हिंसा कहीं भी हो मै उसका विरोधी हूं, इंसान को कोई हक नहीं कि वह जाति धर्म के आधार पर किसी को मारें या गालियां दें।
वंचित , दलित, आदिवासी और कमजोर के साथ हूं और इसमें कोई गलत नहीं है , आप उद्योगपतियों के, नेताओं और देश बेचने वालों के तलवे चाटे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता आपकी प्रतिबद्धता से।
किसी भी तरह की तानाशाही के खिलाफ हूं क्योंकि हम भारतीय संविधान के फ्रेम वर्क में जीने के लिए जन्मे है और संविधान मुझे समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के मूल्य ही नहीं सिखाता बल्कि इन्हे अपने जीवन में उतारने के लिए बाध्य भी करता है और यह भी कहता है कि मै अंधविश्वासों को मानने के बजाय वैज्ञानिक चेतना के प्रसार और प्रचार के लिए काम करूं।
मै मानता हूं कि अस्तो मा सदगमय यानि शिक्षा अंधेरों से उजालों की ओर जाने का साधन है ।
सेक्युलर शब्द मेरे लिए आदर्श है क्योंकि यह संविधान में है, जो भक्त इस शब्द का उच्चारण कर सोचते है कि वे आहत कर रहे है उन्हें देश का संविधान पढ़ना चाहिए क्योंकि अगर वे संविधान की इज्जत नहीं कर सकते (जैसा भी है) तो उन्हें राष्ट्रवादी होने का कोई हक नहीं है।
किसी भी धर्म और राजनैतिक विचारधारा को मानने के लिए मै मैच्योर और स्वतंत्र हूं और धार्मिक और हिन्दू होने का प्रमाणपत्र भाजपा या दो कौड़ी के कम अक्ल भक्तों से लेने की जरूरत नहीं है। दूसरा मुझे क्या , क्यों और किस पर लिखना है यह में तय करूंगा आप जैसे मूर्ख नहीं। कृपया मुझे ज्ञान देकर अपने कुजात संस्कार सार्वजनिक ना करें - एक बार उन मां बाप का सोच लें जिन्होंने आपको बड़ी उम्मीदों से पाला है कि आप उनका नाम ऊंचा कर यश कमाएंगे।
मेरे निजी या सार्वजनिक जीवन में कौन आदर्श होंगे यह मै तय करूंगा और निश्चित ही वे आडवाणी, मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत, लालू, नीतीश, मायावती, अखिलेश, राहुल , सोनिया , सीताराम येचुरी या दिग्विजय नहीं होंगे। वो मेधा पाटकर हो सकती है , मदर टेरेसा या मेरी मां। यह आप तय नहीं करेंगे।
ना मुझे भाजपा से मतलब है और ना कांग्रेस से। चुनी हुई सरकार के निर्णयों से मेरे जीवन के सामाजिक आर्थिक मूल्य और जीवन शैली प्रभावित होती है और कोई भी सरकार हो मुझे एक नागरिक के रूप में अपनी बात देश , समाज और मेरे निजी हक में ना मात्र कहने का अधिकार है बल्कि सवाल करने और निंदा करने का भी हक है। आप जैसे कुढ़ मगज लोगों को यहां टांग अड़ा कर अपने कुसंस्कार या खानदानी गुण दोष दिखाने की जरूरत नहीं है।
अगली बार यदि आपने मेरे निजी मूल्यों को आघात पहुंचाया और बदतमीजी की तो आपको अपने बाप मां से जाकर पूछना चाहिए कि क्या उन्होंने एक कपूत को पैदा किया या क्यों किया ? हिंदी समझ आती है ना ?
अभी भी नहीं आया समझ में तो चुपचाप अन्फ्रेंड कर निकल लें बजाय इसके कि मै आपकी सार्वजनिक भद्द पिटवाकर ब्लॉक करके रुखसत करूं।
मै मुतमईन हूं कि आपको यह समझ आया होगा।
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देवास में चित्रकला से लेकर संगीत और तमाम तरह के राजनेताओं या फालतू के लोगों / कलाकारों को लीज पर जमीन दी हुई है गैलरी, भवन या स्मारकों के लिए।
उद्देश्य यह था कि ये लोगों को कला के गुर सिखाए और कलाओं का प्रचार प्रसार करें, परन्तु ना तो ये लोग कुछ काम कर रहे और ना ही कलाओं को फैला रहे है। सिर्फ बरसों से जमीन दबाकर बैठे है और अपने धंधे में कमा रहे है।
मानो जमीन लीज पर नहीं लीद पर हो।
ये लोग शहर के बीचोबीच बेशकीमती जमीन का या तो इस्तेमाल करें या प्रशासन दान दी हुई महंगी सरकारी जमीन राजसात कर लें और जनहित में उपयोग करें। शहर में झुग्गियां बहुत है, शहरी मिशन में लोगों को पक्के मकान बनाकर दें और इसकी राशि प्रधानमंत्री आवास योजना से दी जा सकती है। गरीब अवाम को भी शहर के बीच अच्छी जमीन पर रहने के अवसर मिलें।
धंधेबाजों को सरकारी जमीन का इस्तेमाल ना करने दें या प्रशासन इन जमीनों पर सार्वजनिक शौचालय बना दें।
नवागत कलेक्टर को लिख रहा हूं कि तुरन्त एक्शन लें नवरात्रि में लोगों को फायदा तो मिलें।
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बड़ा घटिया कुलपति है, लड़कियों को ही ताड़ता रहता है क्या दिल्ली जाने पर या अपने कैम्पस में ।
"ये पूरा मामला सुनियोजित है। कुछ लड़कियाँ दिल्ली विश्वविद्यालय और जे एन यू से आई थीं। इन्हें मैं पहचानता हूँ"
- जी सी त्रिपाठी, वी सी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, नैशनल टेलिविज़न पर
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मैंने पूरी जिम्मेदारी से लिखा है यह।
क्या एक कुलपति को इतना समय होता है कि वाह दिल्ली या जे एन यू जैसे विशाल वि वि की लड़कियों को देखे और उनके चेहरे याद रखें और दोबारा अपने कैंपस में आने पर पहचान लें
यह दुर्भाग्य है अगर वह सही कह रहा है तो कि हमने कुलपति नहीं एक एक्स रे मशीन लगा रखी है
तीसरा वह जे एन यू को क्यों लक्षित कर रहा है क्योंकि उसे मालूम है कि भक्त वामपंथी को आसानी से फंसा कर मामला रफा दफा कर देंगे और बनारस की धर्म प्रेमी जनता फिर इस दुष्चक्र में फंस कर सब भूल जाएगी
वामपंथ, नक्सलवाद, मुस्लिम , आतंकवाद और अंत में राष्ट्रहित ऐसे मुद्दे है जिनपर आम भारतीय फंसता ही नहीं बल्कि आसानी से यकीन कर लेता है और यह एक बड़ी चाल है इस पूरी लॉबी की
या फिर आपको राहुल की तरह पप्पू का ट्रोल चलाकर धराशाई करेंगे
और सबसे महत्वपूर्ण बात कि वे बनारस की लड़कियों को क्या इतना मूर्ख समझ रहे है कि वे किसी के भी बहकावे में आ जाएंगी और किसी और के प्रभाव में लाठी खाने को तैयार हो जाएंगी
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यह बयान निश्चित ही गंभीर है और उन्हें पट्टी पढ़ाकर दिलवाया गया है ताकि मोदी जी या योगी की धूमिल होती प्रतिष्ठा में देश प्रेम का ज्वार और ज्वर जीवंत किया का सकें।
अगर वो सच बोल रहा है तो सी सी टीवी की जांच हो, आगमन स्थल पर रजिस्टर की जांच हो और जे एन यू से अनुपस्थित लड़कियों के प्रमाण लिए जाएं।
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यह एक तरह की पितृ सत्ता का ही प्रचारक है कि लड़कियां गाय है और कोई भी उन्हें हांक सकता है
जो लोग कहते है ना - अरे इन्हे घर मत बुलाओ ये घर उजाड़ने वाली औरतें है।
ठीक यही बात जो जेंडर की बहस का मुद्दा है, वहीं कुलपति का कथन है
सोचो यह कहां की उपज है और कैसे जन्मा होगा ?
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