Skip to main content

Meer Singh's Post of 18 Sept 2023

1970 में आयी सत्यजीत रे की फिल्म प्रतिद्वंदी का यह सीन किसी फिल्म में फिल्माए गए इंटरव्यू का एक क्लासिकल सीन है। सिद्धार्थ नाम का एक नौजवान अपने पिता की मृत्यु के पश्चात मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ अपने घर का खर्च उठाने के लिए नौकरी की तलाश में काफी जगह इंटरव्यू देने जाता है।
किसी भी नौजवान के लिए इंटरव्यू एंजाइटी प्रोवोकिंग होता है एक अदद नौकरी के लिए सड़क और बस में भीड़ के बीच सफर करते उस नौजवान के लिए भीड़ एक डर बन जाती है ।अनेक प्रश्नवाचक सर्वनामों से युक्त सवाल नौकरी खोजते परीक्षार्थी की दुनिया के सबसे भयावह वाक्य होते हैं।
सिद्धार्थ बोटैनिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है।इंटरव्यू बोर्ड के एक सदस्य का सवाल होता है कि तुम्हारे हिसाब से पिछले दशक की सबसे महत्वपूर्ण घटना कौन सी है? सिद्धार्थ तुरंत उत्तर देता है, कि वियतनाम के लोगों का अमेरिका के विरुद्ध संघर्ष इस दशक की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी,और चांद पर मनुष्य की लैंडिंग? बोर्ड के सदस्य पूछता है..
सिद्धार्थ स्पष्टीकरण देता है वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वो भी काफी महत्वपूर्ण घटना थी किंतु चंद्रमा पर मानव का कदम रखना वैज्ञानिक रूप से आज नही तो भविष्य में होना ही था। किंतु जैसा प्रतिरोध वियतनाम की आम जनता ने पेश किया वह ‘अनप्रेडिक्टेबल’ और बेमिसाल है।क्या तुम कम्युनिस्ट हो ? लोगों से सहनुभूति के लिय कम्युनिस्ट होना जरूरी नहीं।बोर्ड को उसमे एक खतरनाक नौजवान नजर आता है और अंततः उसे नौकरी के लिए रिजेक्ट कर दिया जाता है।
प्रतिभा, विद्रोह, जुनून और परोपकार जैसी भावनाएं रखने वालों के लिए आज की नौकरी में कोई जगह नहीं है। यह तो उस दौर की बात है जब काफी पब्लिक सेक्टर कंपनियां थीं, निजीकरण के आधुनिक दौर में बाजार द्वारा बनाई गई एक कृत्रिम मशीनरी के लिए एक ऐसे पढ़े लिखे मानसिक गुलाम की जरूरत पड़ती है जो उनके ढांचे में एक मजदूर की तरह फिट होने के लिए उपर्युक्त होता हो, इंटरव्यू का आज के दौर में बस इतना ही मतलब है...

Meer Singh की पोस्ट
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही