Skip to main content

अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं

अंबर रंजना पाण्डेय की कविताएं पहली ही नजर में अपने गठन और कथ्य के कारण चौंकाती हैं। लेकिन इन कविताओं के भीतर प्रवेश करने पर हमें कविता का एक अजस्त्र स्त्रोत दिखायी पड़ता है जिसमें हम खोते चले जाते हैं। अंबर लय और तुक में कई तरह के प्रयोग करते दिखते हैं। उनके कहन में एक अलहदा किस्म की सुगंध है। इन कई कारणों से अंबर कवि और कविताओं की भीड़ में अलग से पहचाने जा सकते हैं।

एक

दाड़ो दोई हाथ
नयन मिलाये पर फोड़ दिए
काम न आये जी तोड़ दिए
तात-मात रोग में छोड़ दिए
निज भ्राता लूट, ठोंका माथ

दुखी-दीन पलटकर न देखे
लुन्ठना, लीलना ही लेखे
नख से शिख मेखें ही मेखें
किया कुकर्म धोबन के साथ.

दो

सुनो मेरी कथा
जीवन गया बृथा

बाहर सारे वैभव भीतर भरी व्यथा
सुनो मेरी कथा
इस तरह जीने को मैं बार बार मरा हूँ
गटागट जहर पिया
कुछ यों मुझ लोलुप तुकबंद ने
जीवन जिया

भर घाम एक पाँव
ठाढ़ा रहा हाट बीच सब बेचा-खरीदा
भू, भवन, भूषण, वसन, अवसन देह, नेह, तिया
शेष बूढ़ा पिंड
फूटी आँख, टूटे हाथ, पछताता हिया

लगा गया काल
माथे के नीचे पाथर का तकिया

तीन

संगी मिलना बहुत दुहेला
घाम की घुमरी में हैं बस बेला की धूल
दोपहर ठाढ़ी लिलार पर जी निपट उचाट
सब के शीश निर्जल घट हैं. सूना हैं घाट,
भर ले लुटिया, अकेले ही निपटा आ हाट.
एक आँख रोयेगा कब तक
संगी मिलना बहुत दुहेला
चल अपने बिन घरनी के घर
जाग नंगा डासके बिस्तर
कौन ऐसा तीन भुवन खोल
दे सम्मुख जिसके हेड़ वसन
पूरा शरीर और सकल मन;
नहीं हैं कंठ जो कंठ लगे.
गंगाजी में नौका डूबी,
बृथा गया जीवन का धेला.

चार

डगमग चरण धंसती धरन

था भुवन धान का जलभरा खेत
और अब क्या रहा
बिका धान जल बहा
आँखों गड़ती रेत
शेष अन्वेष अनमन

तब की भूख और थी भात और
अब भूख अगाध, जूठन का कौर
आज टाट हूँ, वह भी खांखर
रोना अपार और कम हैं आँखर
देखता हूँ डूबती तरन.

पांच

काल निदाघ की दाह
शेष करतल भर छांह

यम का यज्ञ भेरुंड
भू जानो हवन-कुंड
हवि होते कितने मुंड
कि जला लोक ज्यों लाह

ठेठ माथे पर घाम
दूर प्रेयसी का धाम
किन्तु चला अविराम
भरने बांह में बांह.




Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही