लौटना तो होता ही है सभी को आज या कल अभी या थोड़ी देर बाद......बस लौटना ही सब कुछ होता है चाहे यहाँ हो या वहाँ...........शाम हो या भुनसार में, हम सब लौट ही जाते है अपने आज से, अपने वर्तमान से, अपने आप से भागकर नहीं पर अपने आप में विलीन हो जाने के लिए, हम लौट जाते है और खो जाते है उन सब पलों को जीना चाहते है उन शहरों की उन गलियों में उन दोस्तों के साथ बैठकर याद करना चाहते है, अपने आप से भागकर सबसे दूर हो जाते है........में लौट आया हूँ इसलिए नहीं कि कुछ था नहीं या कही और नहीं जा सकता था पर अब तुमसे दूर रहकर ही तुम्हारे पास रह पाता हूँ इसलिए लौट आया हूँ हमेशा के लिए बस अब पुकार लो, बुला लो, कह दो कि आ जाओ एक बार, कह दो कि बस ठहर जाओ, वरना फ़िर लौट जाउंगा ना आने के लिए फ़िर कभी लौटूंगा नहीं और बस वही चिरनिद्रा में विलीन हो जाउंगा तुम्हारे लिए तुम्हारी यादो के साथ हमेशा के लिए(मन की गाँठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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