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भोर के सपने

सारे देश में रूपयों की कीमत कम हो गयी है सरकार ने नई मुद्रा के चलन की घोषणा कर दी है सारे भाप्रसे के अधिकारी पशोपश में है, सारे देश की पुलिस हडबडाहट में लोगों को मार रही है सोना सोरी कांड हर महिला के साथ दोहराया जा रहा है, हर बुढा अन्ना बना बैठा इठला रहा है, कुछ नाकारा अफसर अरविन्द केजरीवाल की तर्ज पर पागलो की भाँती नारे लगा रहे है, अम्बानी बंधू, टाटा, बिरला और गोदरेज घराने सारी संपत्ति समेटकर निजी हवाई जहाजो से देश से भाग रहे है पर पाईलेटो की हडताल से निकल नहीं पा रहे है, फिल्मों के कलाकार सडको पर हिन्ज़डों की तरह नाच कर बची खुची जनता का मनोरंजन कर रहे है, नेता अपना मुह छुपाकर सडको के मेनहोलों से अपने घरों का रास्ता नाप रहे है, तमाम बुद्धिजीवी पागलखानों में बैठे आपस में विएतनाम और अमेरिका के हिसाब किताब पर बहस चला रहे है और कह रहे है कि नूह की नाव में सबसे पहले मै निकल जाउंगा ताकि आने वाले नस्लें ठीक से पैदा हो नपुंसक नहीं...देश के सारे मोबाइल बंद हो गए है, गूगल के बंद होने से सबकी रोजी रोटी छीन गयी, एक हाहाकार मचा है सुखी है तो सारे गधा प्रसाद-सेवाराम जैसे लोग जिन्होंने करोडो रूपया कमा लिया था खनिज और जनभागीदारी से पर अब अपनी विक्ष्पतता में रूपयों को तोड़ तोड़कर खाने का उपक्रम कर रहे है भाप्रसे के अधिकारी अपनी बीबी- बच्चों के साथ जंगल की ओर चल पड़े है क्योकि उन्हें जान का खतरा हो गया है प्रजा से, जंगल के अधिकारी भी कुओं में उतरकर छीने हुए मुर्गों और दारु की अंतिम किश्त निपटा रहे है.......भोर के सपने कितने सच होते है.....

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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