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पंकज शुक्ला की ज़ुबानी जगजीत की कहानी......

बात जब जगजीत की हो तो क्यूँ न उन्हीं के शब्दों में बयाँ की जाए? आज जगजीत हमारे बीच में नहीं है लेकिन-
'जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया/
उम्र भर दोहराऊंगा ऐसी कहानी दे गया।?"
उम्र चाहे जो हो, शायद ही कोई होगा जिसने कभी जगजीत की गजल को न सुना हो या कभी गुनगुनाया न हो। कई हैं जिन्होंने अपने प्रेम का इजहार करने के लिए जगजीत की गाई गजलों का ही सहारा लिया है। हमारे जीवन में कितनी यादें, कितनी बातें। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई जगजीत को भूला दे-
'कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे/
मैं उतना याद आउंगा मुझे जितना भुलाओगे।"

यादें कितनी अजीब हैं...बिन बुलाए आ धमकती हैं, कहीं भी कभी भी...। जगजीत की आवाज की ऊँगली पकड़ कर कोई भी अपने बचपन में चला जाता है और कहने लगता है-
'ये दौलत भी ले लो ये शौहरत भी ले लो.../
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी.../
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन.../
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी....।"
उम्र के किस मोड़ पर जगजीत साथ नहीं होते? उस मकाम पर भी जहाँ सबसे ज्यादा मुश्किल होती है। जगजीत जैसे हमारी ही बात तो कह रहे थे-
'प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है।
नये परिन्दों को उड़ने में वक्त तो लगता है।
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था/
लम्बी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है।"

जिंदगी का कोई सिरा जब उलझता है तो जगजीत राह सुझाने चले आते हैं-
'धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो/
जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो।"

जीवन की साँझ ढ़ले जब गुजरा वक्त चुभने लगता है तो 'माँ" ही राहत देती है।

वो आवाज जो कदम-कदम पर साथ निभाया करती थी, वो अब नए लिबास में सामने नहीं आएगी। काश! ऐसा हो जाए-
'कभी यूँ भी तो हो/परियों की महफिल हो/
कोई तुम्हारी बात हो/और तुम आओ। कभी यूँ भी तो हो
/सूनी हर मंजिल हो/कोई न मेरे साथ हो/और तुम आओ।"

यादें अनगिनत हैं। जो कभी जगजीत से मिले भी नहीं, उनका भी जगजीत की आवाज से गहरा नाता है। आज लगता है कितना मुश्किल रहा होगा अपने बेटे के बेवक्त चले जाने के गम को भूला कर यह गाना-'चिट्ठी न कोई संदेश, जाने कौन सा है वो देश/ कहाँ तुम चले गए।" आखिर 'कोई ये कैसे बताए कि वह तन्हा क्यूँ हैं?"जगजीत बहुत याद आएँगे।
'वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफत भी अता करे/
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो।"

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