जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए!
जिंदगीभर दुनिया के साथ ग़म के समंदर में गोता लगाने वाले जगजीत आज वो समंदर हमारे हवाले कर गए। श्रद्धांजलि।
...कहां तुम चले गए?
आवाज़ जिंदा है -धीरज कुमार
एक श्रधांजलि जगजीत सिंह के लिए -
आज सच में ऐसा लगा रहा है जैसे मैंने कुछ खो दिया है और मैं अनाथ सा हो गया हूँ. आज जगजीत सिंह का निधन हो गया और लगता है कोई अपना नहीं रहा हो. वो सच में मेरे अपने थे क्यूंकि आज मैं जो भी लिखता हूँ उसमे जगजीत सिंह जी और मेरी तन्हाई का ही हाथ है. मेरी तन्हाई तो मेरे साथ रही पर वो चले गए. पर वो कही नहीं गए मुझ जैसे, आपके जैसे लाखों लोगों के दिलों में हैं और हमेशा रहेंगे.
यूँ लग रहा है जैसे सब ख़त्म हो गया हो,
जैसे दिल की बस्ती वीरान हो गयी हो.
मन का हर कोना खली-खली सा हो गया,
और रगों में दौड़ते लहू जम गए हों.
सपनो के खंडहर मैं अकेला ही रह गया हूँ,
अभी -अभी हवा का एक झोंका उसे उड़ा ले गयी.
आँखें पत्थरा गयी हैं और नसें ठंडी हो चुकी हों ,
जैसे अभी किसी सपने से आँख खुली हो.
पर उसका तिलिस्म कुछ ऐसा था कि,
रगों में घर बना लिया हो जैसे किसी ने.
जैसे साँसों से उसकी खुशबु आती हो,
दिल की हर धड़कन बस उसका नाम लेती है.
अभी-अभी तुम यही थे ,अभी तुम कहाँ गए,
सब कहते हैं तुम अब नहीं रहोगे मेरे पास.
सब तो पागल हैं पागलपन सिखाते हैं,
पर 'जगजीत' ऐसा कैसे हो सकता है.
कैसे तुम यूँ अकेले-अकेले निकल जाओगे,
और मुझे छोड़ जाओगे यूँ ही तन्हा तुम.
तुम्हे कुछ याद भी है क्या नहीं न शायद भूल गए,
जब मैंने कलम उठाई थी जीने के लिए.
कुछ शब्द उकेरे थे मैंने कोरे कागज़ पर,
तुमने और मेरी तन्हाई ने तो मुझे लिखना सिखाया था.
जब मेरी तन्हाई ने मुझे तन्हा नहीं किया 'जगजीत',
तुम कैसे मुझे अकेले छोड़ जा सकते हो.
'जगजीत' तुम तो हमेशा मेरे साथ रहोगे ,
तुम्हारी आवाज़ ने ही मुझे जीने की शक्ति दी है.
जब भी राह में थकता हूँ और गिरने को होता हूँ,
तेरी आवाज़ ही थामकर मुझे जीने का सहारा देती है.
तुम कहीं विलुप्त नहीं हुए हो यार ,
बस वो जिस्म जिसे दुनिया देखती थी.
सबकी नज़रों से ओझल हो गया है,
और अपनी आवाज़ में जा बसे हो तुम.
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