Skip to main content

FCRA का धंधा 11 July 2019

FCRA के नाम पर जमीनी काम करने वालों को पिछली सरकार ने बहुत प्रताड़ित किया और इसकी वजह से वो लोग जो इन एनजीओ में काम करते थे - बिल्कुल अनपढ़ थे, समाज के एकदम हाशिये पर पड़े लोग थे और एनजीओ में काम करके दो से सात आठ हजार प्राप्त कर दूर दराज के गांवों में परिवार चलाते थे, अचानक बेरोजगार हो गए
एनजीओ वह पांचवा क्षेत्र था जो अति शिक्षित से लेकर एकदम अनपढ़ों को रोजगार उपलब्ध करा रहा था जिससे सरकार के ही फ्लैगशिप कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही थी बल्कि असली हितग्राहियों तक योजनाएं भी पहुंच रही थी
आज एक बड़ी जनसंख्या सरकार की वजह से बेरोजगार हो गई और सरकार का डाह यह है कि एनजीओ को जो लाख से करोड़ रूपया सालाना मिलता था वह हमारी विचारधारा के लोगों और संस्थानों को मिलें और हमें नही तो किसी को नही, पर सवाल यह भी था कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं दंगों, गाय, गोबर, गौमूत्र के लिए अनुदान नही देती और यह अनुदान लेने के लिए भाषाई दक्षता, अँग्रेजी और प्रबंधन में कुशल होना जरूरी है जो जाहिर है इन लोगों में शून्य है
इसके विपरीत एनजीओ ने भी इस तरह के रुपयों का दुरुपयोग किया , 100 डॉलर का अनुदान यदि किसी बच्चे के नाम आया तो उसे 100 रुपये देकर पारदर्शिता के प्रमाणपत्र भी प्राप्त किये और महान बनें है अब इनको भुगतना तो पड़ेगा ही - कब तक आप शोषण करते रहेंगे और अस्सी लाख से लेकर एक डेढ़ करोड़ के घर खरीदेंगे, दफ्तर खरीदेंगे, खेती और तमाम विलासिता की चीजे खरीदेंगे, अपने घर, महंगी गाड़ियां और जमीन खरीदकर संस्थाओं के ओव्हर हेड निपटाते रहेंगे और धनपति बनेंगे - ऊपर से खादी के झब्बे और अंदर से जॉकी - यह तो नही चलेगा ना जनाब, गांव नही जाएंगे पर विदेशों में माह में 3 बार हो आएँगे ,माह में 10 से 15 दिन दिल्ली भोपाल पटना में पड़े रहेंगे थ्री स्टार होटलों में मुर्गा चबाते हुए - वो भी इन्हीं गरीब गुर्गों के नाम पर
इंदौर के ही कई एनजीओ को जानता हूँ जो 15 % देकर काम कर रहें है, जापान या अन्य देशों के यूरो से बड़ी बड़ी बिल्डिंग तान दी, थोड़े दिन दफ्तर का नाटक चलाया और अब निजी सम्पत्ति है, करोड़ो की जमीन हड़फ कर बैठे है , भोपाल में कइयों को जानता हूँ जो लाखों का हेरफेर करते है, पांच - पांच करोड़ की बिल्डिंग दस दस बीघा जमीन पर बनाएं बैठे है और भोपाल से रीवा सतना तक निजी कार लेकर जाते है या साल में दस बार विदेश घूमते है , छग में अपनी पीएचडी का खर्च तक प्रोजेक्ट में जोड़ने वाले या जोहान्सबर्ग में बार बार जानेवालों को जानता हूँ - क्या कीजै इनका
कैलाश सत्यार्थी से लेकर पदम् भूषण पाने वालों की बड़ी श्रृंखला है जो पानी से लेकर, एड्स, कंडोम प्रमोशन, महिला उत्थान, किशोर एवम युवा विकास, शिक्षा स्वास्थ्य, आदिवासी विकास और संडास तक मे गले गले डूबकर कमा खा गए और आज ज्ञानी बनकर दलाल बने हुए है
सरकार ने पिछले 5 सालों में हजारों एनजीओ का FCRA कैंसल किया है, और अभी नई सरकार बनें एक - दो माह हुए ही है और पुनः बदला लेने की घातक प्रवृत्ति शुरू हुई है , आज इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के घर जो हरकतें मात्र 13 लाख के लिए की है वह घटिया सोच और टुच्ची मानसिकता का द्योतक है जबकि कितने लोग अरबों रुपये लेकर आपकी निगाहों के नीचे से विदेश भागे है और आज तक कुछ नही कर पाएं है
एनजीओ को इसका विरोध करना चाहिए और इन तानाशाहियों का जवाब भी देना चाहिए

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही