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देवास के चुतियापे

कुल जमा चार टाकीज और दो कालेज, सारे शहर के लोंढे और खूबसूरत बनने की नाकाम कोशिश करती लडकिया इधर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी शहर के इन आवारा कमीनो पर, असल में इंदौर जाती तो पढने थी पर फसाती थी खूबसूरत चाकलेटी लोंढो को पर वो इंदोरी ससुरे सिर्फ रस पीना जानते थे और फ़िर चूसकर फेंक देने में माहिर, सो इस शहर के चूतिये ही ठीक थे जो इन्डियन काफी हाउस में दोसा खिला देते या जवाहर चौक का पान खिला देते या बिलावली जाकर एक चुम्मे के बदले कुछ रूमाल दे देते या हाट बाजार में मिलने वाली सस्ती सी लिपस्टिक ला देते थे, एकमात्र पार्क मल्हार स्मृति मंदिर में जाकर बच्चो की ट्रेन में घूमा देते और फ़िर चुपचाप लडकियों की शादी में वेटर का काम भी करते और लडकियों की विदाई के समय मुकेश का गीत गाते सजनवा बैरी हो गए हमार....साले चूतिये थे ऐसे कितने ही चुतियो को उल्लू बनाकर ढेरो लडकियां बिदा हो गयी और आज जब ठसके से मायके में लौटती है तो ये बेचारे चुतियो की तरह मामा बनकर उनके बच्चो को उसी मल्हार स्मृति मंदिर में पानी पूरी खिलाते है (देवास के चुतियापे)

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