Skip to main content

"असंख्य सुबहों का सूरज"

दो दिन से मै  "असंख्य सुबहों का सूरज"  के साथ हूँ जहां मै एक कहानी रचने की प्रक्रिया गूंथ रहा हूँ और उम्मीद है यह कहानी एक लंबे समय बाद मेरे हाथों कनवास पर उतरेगी...............यह वादा तो किया है तुमसे और फ़िर यह विहंग, अनघा, नीलम, पन्ना, अम्बरीन, शगुफ्ता, जिज्ञासा, जैसे चरित्र जीने नहीं दे रहे, सोने नहीं दे रहे मुझे कल नदी के किनारे पर ऊँघता अनमना सा लौट रहा था तो इस नायक ने जन्म लिया यकायक और फ़िर भिड गया मुझसे कागज़ पर अवतरित होने को........और शहर दर शहर भटकता मेरा असंख्य सुबहों का सूरज इन दिनों जयपुर, इंदौर, देवास, भोपाल, ओरंगाबाद, धार और ना जाने कहाँ कहाँ की यात्राएं  कर भटक रहा है एक जीवन की तलाश में जो उसे ना इस पार मिला इतनी सारी नायिकाओं से, ना उस पार मिल रहा है जो एक सहयात्री के रूप में लगभग बिंध गयी है उससे.............ताउम्र के लिए.......................पर अपनी विरासत किसे सौपेंगा और कहा ठहरेगा यह सफर मालूम नहीं...........वही तो मजा है मै खुद भी गूंथने की प्रक्रिया में हूँ कल पूरी रात सोया नही उधेड़ बुन में लगा रहा और फ़िल्में आँखों के सामने से गुजराती रही धीमे धीमे ....भिन्डी की सब्जी हो या बिट्टन मार्केट , या कि किसी देश के बदहते हुए अखबार का दफ्तर..................बस ये विहंग पीछा छोड़  दे तो कुछ तटस्थ और निरपेक्ष भाव से लिख पाऊं उस दर्द को भी जो हर रात सालता है और कुछ ना कर पाने की बेबसी में उमड़ पडता है गुस्से और शांत में..........

गडबड तो बहुत हो चुकी है, सब कुछ डूब भी गया है, उसने मेरी तो सरे आम बाजार में इज्जत उछाल दी है, लगा था कि यह सिर्फ प्यार का एक नाटक होगा और कुछ कर धर के या ले देकर मै बरी हो जाउंगा और बस फ़िर नई घोड़ी नया दाम करेंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, यह लडकी तो बहुत तेज निकली मेरे सारे फोटो, मेरे सारे दस्तावेज लेकर चली गयी..........यहाँ तक कि मेरा रिडिफ मेल का पासवर्ड भी ले गयी और बदल दिया, मै तो बर्बाद हो गया हूँ अब कह रही है कि माँ और सब उसके पीछे है कि कुछ आर-पार किये बिना मानेगी नहीं......यहाँ इतनी दूर बेगाने शहर में चली आई गलती भी मेरी ही थी कि मैंने टिकिट करा दी थी. मेरे आगे जीवन के सुहाने पलों का रास्ता खुला है अभी मै एक लंबी रिवार्डिंग यात्रा पर निकल रहा हूँ विधि के साथ और यह मुसीबत गले पडी है.............हम मीडिया वालों के गले में ऐसी मुसीबतें क्यों आती है........लगता है अब भागना पडेगा..............या शायद धीरे धीरे प्यार होने का नाटक करके ही देखूंगा शायद कुछ स्थितियां सुधर जाए......पर आज यह जो सामने है, इस बरसात में जो कुछ भी मेरी आत्मा से रिस रहा है वह मेरे लिए अकल्पनीय था मैंने कभी प्यार-व्यार जैसी बातों को गंभीरता से लिया नहीं था................उसके माँ बाप से बात करके लगा कि मै बहुत बुरी तरह से फंस चुका हूँ.............पहले जिज्ञासा, फ़िर नीलम, फ़िर पन्ना, फ़िर शगुफ्ता, फ़िर अम्बरीन और अब यह अनघा............क्या होना लिखा है मेरी किस्मत में.......आप प्लीज किसी से कुछ मत कहना और वो अस्पताल वाली बात या यहाँ के औरंगाबाद  की कहानी यानी एक बड़े शहर और बड़े होटल और फ़िर वाया दिल्ली में मीडिया के हाल..........बस......
घबरा रहा था पर अब सब कुछ छोड़कर जा रहा हूँ तो तसल्ली है कि ये दुखद दिन निकल गये और अब मै सबसे छूटकर जा रहा हूँ एक ऐसी दुनिया में जहां पाने को सब है और खोने को कुछ नहीं........कहा  हो असंख्य सुबहों के सूरज.........................

(लिखी जा रही कहानी"असंख्य सुबहों का सूरज" का एक अंश )


Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...