साई बाबा हो, श्रीराम हो, श्रीकृष्ण हो, पैगम्बर हो, गुरु गोविंदसिंह हो या जीसस हो - ये सब बहुत ही सामान्य इंसान थे और अपने कर्मों से अपने उच्च आचरण और व्यवहार से इन लोगों ने आदर्श स्थापित किये -निजी जीवन मे भी और सार्वजनिक जीवन मे भी और मानवता के उच्च मूल्यों को अपने जीवन मे ही नही अपनाया - बल्कि वृहद समुदाय को अपने साथ जोड़कर सृष्टि में नवनिर्माण भी किया। इसलिए ये देवदूत है और वंदनीय है आज और हमेंशा।
हम किंचित या उनके कार्यों को करना तो दूर अगर सहज मन से स्वीकार भी कर पाएं या उन्मुक्त मन से प्रशंसा भी कर पाएं तो मनुष्य हो सकते है।
क्रिसमस की शुभकामनाएं आप सबको। दया जैसा उच्चतम मूल्य जिस व्यक्ति ने सीखाया उसके लिए मानवजाति हमेंशा नतमस्तक रहेगी।
उन सबको विशेष बधाई जो रात से तुलसी जयंती की बधाई देते नही अघा रहें। एक लोटा पानी अपने आंगन की तुलसी में रोज डाल दें तो प्रकृति पर कृपा होगी बशर्तें अपने ओसारे में कोई गमला लगा हो तुलसी का !!!
तुलसी के औषधीय पौधे से हम सब परिचित हैं यह पौधा सिर्फ पौधा नहीं बल्कि एक आवश्यक पौधा है जो अमूमन हर घर में पाया जाता है इसके महत्व से हम सब वाकिफ हैं , हमारे यहां संस्कृति में देवउठनी ग्यारस पर तुलसी विवाह की समृद्ध परंपरा है - हर हिंदुस्तानी घर में लगभग तुलसी विवाह होते हैं ।
मैंने अपनी 50 वर्ष की उम्र में आज तक तुलसीदास जयंती जो जुलाई में आती है और तुलसी विवाह के अलावा तुलसी दिवस के बारे में कभी नहीं सुना, ना इसका जिक्र किसी पुराण या धर्म ग्रंथ में है - ऐसा सुना है फिर अचानक आज सुबह से देश विदेश से वे लोग तुलसी दिवस के संदेश भेज रहे हैं जो तुलसी के पौधे को ना देखे होंगे, ना कभी चखा होगा या यह सूंघकर देखा होगा ! अपने बच्चों को गेंहूँ के पेड़ "रूरल एरिया" में होते है सिखाने वाले अचानक तुलसी पर मेहरबान क्यों ? बख्श दीजिये भारत को।
मजेदार यह है कि यह सब आज यानी क्रिसमस पर याद आ रहा है सबको, क्या हो गया है हम लोगों को कितने घटिया और संकीर्ण हो गए हैं , एक कौम अपना त्यौहार मना रही है और हम वही वैमनस्य फैला रहे हैं बेहद शर्मनाक है यह सब। जबकि हमारे संस्कार तो कंस, शकुनि को मामा कहते है, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम रावण को मारने के पश्चात लक्ष्मण को उसके पाँव पड़कर ज्ञान लेने जो कहते है।
कैसा समाज हम रचना चाहते है। यह पीड़ा उन लोगों की ज्यादा है जो अमेरिका या इस्लामिक देशों में रह रहे है और मुझे लगता है कि अपने ऊपर अल्पसंख्यक होने और अलग थलग पड़ जाने की पीड़ा से ग्रस्त है और जिस थाली में खाया उसी में छेद करने की प्रवृत्ति दर्शा रहा है। ये युवा हिंदुस्तान में रहे और मेडिसिन स्क्वेयर के भाषण सुनना छोड़कर भारत की हकीकत से वाकिफ हो तो समझेंगे कि देश किसे कहते है। ये जिसकी रोटी खा रहे है, जहां से कमा रहे है उसी देश और समाज से गद्दारी कर रहे है।
यह सब आने वाले भारतीय समाज के लिए बहुत घातक सिद्ध होने वाला है, कल हम जैन, बौद्ध, सिख, दलितों और आदिवासियों को अलग करके एकाधिकार जतलायेंगे और फिर इस तरह से यह सुंदर रंग बिरंगा देश खत्म हो जायेगा। मेहरबानी करके यह सब रोकिये और इसका विरोध करिये, समझाइये प्यार से, हम विविध है इसलिए एक है, ताकतवर है और आज महाशक्ति है, कल हम कमजोर हो जायेंगे। त्योहारों को त्यौहार ही रहने दें, इन्हें अपनी गन्दी सोच, राजनीती और इमेज बनाने का साधन ना बनाएं प्लीज़ !!!
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