शकील अहमद
मुंबई। भारतीय उपमहाद्वीप के लोग उन्हें आधुनिक युग की ग़ज़ल का सबसे बेहतरीन गायक और एक तरह से ग़ज़ल को दुबारा ज़िंदगी देनेवाला मानते हैं। जगजीत सिंह को ‘ग़ज़ल सम्राट’ कहा गया, ‘ग़ज़ल का बादशाह’ कहा गया। और जगजीत भी ग़ज़लकारों के पैरोकार की तरह ग़ज़ल को आगे लेकर बढ़ते रहे, उसे नए-नए रूप में ढालते रहे, उसे अनोखे अंदाज़ बख़्शते रहे, उसमें आधुनिक संगीत साज़ों की मिठास भरते रहे और नई पीढ़ियों को लगातार ग़ज़ल से जोड़ते रहे, उन्हें ग़ज़ल की समझ देते रहे और नए ज़माने में ग़ज़ल विधा को परवान चढ़ाते रहे।
8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में एक सिख परिवार में पैदा हुए जगजीत सिंह ने पढ़ाई राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में हुई की और संगीत के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए मुंबई चले आए।
सुनिए, जगजीत सिंह की सुरीली ग़ज़लें...
जगजीत सिंह ने हिंदी, उर्दू, गुजराती, नेपाली, सिंधी, बांग्ला जैसी कई भाषाओं में सैकड़ों गीत और ग़ज़लें गाईं, भजन गाए और नज़्में गाईं।
जगजीत सिंह उस दौर में संगीत की दुनिया में आए जब ग़ज़लों पर पाकिस्तानी गायकों का साम्राज्य था। लेकिन जब जगजीत सिंह ने ग़ज़लों की दुनिया में कदम रखा तो सबको पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ गए।
गजल सम्राट जगजीत सिंह नहीं रहे!
उन्होंने ग़ज़ल की विधा को आधुनिक स्वरूप दिया और युवा पीढ़ी को उसकी ओर आकर्षित किया। उन्होंने ग़ज़ल की पारम्पतिक छवि को नया स्वरूप देने के लिए आधुनिक तकनीक का खूब इस्तेमाल किया और पश्चिमी संगीत वाद्यों का भी ग़ज़ल में ख़ूब इस्तेमाल किया, लेकिन ग़ज़ल के पारम्परिक स्वरूप की सीमा नहीं लांघी। उन्होंने ग़ज़ल में आम-फहम शब्दों का इस्तेमाल किया और आम लोगों के दिलों को छू लिया।
जगजीत सिंह पहले भारतीय संगीतकार थे, जिन्होंने अपने अलबम ‘बियॉन्ड टाइम’ के लिए पहली बार मल्टीट्रैक रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल किया, इस रिकॉर्डिंग में उनके साथ उनकी पत्नी चित्रा सिंह भी थीं।
जगजीत ने फिल्मों में बहुत कम गाया, लेकिन जितना भी गाया लाजवाब और यादगार गाया। ‘साथ साथ’, ‘अर्थ’ और ‘प्रेम गीत’ की ग़ज़लें अपने मधुर अंदाज़ के लिए आज भी याद की जाती हैं।
जगजीत ने ग़ज़लों को लोकप्रिय बनाने के लिए बहुत मेहनत की और हर तरह से उसका प्रचार किया। उन्होंने अपनी ग़ज़लों के प्रचार के लिए और युवाओं मे ग़ज़ल का शौक परवान चढ़ाने के लिए ग़ज़लों के वीडियो तक बनाए।
उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब, मीर, फिराक गोरखपुरी की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ की मिठास से श्रद्धांजलि अर्पित की, तो कतील शिफाई, निदा फाज़ली, गुलज़ार, जावेद अख़्तर, सुदर्शन फाकिर जैसे इस ज़माने के गीतकारों के लफ्ज़ों को भी नए आयाम दिए।
उन्होंने बरसों तक अपनी पत्नी चित्रा सिंह के साथ मिलकर ग़ज़लें गाईं, लेकिन जब 1990 में उनके एकलौते बेटे विवेक की एक हादसे में मौत हो गई, तो चित्रा ने गाना बंद कर दिया।
जगजीत सिंह ने लता मंगेशकर के साथ ‘सज्दा’ अलबम बनाकर भी एक इतिहास रचा।
उन्होंने एक संगीतकार के रूप में भी कई उपलब्धियां हासिल कीं।
जब गुलज़ार ने ‘मिर्ज़ा गालिब’ टीवी सीरियल बनाया तो जगजीत ने उसका संगीत दिया और उसके ग़ज़लें भी गाईं।
जगजीत सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविताओं को भी गाया और ‘नई दिशा’ और ‘सम्वेदना’ नामक अलबम निकाले।
उन्हें सन 2003 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
उन्होंने संगीत करियर में लगभग 80 अलबम बनाए।
जगजीत सिंह को संसद भवन में गाने का सौभाग्य भी मिला। 10 मई 2007 को 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ पर उन्होंने बहादुर शाह ज़फर की ग़ज़ल ‘लगता नहीं दिल मेरा उजड़े दयारे में’ गाकर इतिहास रचा।
यह बहुत ही दुखद है कि जिस दिन जगजीत सिंह पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली के साथ एक साझा कार्यक्रम देनेवाले थे, उसी दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया और उसके बाद वे उससे उबर न सके।
जगजीत की ग़ज़लों का सुरीला सफर जारी रहेगा...
होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो … [tribute]
♦ नरेंद्र नाथ
चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश, जहां तुम चले गये… ठीक इसी अंदाज में सोमवार की सुबह जगजीत सिंह दुनिया से रुखसत हो चले। साथ ही रुखसत हुआ एक युग। जगजीत सिंह क्या थे, उनके गीत गजल का इंपैक्ट हमारी रूह पर कितना गहरा था, यह समझना होगा।
बात 80 और 90 के दशक की है। तब एप्पल और ब्लैकबेरी सिर्फ फलों के नाम हुआ करता था। तब बचपन अमर चित्र कथा और जवानी जगजीत सिंह की गजल के साथ शुरू होती थी।
परिवार से दूर राजपाल से द्वारपाल की तैयारी करने में मशगूल उस वक्त की युवा जेन बुश के टेप रेकॉर्डर में टी सीरीज के रास्ते रात रात भर … कोई ये कैसे बताये कि वो तनहा क्यों है … सुनता था।
प्यार के अहसास के साथ तन्हाई सोसाइटी की बंदिशों, उसकी गलत दलील और इनके बीच जिंदगी के मायने तलाश करते रेस्टलेस वक्त के लिए कुलिंग एफेक्ट का काम करती थी जगजीत सिंह की गजलें। मेरे एक दोस्त ने कहा था, मैंने अपनी जवानी में जितना अपने बाप की नहीं सुना, उससे अधिक जगजीत को सुना है। उस पूरी जेन के लिए जिंदगी जब धूप थी तब जगजीत के गीत घना साया का काम करते थे।
आज जब जगजीत दुनिया छोड़ गये हैं, तब जहां एक ओर न्यूज चैनल, सोशल मीडिया हर ओर गजल सम्राट को श्रद्धांजलि देने का दौर शुरू हुआ, तो एक बड़ा तबका था, जो नॉस्टैल्जिक हो गया। यह एक रूह के साथी के बिछड़ने की तरह था।
तुम इतना जो मुस्करा रहे हो … प्यार का पहला खत लिखने में … न उम्र की सीमा हो … होठों से छू लो तुम … गालिब से लेकर निदा फाजली के शब्दों को जगजीत का साथ … रूह को चुनने का गारंटीड जरिया बन गया।
ये हमारे लिए महज गजल भर नहीं थे, इनके एक एक शब्द एक्सप्रेशन थे हमारे..
उस दौर के यंग जेनरेशन का जगजीत सिंह की गजलों ले साथ कनेक्शन उन्हें लोकप्रियता में उस दौर के दूसरे गजल गायक (गुलाम अली) से आगे ले गया। याद करिए क्रिटिक जगजीत को हाइएस्ट लेवल पर नहीं मानते थे…
गजल ने खुद को युवाओं के बीच अपनी जगह बनाने में सफलता भी जगजीत की आवाज के जरिये पायी थी।
गालिब को जगजीत युग में पढ़ा नहीं, सुना गया।
अर्थ, साथ साथ, प्रेम गीत बेशक अपने सशक्त कथानक की वजह से चर्चा में आये, लेकिन मास को कनेक्ट करने में जगजीत के गीत का अधिक योगदान रहा।
जगजीत उस दौर में चल रहे थे जब सिनेमाई संगीत ऑल टाइम लो पे जा रहा था। मैं हूं मर्द टांगे वाला … से लेकर … अटरिया पे लोटन कबूतर रे … तक एकदम हार्स भरा दौर था हिंदी फिल्म म्यूजिक के लिए। उसी दौर में जगजीत के अलबम सुकून दे रहे थे। सरफरोश फिल्म में … होश वालों को खबर क्या … गीत में आमिर-सोनाली बिंद्रा की जोड़ी ने स्माल टाउन रोमांस का परफेक्ट टोन सेट किया था, वो जगजीत के गीत का ही असर था।
मल्टीप्लेक्स, कैफे कॉफी डे, बरिस्ता जब नहीं थे, तब जगजीत के गीत के साथ शाम कटती थी, रात अपना सफर पूरा करती थी।
याद है वो वाकया, जब जगजीत के कंसर्ट में एक लड़की ने सबके सामने कहा था – आपकी गीत ने हमें प्रेम का मतलब सिखाया।
यह सिर्फ उसकी अभिव्यकित भर नहीं थी।
जगजीत अब हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अगर एहसास नहीं मरता, तो यकीन मानिए, उनके गीत भी हर वक्त की कहानियों में, समय के सीने में, हर वक्त रूह को छूते रहेंगे।
(नरेंद्र नाथ। प्रतिभाशाली युवा पत्रकार। अंग्रेजी पत्रकारिता से करियर की शुरुआत। हिंदी में दैनिक हिंदुस्तान के जरिये आगाज। जागरण के युवा अखबार आईनेक्स्ट में समाचार संपादक रहे। इन दिनों दिल्ली में। उनसे narendranathht@gmail.com पर सपंर्क किया जा सकता है।
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