मेरा स्कूल - संगत में न्याय के संस्कार
देवास रियासत दो हिस्सों में बंटी थी जूनियर और सीनियर। यह सीनियर देवास का न्याय मन्दिर है जहाँ न्याय मन्दिर यानी स्टेट के समय मे पवार वंश का कोर्ट हुआ करता था। आज इसे देखकर मन भावुक हो गया और उस समय के मित्र, सहपाठी, शिक्षक और सारा देवास तरोताज़ा हो गया। खारी बावड़ी और अखाड़ा रोड़ पर बसा मेरा यह स्कूल कितना मनोहारी था आज यह सोचकर ही मस्तक गर्व से उठ जाता था।
इसी के ठीक पीछे बड़ा सा मन्दिर है जिसमे पवार वंश के कुलदेवता है, और जहाँ हर जन्माष्टमी पर आठ दस दिन पहले से चौबीसों घंटे भजन होते थे / है और देवास महाराज भी आते थे। जन्माष्टमी के दिन दिंडी यात्रा पूरे शहर में निकलती थी परंपरागत वेशभूषा में।
ई एम फास्टर ने इसका जिक्र अपनी किताब "ए पैसेज टू इंडिया" में भी किया है।
यह सरकारी स्कूल था विशुद्ध हिंदी माध्यम का। यही मराठी प्राथमिक विद्यालय लगता था जहाँ से मैंने पाँचवी पास की और छठवीं में इसी न्याय मन्दिर में प्रवेश लिया।
कभी सोचता हूँ कि ये विद्रोही तेवर, अन्याय के खिलाफ बोलने और कर्म के संस्कार कहाँ से पड़े तो अब समझ आता है कि बालमन और किशोरावस्था में इस न्याय मन्दिर की भीत पर लिखे निर्णयों और जमाने से दर्ज इतिहास की कहानियाँ कही अंकित और टंकित हो गई।
आज यह बिल्डिंग खस्ताहाल है अवशेष बचे है पर सच मे भवनों का और उसकी दीवारों पर लिखा इतिहास हमारे अवचेतन पर असर तो डालता ही है।
लगता ही नही कि यह देवास है और एक शहर जो मेरे अंदर हिचकोले लेता है , धड़कता है और सांस लेता है। इस शहर ने बहुत कुछ दिया है और यहाँ के हर बाशिंदे और ज़र्रे - ज़र्रे से मुझे प्यार हैं।
तस्वीर सौजन्य मित्र अरुण पड़ियार का है जो आठवी तक और बाद में नारायण विद्या मंदिर में ग्यारहवीं तक साथ पढ़ते थे। वे बेहद सक्रिय और प्रतिभावान छायाकार है।
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