ये देवास के उस बड़े स्कूल की कहानी थी जहा केन्द्रीय सरकार के बच्चे पढते थे इस स्कूल के प्राचार्य जो पुरे बुन्देलखंडी थे और ऊपर से कवि, शहर के वामपंथी से हुई दोस्ती ने स्कूल को सुलभ शौचालय बना दिया किसी भी पब्लिक प्रोग्राम में वो स्कूल का सामान उठा लाते और फ़िर अपने गाने सुनाते, घर से बिगड़े नवाब की उसी स्कूल की मास्टरनियो और चपरासिनो ने वो झाड़ू से पीटा था कि शहर छोड़कर भाग गए पर फ़िर भी आते रहे अपनी कमर टूटने तक. उनके गीत उस वामपंथी ने छापे और शहर के भांडो से खूब गवाए......एक दूर बसी कालोनी में शिक्षा के इस पेशेवर चरित्र की बड़ी कहानिया है, बीबी ने भगा दिया आख़िरी दिनों में दोनों बेटियों ने वो हालत की कि मियाँ कही के नहीं रहे बुढापे में सडते रहे पर देवास आना जाना छूटा नहीं, शिक्षा का कीड़ा एड्स के मानिंद था और महिलाओं से दोस्ती की सनातन इच्छाएं बरकरार अभी भी है....... और शहर के पढ़े लिखे लोग उसे चुतिया कहते थे...(देवास के चुतियापे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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