राहुल गांधी की कांग्रेस ही मौजूदा परिस्थिति का ठोस विकल्प है.
जो लोग अक्सर कहते है कि विकल्प क्या है ?
कल जवाब मिल गया है देश को और अब तक ट्रोल की तरह से बदनाम करने वालों के होश भी ठिकाने आए है। राहुल गांधी विकल्प हो सकते है मौजूदा घृणा की घटिया राजनीति के।
क्षेत्रीय पार्टियों में दम नहीं है और गठबन्धन में नीतीश जैसे सांप है और वामपंथी तो कभी भी सत्ता में नहीं आ सकते इस तरह की परिस्थितियों में राहुल ही एकमात्र विकल्प है।
जिस अंदाज में झूठे वादे करके मोदी सत्ता में आए और वो मन्दिर का मुद्दा हो, कशमीर का, पाकिस्तान का, या कुछ और। जिस अंदाज में तीन सालों से देश से लालकिले पर खड़े होकर झूठ बोल रहे है, इस साल नोट बन्दी के गलत आंकड़े पेश किये और गलतफहमी पैदा की। अपने विपक्ष को जिस अंदाज में बेइज्जती करते है और तानाशाही करके आवाज दबाने की कोशिश करते है आम लोगों की ही नहीं बल्कि अपनी पार्टी के लोगों की भी वह चिंतनीय नहीं है ?
सिर्फ अंबानी और अदानी को फायदा पहुंचाने को जिस तरह से विज्ञापन करने से लेकर पाकिस्तान तक यात्रा कर आते है वह उनकी पक्षधरता दर्शाता है, यह देश प्रेम का कौनसा उदाहरण है? भाजपा को यह समझना चाहिए कि यह देश दुनिया का विचित्र किन्तु सत्य देश है जहां धैर्य और विजन की जरूरत है । गाय , गोबर और गौ मूत्र या बीफ, गौ रक्षक दल से देश नहीं चलता। शिक्षा , स्वास्थ्य, शोध का बजट ख़तम कर या पी एच डी की सीट कमकरके अपनी कम समझ और दूरदर्शिता का परिचय दिया है कि वे देश को कहां ले जाना चाहते है।
जो बहस करना चाहे वो पहले देश के असंतोष को टटोल लें, जमीनी हकीकत देख लें और बिगड़ते माहौल को परख कर भटकती भाजपा, छूटती पकड़, कमजोर प्रशासन, भ्रष्ट राजनेताओं - विधायकों , सांसदों पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, अपने ही राज्यों के मुख्य मंत्रियों के गिरते ग्राफ और पार्टी के भीतर के विरोध, बगावत को एक बार समझ लें यदि बुद्धि हो, हां गोबर की खुराक लेने वाले अंध भक्त को हरियाली ही नजर आएगी क्योंकि नोट बन्दी, जी एस टी या पेट्रोल के भाव से अंध भक्ति प्रभावित नहीं होती।
याद रखिए युद्ध का नियम है कि दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए।
आखिर क्या कारण है कि जमीन से जुड़ीं काड़र आधारित सबसे ज्यादा सदस्यता वाली पार्टी को अब रोज दिक्कतों का सामना पड़ रहा है ?
किसानों से लेकर छात्र और बच्चे तक इस समय इस सरकार से त्रस्त है और देश का एक भी ऐसा हिस्सा नही जो खुश हो।
आज राहुल गांधी ने जिस अंदाज में बोलकर अपने पप्पू होने का जो करारा जवाब दिया है और स्मृति से लेकर तमाम भाजपाई लोग बिफरे है वह भी बेहद चिंतनीय है।
दुखद यह है कि संघ में छोटे बच्चों को बौद्धिक देने वालों से थिंक टैंक के अभेद्य किलों में रहने विचरने वाले लोग भी देश की नब्ज ना पहचान पा रहे है और ना ही मोदी जी को सही फीडबैक दे पा रहे है।
नरेंद्र मोदी जी को यह क्यों समझ नहीं आ रहा कि उन्हें मुगालते में रखकर कुछ लोग देश को गर्त में धकेल चुके है। देश में एक भी मुद्दा ना सुलझ रहा और ना ही उसपर ध्यान दिया जा रहा है। यहां तक कि गुजरात जो प्रयोगशाला थी अब विनाश के पथ पर उन्मुख है।
यह भाजपा को समझना चाहिए कि उनके तथाकथित मुख्यमंत्री मप्र हो, राजस्थान हो या छग या ताजे ताजे बने उप्र के भी जनता का विश्वास खो चुके है और सिर्फ गुब्बारों पर बैठे एक आलपिन से अपने फूटने का खुद ही इंतज़ार कर रहे है।
देशभर में केंद्रीय और राज्य के कर्मचारी भी खुलकर विरोध में है वह सातवें वेतन आयोग की असंतुष्टि हो या संविदा कर्मचारियों की खस्ताहाल में बीत रही जिंदगी।
पता नहीं क्या जानबूझकर मोदी जी को झूठे भ्रम में रखकर उनको ही अगले चुनावों में ठिकाने लगाने की योजना है?
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