गहन संताप, पीड़ा का अनुष्ठान और सतत परिणाम पाने के लिए संघर्ष और मन की गुत्थियों को सहेजने का समय है मार्च
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गुम हो चुकी आस्थाओं, क्षुब्ध मन, गुम्फित जालों में उलझी आशाएँ, टूटी हुई संकल्पनाओं के बीच तैरती किसी निर्बन्ध से बंधी नाव कब तक जीवन का बोझ लेकर उद्दाम वेग से बहती नदी में सम्बल ढोते रहेगी, कड़ी होती मार्च की धूप सब कुछ सूखा देगी
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अपनों से खाई चोट और उपेक्षा जब क्षण भंगुर जीवन का स्थाई भाव बन जाये और यह गलीज़पन जब हर बखत तारी होने लगे अपने ही मन - मस्तिष्क पर, तो मार्च का पतझड़ आपको बहुत कम लगने लगेगा - क्योंकि बरसात की चार बूंदों से शाखाएँ तो पल्लवित हो जायेगी - पर ये उपेक्षा कभी मन के नेहसिक्त सूखे ताल को पुनः भर नही पायेंगी
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सूर्यास्त के बाद घुप्प अँधियारो के मध्य कुटिल एवं वाचाल आत्माओं के संग हिंसा के षड्यंत्र बुनती परछाइयाँ जब यवनिका से निकल कर छाती ठोक मंच के ठीक मध्य में अपने सबसे वीभत्स रूप में सामने आती है और बेशर्मी से ठहाके लगाकर हल्कान होती है तो फागुन की गालियाँ भी शर्मसार होकर किसी घने गहरे भूतल में छुपने का जतन करती नज़र आती है
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भटकी हुई आस्थाएँ, सदियों से क़ैद विश्वास, प्रतिफल की आशा में जी रहें अंधविश्वास, खदबदाती इच्छाएँ और गुनगुने पछतावों के बीच जीवन के उद्देश्य पाने की जद्दोजहद अंततः हमें विरेचन के लिए मजबूर करती है और हम थक हारकर चूक ही जाते है
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ज़िंदगी में गलत निर्णयों की ऊहापोह, उलझे से रिश्तें, दरकते विश्वास, डगमग कदमों से बनी अस्थाई पगडंडियां, उफ़नते भँवर और भ्रमजाल के बीच छोटे और झूठे सहारे ढूँढती ज़िंदगी किसी टेसू के सुर्ख फूलों सी आग उगल रही है और इस तरह से ज़िंदगी अपने मासूम से दर्प पर गहरा घाव पूरी शिद्दत से उकेर रही है
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अदम्य साहस, प्रचंड उत्साह के अभेद्य किलों, सफ़लताओं के जोश, सब कुछ जीत लेने की कामना, मजबूत कदमों से एक छत्र राज करने की प्रबल इच्छाशक्ति असल में तब टूटती है जब अचानक से वसंत में बौराये पुष्प पतझड़ के आते - आते अपनी सुवास और पंखुरियाँ खो देते है, वृक्ष रीत जाते है, तनों की छाल शुष्क हो ज़मीन चूमने लगती है - असल में मार्च प्रकृति पर हिंसा से चढ़ाई करने का महीना है जो अंत में सब कुछ रौंद देता है
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नितांत निजी एकालाप, भटकता मन, शुष्क से होते संवादों का अंततः विलोपित हो जाना, प्रतिफल की आशा का सम्पूर्ण नैराश्य में बदल जाना, किसी एक पल के ग़म में पूरा दिन ख़ाली सा बीत जाना, अपने आपसे जूझते हुए लगता है कि जीवन के मधुमास में यदि पतझड़ ना आता तो अपने पास जो है उसका एहसास भी ना हो पाता
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दुरभि सन्धियों, परास्त होते संक्रमण काल, निस्तेज होती इच्छाशक्तियाँ, विलंबित ताल के बेसुरे आलाप, सद्कर्मों के रक्तरंजित हश्र और अनुतोष के दानावल में होकर किसी सघन सरसराते जंगल से पार हो जाने का ही माह है यह फागुन - जिसके उस पार चमकीली तीव्र मुमुक्षायें मात्र है, जिसके लालच में हम सब कभी-ना-कभी फँस जाते है
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अज्ञात भय, अचूक निशानों, अजस्र पीड़ाएँ, संश्लिष्ट भाव, निस्पृह योगदानों और कालातीत हो चुकी असँख्य स्मृतियों के भीषण और भयावह तस्वीरों का समागम है मार्च - जहाँ से हम बार - बार गुज़रते है और हर बार काँप कर रह जाते है - यह सोचकर कि अभी कितना लम्बा और चलेगा यह सब और कब तक हम व्योम में पुकारते रहेंगें
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जीवन श्रृंखलाबद्ध दुखों की एक लम्बी माला है जिसके एक मोती पर हाथ फेरकर दुख को जपते हुए हम अगला मोती पकड़ते रहते हैं और इस तरह से माला को जपकर हम अपने एक - एक दिन को पूरा करते है, एक दिन अचानक हमें लगता है कि हम जिसके अधिकारी थे, जो डिज़र्व करते है - वह तो हमने पाया ही नही, बल्कि उस सबमें उलझकर रह गए जो कभी कल्पना में नही था ; मार्च इसी माला को दोहराने का एक जतन भर है जो किसी और जगह होने की बदकिस्मती को इंद्राज करने जीवन में पुनः - पुनः आता है - एक पतले से धागे को लेकर, जिसे हम सुख कहते है, यह धागा इन सभी मनकों को जोड़े रखने का भ्रम पैदा करता है
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अलभ्य मौकों, अविश्वसनीय भरोसों, दुर्लभ दोस्तियों, सहज समझने वाली बातें, बिना माँगे मिली बेशकीमती मुआफ़ियाँ, बग़ैर पश्चाताप किये पाप और ना जाने ऐसी कितनी ही अनकही बातों का गवाक्ष है मार्च - जब हम अपने निज जीवन के बहीखाते कुछ उसी तरह बंद करते है - जैसे कोई वित्तीय वर्ष का बहीखाता, सदैव नया कुछ घड़ने और मन की गहराई से लिये संकल्पित निश्चय साधने को बेचैन
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प्रकृति से उधाड़े हुए रंग, टेसू की आग पर पके हुए रंग, मन की कल्पनाओं के अनूठे रंग, दिल -दिमाग़ के सीमाविहीन कैनवास पर उकेरे हुए रंग, - अबीर, गुलाल से लेकर श्वेत - श्याम रंगों की छटा में जीवंत हो उठते है, गर्मी - सर्दी के बीच जब परिवेश में फागुनी हवाओं के साथ सूखे रंग देर तक टँगे रहते है, तो बस इन्ही में से किसी एक रंग या रंगों के समूह में जीवन के रंग ढूँढ़कर हम अपना एक स्थाई चित्र बनाते है तो यही फागुनी सन्देश बन जाता है, यही फाग के गीत और यही जीवन का स्थाई राग
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नई जगहों के आच्छन्न संकट, परिवेश से तादात्म स्थापित करने की जद्दोजहद, आक्रामक भय, आवारा भीड़ और नए रास्तों पर स्थानीयता का पुट ली हुई बाधाओं के बीच निरर्थक अनुष्ठान ढोते हुए अपनी पहचान को बनाये रखना और अपना काम इस सबके बीच से सम्पूर्ण कर जाने की तरतीब ही मार्च होने का प्रतिफल है
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उत्पीड़न, उच्छन्न, उपेक्षा, परित्याग, अभ्यर्पण, निषेध, विलेख निष्पादन और प्रत्यार्पण का माह है मार्च - जहाँ हम सब ओर से निस्तारित होकर सब कुछ विलोपित करके नए की तरफ उन्मुख होते है
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चक्रवृद्धि ब्याज़ की दर पर चल एवं निभ रहे दरकते रिश्तें, उधार की साँसों पर धड़कता जीवन, दान में मिली खून की चंद बूंदे, मज्जाओं में जमा अवाँगर्द पानी, ज़्यादा पक चुकी दोस्ती की निरर्थक हुंडिया और नवनीत से दिखने वाली उजले पक्ष की कड़वी हक़ीक़तें ही दरअसल में बीतते जा रहे फागुन का कुल जमा शेष है, जो पुनः एक बार किसी नियंता रूपी बनिये की बही में कही लिखा जा रहा है
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बहुधा हर जगह हम प्रस्फुटित नही हो सकते पर जीवन के झंझावतों में एक साथ कई स्थानों पर कभी अपनी भौतिक या वायवीय उपस्थिति ज़रूरी हो जाती है - उस शून्य को भरने के लिये हम अपना ही विकल्प चुनते है, यह उपस्थिति कभी इतनी गलत हो जाती है कि विकल्प हमें ही ख़ारिज करने में लग जाते है - सुवासित वसंत के बाद उपजे फागुन से पतझड़ की तरह रीते जा रहे मार्च से बेहतर और कौन समझा सकता है
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हम सबसे ज़्यादा अपनों से हारते है, सबसे ज़्यादा अपनों से प्रताड़ित होते है, सबसे ज़्यादा अपनों से चोट खाते है, सबसे ज़्यादा अपनों के सहारे ही डूबते है, सबसे ज़्यादा अपनों से उपेक्षा मिलती है, अपने ही डाह है, परेशानी का सबब और कलुष ; फागुन का यह माह जो माहे - रंग है - एक स्थाई दाग़ हमारी आत्मा पर लगाकर आहिस्ते से गुज़रता है शुष्क जीवन पर किसी चट्टान सा बोझ देकर
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गरिमा, दर्प और घमंड में गहरा अंतर है और स्वयं को इसके बरक्स जब - जब हम देखते है तो बहुधा यह सब परिस्थितिजन्य हो जाता है, सापेक्ष भी - इसलिये कई बार जीवन में सब कुछ सकारात्मक होने के बाद भी स्व का विलोप करना पड़ता है ताकि हम जब हर वर्षान्त में रीत जाये कुछ नया करने को तो, इन तीन शब्दों को भी पुनः - परिभाषित कर लें और बढ़ता मार्च इससे बेहतर अवसर नही
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अक़्सर बरसात सिर्फ़ खुशी नही लाती, बहुधा अपने साथ ध्वंस भी लाती है और सब कुछ मटियामेट भी कर देती है, तप्त होती धरती पर ये अनायास हुई बरसात दुख की संजीदा शुरुवात है और कहर ढायेगी यह भी तय है और जब यह प्रलाप और प्रपंच मार्च में हो तो सवाल उठना वाज़िब है कि आखिर इस सबका क्या मक़सद है
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विचार, वाद और अभिव्यक्ति को त्यागकर मौकों के इंतज़ार में लगे और जी हुजूरी में निपुण रहने वालों को पहचानने का सबसे बढ़िया अनुकूल माह है मार्च, अफ़सोस यही है कि साँप - नेवले कम आ पाते है बाहर इस माह में दड़बों और बिलों से निकलकर, कबूतर और बाज़ जरूर हर जगह शिरकत करते नज़र आ जाते है
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हमें उन सभी जगहों पर मार्च में लौट जाना चाहिये - जहाँ आपकी मुहब्बत जन्मी, जवान हुई और जिन गलियों के आगोश में आप अपनी स्मृतियों के साथ हमेंशा हमेंशा के लिए सदा के लिए आँखें मूंद लेना चाहते थे, पर अक्सर मार्च के हिसाब आधे - अधूरे रह जाते है, गुड्डे - गुड्डी के खेल और घरकुल कभी स्थाई नही बनने देता है मार्च , और इसी वजह से लगता है कि हर मीठी याद उन जगहों पर लौटने का एक सबब है
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