देश भर में १३ दिन का कोहराम, लंबे चोडे नाटक जैसे गांधी समाधि पर मौनव्रत और बच्चो सा दौडना, जिद फ़िर दलितो की भावनाओं को उभारते हुए अनशन समाप्त फ़िर वापसी फ़िर एक नई आकांक्षा की सुनहरी उत्कंठा लेकर वापसी और खुले आम किसी पार्टी विशेष को दुतकारना और जनता जो बेहद समझदार है और अपना भला बुरा समझती है, को ज्ञान की पुड़ियायें देना, आपसी तनाव और हश्र ये कि एक का पिट जाना सरे आम वो भी देश की सबसे सुरक्षित जगह पर अपने ही चेंबर में हे भगवान, अब लोगो को ये कहना कि वोट ही मत दो ....मराठी की एक कहावत याद आई "साठी बुद्धि नाठी झाली"
बोलो ये दस करोड का सवाल है- कौन है ये लोग, और कौन है ये नेता और इनका मकसद क्या है, क्या देश से भ्रष्टाचार ऐसे खत्म होगा या लोकतंत्र या ये सिर्फ अपनी व्यक्तिगत समस्या से देश को बहका रहे है ......और फ़िर आडवानी जी की यात्रा से इसका क्या सह सम्बन्ध है वो १३ का आंदोलन भी इसी क्रम की कड़ी था ना.........बोलो बोलो.....कब पुकारू..........बावरा मन देखने चला एक सपना........
बोलो ये दस करोड का सवाल है- कौन है ये लोग, और कौन है ये नेता और इनका मकसद क्या है, क्या देश से भ्रष्टाचार ऐसे खत्म होगा या लोकतंत्र या ये सिर्फ अपनी व्यक्तिगत समस्या से देश को बहका रहे है ......और फ़िर आडवानी जी की यात्रा से इसका क्या सह सम्बन्ध है वो १३ का आंदोलन भी इसी क्रम की कड़ी था ना.........बोलो बोलो.....कब पुकारू..........बावरा मन देखने चला एक सपना........
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