऊँघता अनमना सा लौट रहा था तो इस नायक ने जन्म लिया यकायक और फ़िर भिड गया मुझसे कागज़ पर अवतरित होने को........और शहर दर शहर भटकता मेरा असंख्य सुबहों का सूरज इन दिनों जयपुर, इंदौर, देवास, भोपाल, ओरंगाबाद, धार और ना जाने कहाँ कहाँ की यात्राएं  कर भटक रहा है एक जीवन की तलाश में जो उसे ना इस पार मिला इतनी सारी नायिकाओं से, ना उस पार मिल रहा है जो एक सहयात्री के रूप में लगभग बिंध गयी है उससे.............ताउम्र के लिए.......................पर अपनी विरासत किसे सौपेंगा और कहा ठहरेगा यह सफर मालूम नहीं...........वही तो मजा है मै खुद भी गूंथने की प्रक्रिया में हूँ कल पूरी रात सोया नही उधेड़ बुन में लगा रहा और फ़िल्में आँखों के सामने से गुजराती रही धीमे धीमे .

भोर के सपने

चार कटखनी बिल्लियों से देश परेशान है और दुनिया इस देश की लोमड़ी से.........एक बिल्ली को हाथी से मुहब्बत है वो सारे प्रांत में हाथी लगाकर उनपर से सत्ता हासिल करना चाहती है, एक बिल्ली जूते चप्पलों से अपने राज दरबार की शान बनाए रखती है, तीसरी सिर्फ बडबड कर देश के नामुराद मौन मोहन सिंह को नचाना चाहती है, चौथी देश की राजधानी में बैठी जल-मल बोर्ड और इहारी-बिहारियों को कोस कर अपना अपराध बोध पूरा करती है और सबसे ज्यादा लोमड़ी देश और जंगल की सत्ता को वशीभूत कर अपने दूध पीते शावक को जंगल राज सौपना चाहती है. हाथीयों ने बगावत कर दी और जूते चप्पलों की फेक्ट्रियां बंद हो गयी और एक गूंगी नेत्री से ट्राम में बैठे लोग हंसिया हथोडा लेकर लोग उत्तेजित है बदला लेने को, एक और चारु मुजुमदार की व्युत्पत्ति हो रही है, दिल्ली के बिहारी बिल्ली का दूध छुडाकर उसे घंटियों की ट्रेन में बिठाकर दूर यमुना पार छोड़ आये है और लोमड़ी से परेशान प्रजा अपने लिए एक नए नायक की तलाश में नपुंसकों की भीड़ में मर्द ढून्ढ रही है सेना नायक पराजित है, देश के लोग गैस बत्ती के भावों से नाराज पुरे दरबार में आग लगाना चाहते है, पेट्रोल और डीज़

भोर के सपने

सारे देश में रूपयों की कीमत कम हो गयी है सरकार ने नई मुद्रा के चलन की घोषणा कर दी है सारे भाप्रसे के अधिकारी पशोपश में है, सारे देश की पुलिस हडबडाहट में लोगों को मार रही है सोना सोरी कांड हर महिला के साथ दोहराया जा रहा है, हर बुढा अन्ना बना बैठा इठला रहा है, कुछ नाकारा अफसर अरविन्द केजरीवाल की तर्ज पर पागलो की भाँती नारे लगा रहे है, अम्बानी बंधू, टाटा, बिरला और गोदरेज घराने सारी संपत्ति समेटकर निजी हवाई जहाजो से देश से भाग रहे है पर पाईलेटो की हडताल से निकल नहीं पा रहे है, फिल्मों के कलाकार सडको पर हिन्ज़डों की तरह नाच कर बची खुची जनता का मनोरंजन कर रहे है, नेता अपना मुह छुपाकर सडको के मेनहोलों से अपने घरों का रास्ता नाप रहे है, तमाम बुद्धिजीवी पागलखानों में बैठे आपस में विएतनाम और अमेरिका के हिसाब किताब पर बहस चला रहे है और कह रहे है कि नूह की नाव में सबसे पहले मै निकल जाउंगा ताकि आने वाले नस्लें ठीक से पैदा हो नपुंसक नहीं...देश के सारे मोबाइल बंद हो गए है, गूगल के बंद होने से सबकी रोजी रोटी छीन गयी, एक हाहाकार मचा है सुखी है तो सारे गधा प्रसाद-सेवाराम जैसे लोग जिन्होंने करोडो रूपया

भोर के सपने

गधा प्रसाद पुरे सरकारी तंत्र में छा गए है........................और सारे उल्लू, चूहे, बिल्ली, लोमड़ी, गीदड, शुतुरमुर्ग और निकम्मे ठलुए जगह जगह बैठे देश का विकास कर रहे है ..............ए राजा की मूर्तियों की स्थापना हो रही है, मौन मोहन सिंह की तस्वीरें बिक रही है, देश की माँ काली अपने नन्हे शावक के साथ शिकार पर निकली और बूढ़े शिकारी जो स्वर्ण रथ पर चढ़कर विजय पताका फहराना चाहता है को मात देने का खेल खोज रही है, जंगल के विभिन्न प्रान्तों में नर नारी भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान रच रहे है, देश भर के मैंदानों में निर्मल बाबाओं के पांडाल सजे है और देश की भोली जनता एलेक्स पाल मेनन के अपहरण कांड की उत्तेजक फिल्मे देख रही है और प्रलाप सुन रही है, मीडिया बंद कमरों में बैठकर सोमरस पीते हुए मुर्गे की टांग चबाकर देश के घरानों से अपना हिस्सा वसूल रहा है कुछ एनजीओ के ठेकेदार देश की भीड़ को एक कोने में इकट्ठा कर देश विरोधी नारे लगा रहे है लोकायुक्त के नारों से देश अटा पड़ा है..........जाग पडता हूँ.......भोर के सपने से..........कहते है भोर का सपना सच होता है...........

जीवन में यादो का बोझ मत रखना, जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है गुजारना"

एक उदास सा जीवन गुजारते हुए और जीवन की आपाधापी में अपराध करने को मजबूर और तंगहाल सा लंबा वक्त बीत ही नहीं रहा, अपना नाम भी अपने होने को सार्थक ना करता हो, और दूसरों के दिए हुए अड़े-सड़े नाम जिनसे सिर्फ एक क्रूरता का ही एहसास होता हो, लगातार पीसते हुए बोझिल घटनाओं के बीच से यदि कही प्यार की एक बयार आती भी है तो सारे लोग दुश्मन हो जाते है दो पाटन के बीच में घिसटते हुए कही अंतिम छोर पर एक हल्की सी किरण दिखाई देती है कि चलो उस पार जीवन सुखद हो पर कहा हर बार अपने आप को समझाकर और नए इरादों के साथ जमाने की शर्तों पर और खुद को ठग सा महसूस करते हुए भी जीने का माद्दा  बना हुआ है पर इस प्यार के बीच दो पल तो जी ले सुकून से ............और आख़िरी में अपने ही किसी के द्वारा मौत को गले लगाने की बेबसी और फ़िर यह दर्शन की "जीवन में यादो का बोझ मत रखना, जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है गुजारना................." बस यही कुछ कहानी है जन्नत 2 की, और यही जन्नत खोजने में हम सब लगे है जिसे कबीर कहता था दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोई......................

लेकिन एक भी आदमी ऐसा है ............जो वह तुम्हें समझता है,

तुम्हारे लिए.............सुन रहे हो..........कहा हो तुम............. ये तुमसे कह दिया किसने कि बाजी हार बैठे हम। मोहब्बत मेँ लुटाने को, अभी तो जान बाकी है ॥   ये दिल ही तो जानता है मेरी मोहब्बत का आलम । कि मुझे जीने के लिए साँसोँ की नहीँ तेरी जरुरत है ॥ "मैंने कभी अपने गुरूदेव हजारी प्रसाद द्विवेदी से पूछा था, ' सबसे बड़ा दुख क्या है?' बोले, 'न समझा जाना।' और सबसे बड़ा सुख? मैंने पूछा। फिर बोले,' ठीक उलटा! समझा जाना।' अगर लगे कि दुनिया में सभी गलत समझ रहे हैं लेकिन एक भी आदमी ऐसा है जिसके बारे में तुम आश्वस्त हो कि वह तुम्हें समझता है, तो फिर उसके बाद और किसी चीज की कमी नहीं रह जाती।" - नामवर सिंह ( समालोचन में छपे प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी के एक लेख से साभार)

कुछ छूट-पुट फेसबुक पर लिखी और देखी भाली जो बहुत चर्चित हुई है

म प्र में इन दिनों लोकायुक्त जम के छापे मार रहे है राज्य शासन के चपरासी से लेकर डी एफ ओ और इंजिनियर भी नहीं बच पा रहे है ताजा मामला रतलाम का है जहां पलाश साहब को पचास करोड के मामले में पकड़ा गया है और उन्होंने कहा है कि यदि मेरी संपत्ति पचास करोड निकली तो मै नौकरी छोड़कर आत्महत्या कर लूंगा यह खबर कई अखबारों में मुख पृष्ठ पर है मुझे लगता है कि आपसी प्रतिस्पर्धा और कमाने की होड और उपरी स्तर पर विधान सभा के चुनावों के मद्देनज़र यह सब हो रहा है जमकर लोगों से रूपये ऐंठे जा रहे है और अधिकारी काली कमाई करके ऊपर भी दे रहे है और अपना भी भला कर रहे है. यह सब बेहद शर्मनाक है लोकायुक्त महोदय से निवेदन है कि अपने लोकायुक्त पुलिस के घर भी छापे लगवाएं और साथ ही विधायको, मंत्रियों, स्थानीय निकायों के पदाधिकारी, सरपंच और प्रशासन में बैठे कलेक्टरों, एस् पी साहेबान, टी आई और जिला अधिकारियों के घर में ताक-झाँक करे ताकि इसी प्रदेश के हर जिले, ब्लाक और गाँव तथा मोहल्ले में टीनू और अरविंद जोशी निकलेंगे......... जहां से मै देख रहा हूँ वहाँ से हालात इतने खराब हो गए है कि अभी अप्रेल

एक शाम और कविता के नाम........

और ये रहा नितांत दोस्तों के बीच नित्यानंद का कविता पाठ मेरे घर सिहोर में....................... ..बहादुर पटेल, दिनेश पटेल, केदार, मै और नित्यानंद का कविता पाठ. बहुत आड़े टेढ़े सवाल पूछे उससे और ढेरो कवितायें पेट भरकर सुनी, फ़िर दवाई (:P) दाल-बाटी जमके खाई और देर रात तक बातचीत इस बीच सौरभ अरुणाभ से बाते हुई और ढेरो कवि मित्रों से भी फोन बातें की पर सुरूर तो था ही खूब जमके निंदा रस का भी आनद लिया और अज्ञेय से लेकर नागार्जुन और मुक्तिबोध तक के काव्य परम्परा के वाहक बने हम इन गिन पांच लोग........ कविता में डूबे रहे..................बहादु र पाखी का अप्रेल अंक लेकर भी आया था जिसमे प्रिंयवद का इंटरव्यू छपा है कि मेरे लिए प्रेम और सेक्स एक ही सिक्के के दो पहलू है .......इस पर भी खूब बहस हुई और फ़िर सत्तू बनाम इतिहास और साहित्य बनाम मार्क्सवाद और फ़िर नई-पुरानी कविता और भाषा के द्वंद आदि बाप रे बाप...............जिंदगी की अनेक बेहतरीन शामो में शुमार एक शाम और कविता के नाम........