गधा प्रसाद पुरे सरकारी तंत्र में छा गए है........................और सारे उल्लू, चूहे, बिल्ली, लोमड़ी, गीदड, शुतुरमुर्ग और निकम्मे ठलुए जगह जगह बैठे देश का विकास कर रहे है ..............ए राजा की मूर्तियों की स्थापना हो रही है, मौन मोहन सिंह की तस्वीरें बिक रही है, देश की माँ काली अपने नन्हे शावक के साथ शिकार पर निकली और बूढ़े शिकारी जो स्वर्ण रथ पर चढ़कर विजय पताका फहराना चाहता है को मात देने का खेल खोज रही है, जंगल के विभिन्न प्रान्तों में नर नारी भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान रच रहे है, देश भर के मैंदानों में निर्मल बाबाओं के पांडाल सजे है और देश की भोली जनता एलेक्स पाल मेनन के अपहरण कांड की उत्तेजक फिल्मे देख रही है और प्रलाप सुन रही है, मीडिया बंद कमरों में बैठकर सोमरस पीते हुए मुर्गे की टांग चबाकर देश के घरानों से अपना हिस्सा वसूल रहा है कुछ एनजीओ के ठेकेदार देश की भीड़ को एक कोने में इकट्ठा कर देश विरोधी नारे लगा रहे है लोकायुक्त के नारों से देश अटा पड़ा है..........जाग पडता हूँ.......भोर के सपने से..........कहते है भोर का सपना सच होता है...........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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