दीपावली के चार दिन कब कैसे गुजर रहे है पता ही नहीं चल रहा ....आज पूरा दिन देवास के भडभुन्जो के साथ रहा, भाट और चारणों की परम्परा के वाहक ये लोग कुछ करते नहीं बस विशुद्ध बकवास, मुफ्त की हरामखोरी, शहर में फ़ोकट की हवाबाजी, दादागिरी जिसे मालवी में चुतियापा कहते है बस ऐसे ही ये दोस्तों के नाम पर कलंक और फ़िर भी प्यारे सारे शहर भर के लफडो की पुख्ता जानकारी रखने वाले ये भडभुन्जे बस चने सेकते रहते है और मर्द होने के दावे करते है......पर फ़िर भी सब मिलाकर ये मेरे लोग थे और हमेशा रहेंगे प्यारे. इनकी बकवास भी प्यारी लगती है ना, क्या करू सारे समझदारी के बाद भी इनका चुतियापा अच्छा लगता है.....(देवास के चुतियापे )
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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