Skip to main content

मप्र सरकार – अज्ञान के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो 18 July 2017



मप्र सरकार – अज्ञान के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो

मप्र सरकार ने हाल ही में निर्णय लिया है कि प्रत्येक सरकारी अस्पताल में ज्योतिष बैठाये जायेंगे और ये ज्योतिष मात्र पांच रुपया लेकर सबकी समस्याओं का हल बताएँगे. इस संदर्भ में खबर यह है की सरकार ने किसी बड़ी संस्था से अनुबंध भी हस्ताक्षरित कर लिया है. मप्र सरकार का यह फैसला कई मायनों में अनूठा है और विचित्र भी है. प्रदेश में शिवराज सरकार गत तेरह वर्षों से और भाजपा पंद्रह वर्षों से राज कर रही है इस दौरान यदि मानव विकास सूचकांक देखे तो हम पायेंगे कि देश के बाकी राज्यों कि तुलना में यहाँ के आंकड़े पहले नम्बर या दुसरे नम्बर पर रहे है और इस तरह हमने लगभग हर जगह तरक्की करके नकारात्मक नाम रोशन किया है चाहे वह महिला हिंसा हो या कुपोषण या भ्रष्टाचार के आमले हो या अवैध खनन के, पर इस सबसे निजात पाने के लिए अपनी सत्ता के आखिरी दिनों में चल रहे और पिछले तेरह वर्षों में सबसे ज्यादा मुसीबत के दिन झेल रहे शिवराज सिंह चौहान के लिए यह फैसला लेना कितना तसल्ली भरा रहा होगा यह अकल्पनीय है.

मजेदार यह है की मप्र सरकार ने विदेशों की तर्ज पर देश में पहली बार अपने प्रदेश में आनंद मंत्रालय खोला है और इस मंत्रालय का कैलेंडर जारी करके एक भव्य कार्ययोजना भी बनाई थी. परन्तु एक वर्ष के बाद ना लोगों में आनंद  की अनुभूति हुई ना ही प्रशासन में या सत्ता के निकट जुड़े लोगों में आनंद का संचार हुआ. अब यह नया फैसला शायद लोगों को बीमारी, अवसाद तनाव और अन्य जटिल समस्याओं से छुटकारा पाने में शायद मदद कर दें यह देखना होगा.

जिस प्रदेश में लाखो बच्चे कुपोषण से प्रति वर्ष मर जाएँ, जचकी के लिए मूल सुविधाएं ना हो, जिस प्रदेश में जंग लगे औजारों से आँखों के आपरेशन हो और सैंकड़ों मरीज अंधे हो जाए, जहां लेबर रूम में कुतिया बच्चे दें और कोई देखभाल करने वाला ना हो, आक्सीजन के सिलेंडर चलते चलते मप्र जैसे बड़े राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में सौ पचास मरीज मर जाए, नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष में आग लग जाए और बच्चे जलकर मर जाए, प्रदेश के दूरदराज ही नहीं बड़े शहरों के पोषण पुनर्वास केंद्र बंद पड़े हो और बच्चे कुपोषण से मर जाएँ तो वहाँ यह फैसला क्या और कैसे समस्याओं से निजात दिलाएगा यह समझ से परे है.

तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है एक ओर प्रदेश में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों के साथ निजी चिकित्सा महाविद्यालय खोले जा रहे है, पैरा मेडिकल के पाठ्यक्रम शुरू किया जा रहे है बावजूद इसके डाक्टरों की कमी से यह प्रदेश जूझ रहा है साथ ही पैरा मेडिकल स्टाफ भी पर्याप्त संख्या में नही है और प्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य के स्थिति बहुत बुरी है फिर इन मुद्दों पर काम करने के बजाय सरकार का यह फैसला बहुत ही अचरज दर्शाता है कि लोकतन्त्र  में कैसे सरकार अपने होने और ताकत का बेजा इस्तेमाल जनता के विरुद्ध करती है. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान “वैज्ञानिक चेतना के प्रसार और प्रचार“ कल्याणकारी राज्य की भूमिका को महत्वपूर्ण मानता ही नहीं बल्कि निर्देशित भी करता है कि राज्य तमाम ऐसे उपाय करके योजनायें बनाएगा जिससे नागरिकों में वैज्ञानिक चेतना का विकास हो और वे तर्कपूर्ण तरीकों से समाज में जियें और रहना सीखें. परन्तु मप्र शासन ने जिस तरह से यह निर्णय लिया है वह बेहद आपत्तिजनक है जो इस तरह कि कूपमंडूकता को दर्शाता है जो नागरिकों को अवैज्ञानिक और अंधविश्वासों से भरे युग में ले जाने के लिए बाध्य अरता है. यह एक तरह से कहें तो अपनी जिम्मेदारी से पल्ला छुडाकर लापरवाही से आम लोगों को नर्क में जीने को अभिशप्त कर रहा है.  

दरअसल में इसकी पृष्ठभूमि में प्रदेश में होने वाले सरकारी धार्मिक आयोजन है जिसमे राज्य सरकारी खजाने से पंथ निरपेक्ष लोक कल्याणकारी राज्य में जनता के मेहनत कि गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च करता है. बारह वर्षों में आयोजित होने वाला उज्जैन के सिंहस्थ को अभी तक लोग अपना आयोजन मानकर मनाते थे और आयोजित करते थे जिसमे प्रशासन थोड़ी बहुत मदद करता था व्यवस्थाएं देखता था, परन्तु पिछले वर्ष हुए आयोजित हुए सिंहस्थ कि पूरी बागडोर शिवराज सिंह चौहान ने अपने हाथों में ले ली मानो यह उनका कोई निजी घरेलू आयोजन हो और पूरी मशीनरी को ना मात्र झोंका बल्कि खुद भी हर दूसरे तीसरे दिन सपत्निक वहाँ उपस्थित रहें, देशभर में लोगों को आने के लिए भव्य स्तर पर विज्ञापन दिए गए और बुलवाया गया. विचार मंथन हुआ. साढ़े तीन  हजार करोड़ रुपयों से आयोजित कुल जमा खर्च का फल किसे, कब, कहाँ और कैसे मिला यह तो खैर भगवान ही जानता है पर जनता का रुपया बर्बाद हुआ बेतहाशा यह सर्वविदित है. इस वर्ष नर्मदा यात्रा और छः करोड़ पौधे लगाने में २४ जिलों के प्रशासन को जिस तरह से इंगेज किया गया छः माह और कोई काम जमीनी स्तर पर नही हुए वह भी एक गंभीर लापरवाही है और इसमें भी जनता कि कमाई सरकार ने खर्च की.

यदि सरकार के इन निर्णयों और कार्यवाहियों के परिपेक्ष्य में अस्पतालों में ज्योतिष नियुक्त करने के अनुबंध को देखा जाए तो यह त्रस्त, हारी हुई और बेहाल जनता को मानसिक रोगी मानकर “मनोवैज्ञानिक” रूप से ट्रीट करने का एक थोथा उपाय है जिस पर रोक लगनी चाहिए. सरकार को मात्र पांच रूपये में लोगों को भरमाना आता है जबकि ओपीडी में रोगी कल्याण समिति से पर्ची ही दस रूपये में बनती है किसी भी सरकारी अस्पताल में ऐसे में ये पांच रूपये वाले डिप्लोमाधारी क्या खाकर लोगों का इलाज करेंगे और भविष्य बाचेंगे?

यह सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों से भागकर नवाचार और पाखण्ड के नाम पर ढोंग रचने और आने वाले चुनावों में बड़ी संख्या में एक वर्ग विशेष के लोगों और बेरोजगारों को सस्ता और शार्टटर्म रोजगार देने की  नुमाइश भर है जो दुनिया में सिर्फ मप्र में ही है. इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए ताकि हम अपनी संततियों  को पीछे धकेलने के बजाय स्वस्थ और वैज्ञानिक युग की ओर ले जाए.


Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...