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Posts of 13 and 14 Sept 2023

 इधर Artificial Intelligence -AI, पर कुछ वीडियो देखें, कुछ लोगों से बात की, कुछ लोगों के यहाँ - वहाँ प्रवचन सुनें - जो उन्होंने वाट्सएप्प और फेसबुक से लेकर यूट्यूब पर शेयर किए थे

सब एक ही बात कह रहे कि "बहुत खतरा है AI से , मेरी बात सुनिये जो मैंने अलाना - फलाना प्रवचन में बच्चों, युवाओं और बेहद मक्कार किस्म के अनपढ़ और कॉपी पेस्ट माड़साब लोग्स के बीच कही है" मैंने कहा - "और जो भयंकर - भयंकर नाम और वेब साइट्स के सन्दर्भ दिए वो तो पहले से सबको मालूम है, तुम कॉपी पेस्ट कर आ गए वहां"
दो - चार को मैंने पूछा कि - "गुरू ये बताओ कि 99 % प्रवचन तो तुम्हारी पुरानी परिकल्पनाओं, पूर्वाग्रहों और उजबक किस्म की ज्योतिषीय भविष्यवाणियों से भरा पड़ा है और ये सब बकवास जो तुम उन निरीह लोगों को पेलकर आये हो तो इस सबमें AI कहाँ है"
सब ससुरे एक बात से शुरू करते है कि दक्षिण भारत के किसी चैनल ने एक दलित सुंदर लड़की को एंकर बना दिया है और अब यह खतरा है और फिर शुरू हो जाते है - अपनी व्यक्तिगत भड़ास, बॉस से पंगे, सहकर्मियों की खटपट और घरेलू मुद्दों से जुड़े मुआमले, शोषण, कम तनख्वाह और नई नौकरी की जुगाड़ और बेशर्मी से आख़िर में कह देते है कि "दादा कही काम हो तो बताओ, कोई फेलोशिप हो तो बताओ, कोई घर बैठकर काम करना हो तो बताओ, बस रुप्पया बढ़िया मिलना चाहिये"
तो अभी तक कुल मिलाकर यह कहानी है AI की , दो कौड़ी के विवि जिनके यहाँ आठ हजार रुपये वाले मास्साब लोग्स पढ़ा रहें है उनके बीच प्रवचन देकर आना और यहाँ भयंकर तरीके से प्रचार करना - मल्लब कुछ भी
रहम करो यारों, और बाकी तो लेपटॉप ऑन करो तो रोज जैसे फेसबुक पूछता है कि दिमाग़ में क्या है, वैसे ही दर्जनों साइट पूछ रही है कि कोई प्रश्न है क्या आपके दिमाग़ में
याद रखिये जब कम्प्यूटर आया था तो खूब वाद विवाद प्रतियोगिताएं हुई थी पक्ष - विपक्ष में, जब नेट बैंकिंग आया तो बहुत बहस हुई थी, मेट्रो चालू हुई तो भी हुई थी, अरे ज्ञानियों असलियत यह है कि तुम्हारी ज्ञान की दुकानें बंद हो रही है और तुम अपडेट नही हो रहें हो, सड़ी - गली पत्रकारिता की दुकान के ठेकेदारों, कोचिंग के धंधे वालों और डॉक्टरी का कमीशन खाने वालों सुधर जाओ
आदिम गुफाओं से निकलकर Centralized Air-conditioned घरों में रहने का जुगाड़ और आविष्कार इंसान ने ही किया है और यह AI भी तो इंसान ही नियंत्रित कर रहा है, जवाब और विकल्प क्या भूत - चुड़ैल दे रहे हैं - हद है यार निरक्षरता की
***
मिलना - जुलना संयोग भी है और किसी से सायास ना मिलना भी एक दुर्योग या कुटिलता भरा षडयंत्र, यदि किसी से वादा करके भी ना मिल पाए और इसकी पुनरावृत्ति बार - बार होती रहें तो इस तरह के मर्ज का कोई इलाज नही
मज़ा तो तब आता है जब आपको जताने के लिये किसी और के साथ हमेंशा समय मिलते जाता है और इसका भौंडा प्रदर्शन भी हम पूरी बेशर्मी से करते है
अफसोस तब होता है जब अधकचरे गाँव - कस्बों के, आसपास के संगी - साथी और दोस्त के भेष में बैठे फर्जी लोग या रिश्तेदार तथाकथित बड़े शहरों, राजधानियों, महानगरों में जाकर उस सभ्यता में धँस जाते है जो इनका सब कुछ लील गई है और अपने मूल्य भूल जाते है और फिर एक दिन इनका अंत भयावह होता है, इनकी शवयात्रा में दो लोग चार कांधे ढोने नही आते
ये कही के नही रहते, फिर राजा हो या रंक भिखारी, बेहतर है इन्हें किनारे पर छोड़ दिया जाए - ये वो लोग है जो आपको ठीक नदी के बीच जाकर डूबो देंगे
फिर भी इतना ही कहूँगा राम जी भला करें इनका, इधर श्राप देना बंद कर दिया है

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