Sonu Upadhyay has written a beautiful Poem for me today Morning
संग अपने ढेर मिठाई लाए
दादा लेकिन, बडे सयाने
बच्चों को हर बार चिढाते
मिठाई बांटने सबको बुलाते
लेकिन पहले खुद ही खाते
खाली हो गए सभी कटोरे, दादा हमारे बहुत चटोरे
घंटो तक है फुल्लो रोई
दिन भर रही खोई-खोई
खेल, खिलौने, मिठाई भूली
दादा की मूंछों से डरकर सोई
दादा से है फुल्लो रूठी
आंख छुपाए, मोटी मोटी
दादा पर है चुप्पी साधी
मिठाई चट कर गए हैं सारी
अब तो फुल्लो आंख तरेरे, दादा हमारे बहुत चटोरे
फुल्लो की प्यारी है पलटन
आंख मिचौली खेले हर दम
रानी, गोलू, बंटी सारे
धूम मचाए, गली में सारे
फूल्लो लेकिन चुप बैठी है
दादा से अब भी रूठी है
खेल खिलौने, मिठाई पटाखे
कुछ नहीं लाए दादा हमारे
उदास है आंगन के मोगरे , दादा हमारे बहुत चटोरे...
देखो दीवाली की सांझ है आई
पलटन ने दादा की परेड लगाई
बोले दादा कुछ नहीं लाए
खाली हाथ कैसे घर आए
मिठाई लाए पर खुद निपटाए
हमने कितनी बाट है जोही
फुल्लो देखो आंख दिखाए
आंगन-आंगन लोट लगाए
शोर मचाए पलटन के छोरे.. दादा हमारे बहुत चटोरे...
पलटन से घिरे हैं दादा
जमा चौकडी शोर मचाए
दादा डांटे, थोडा चिल्लाए
झोला दिखाया फिर मुस्काए
मिठाई कपडे, बम पटाखे,
बाहर निकाले सारे के सारे
झूम उठी बच्चों की टोली
फुल्लो कूदे, जमकर चिल्लाए
दादा हमारे सबसे प्यारे
थोडा डांटें और चिढाए
लेकिन बाद में खूब रिझाए
थोडे मोटे, थोडे छोटे
दादा के हैं थोडे नखरे, लेकिन नहीं है वे चटोरे.. दीदी नहीं अब दादा आए
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