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अब तू नहीं तेरा गम तेरी जुस्तजू भी नहीं,

कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है.
कि जिंदगी तेरी जुल्फों की नर्म छांव में गुजरने पाती तो शादाब हो भी सकती थी...
अजब ना था की मैं बेगानाये आलम रहकर तेरे जमाल की रानाईयों मैं खो रहता
तेरा गुदास बदन, तेरी नींदबाज आँखें , इन्हीं हसींन फसानो में महम हो रहता
पुकारती मुझे जब तल्खियां जमाने की, तेरे होंठों से हलावत के घूँट पी लेता....
मगर ये हो ना सका, और अब ये आलम है कि अब तू नहीं तेरा गम तेरी जुस्तजू भी नहीं,
मगर यूँ ही कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है......

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