और ये रहा नितांत दोस्तों के बीच नित्यानंद का कविता पाठ मेरे घर सिहोर में....................... ..बहादुर
पटेल, दिनेश पटेल, केदार, मै और नित्यानंद का कविता पाठ. बहुत आड़े टेढ़े
सवाल पूछे उससे और ढेरो कवितायें पेट भरकर सुनी, फ़िर दवाई (:P) दाल-बाटी
जमके खाई और देर रात तक बातचीत इस बीच सौरभ अरुणाभ से बाते हुई और ढेरो कवि
मित्रों से भी फोन बातें की पर सुरूर तो था ही खूब जमके निंदा रस का भी
आनद लिया और अज्ञेय से लेकर नागार्जुन और मुक्तिबोध तक के काव्य परम्परा के
वाहक बने हम इन गिन पांच लोग........ कविता में डूबे
रहे..................बहादु र
पाखी का अप्रेल अंक लेकर भी आया था जिसमे प्रिंयवद का इंटरव्यू छपा है कि
मेरे लिए प्रेम और सेक्स एक ही सिक्के के दो पहलू है .......इस पर भी खूब
बहस हुई और फ़िर सत्तू बनाम इतिहास और साहित्य बनाम मार्क्सवाद और फ़िर
नई-पुरानी कविता और भाषा के द्वंद आदि बाप रे बाप...............जिंदगी की
अनेक बेहतरीन शामो में शुमार एक शाम और कविता के नाम........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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