Disgusting Incident happened in Supreme Court of India on 13 Jan 2018
मुझे लगता है यह मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ बगावत है और एक सही कदम
4 जजों ने कहा कि 20 साल बाद हमें दोषी ना करार ना दिया जाएं कि आपने अपना काम सही नही किया। दीपक मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में तानाशाही मचा रखी है और अपनी मन मर्जी से वे फैसले ले रहे है और जनहित को परे रखकर काम करते है जोकि संविधान की मूल आत्मा और न्याय के संगत नही है।
वरिष्ठ वकील शांतिभूषण जी ने इनके शपथ ग्रहण के पूर्व ही इनके कथित कारनामों का चिठ्ठा द वायर में खोला था।
बहुत महत्वपूर्ण स्थिति में एक साथ 4 विद्वान न्यायाधीशों ने आकर जिस तरह से बगावत का बिगुल फूंका है वह दर्शाता है कि देश सच मे इस समय भयानक संकट में है।
महामहिम राष्ट्रपति जी के लिए यह फैसले की घड़ी है जब वे तुरंत कार्यवाही कर देश को इस संकट से निजात दिलवाए।
पिछले छह माहों में आये फैसलों से यह स्पष्ट विदित होता है कि न्याय की स्थिति और सम्पूर्ण न्यायपालिका की स्थिति बहुत गम्भीर है और जिस तरह से अपराधियों और हिस्ट्री शीटर लोगों को बचाया जा रहा है, विचारधारा और व्यक्ति विशेष के दबाव में कुछ खास वर्ग के हितों में निर्णय लिए जा रहे है वह आम आदमी और देश के नागरिकों के लिए बड़ा खतरा है।
देश बदल रहा है। मैं इन 4 न्यायाधीशों का समर्थन करता हूँ और उनके इस कदम की सराहना करता हूँ.
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साढ़े तीन साल में देश के संवैधानिक प्रधानमंत्री ने कोई प्रेस वार्ता नही की जबकि मन की बात से लेकर मीडिया को पिछले दरवाज़े से ज्ञान गणित बहुत दिया ।
आज देश के चार योग्य, पढ़े लिखे, अनुभवी और दीर्घ कालीन प्रशासनिक अनुभव रखने वाले चार जजेस ने जो आरोप लोकतंत्र को लेकर लगाए है तो जाहिर है कि लोकतंत्र के मुखिया को हम सब आज प्रेस से खुले और मुक्त दिमाग़ से बात करते हुए देखना समझना चाहते है।
यह उनके , देश और न्यायपालिका के हक़ में होगा ताकि एक गरीब आदमी की आस्था ना टूटे और भरोसा कायम रहें। यदि अब प्रधानमंत्री जी सामने आकर प्रेस के साथ बगैर पूर्वाग्रह से बात नही करते तो उन पर से भी भरोसा उठ जाएगा। यह नितांत जरूरी ही नही बल्कि आवश्यक है क्योंकि महामहिम राष्ट्रपति जी की ओर से कोई ऐसी सम्भावना नजर नही आ रही, क्योकि उनकी स्थिति से हम सब अवगत ही है।
प्रेस से बात ना करना पूरी मीडिया और जनभावनाओं का सार्वजनिक अपमान है। हमें मालूम है कि रविश कुमार से बात करने की हिम्मत नही आपकी पर और लोग भी है विदेशी मीडिया भी है जिसकी समझ मे आप अवतार है ही।
आज आप हिम्मत करिये और शाम को 7 बजे या कल सुबह पूरे देश के सामने प्रेस से लाइव बात करिये, यह सिर्फ जस्टिस लोया के हत्यारों को बचाने की बात नही बल्कि हम सबकी भावनाओं, आस्थाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के अक्षुण्णता की भी बात है।
यह निवेदन मैं बगैर किसी पूर्वाग्रह या विचारधारा के तहत नही बल्कि इस देश के जिम्मेदार और संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के तहत और सूचना के अधिकार कानून के तहत जानना चाहता हूँ कि आखिर क्यों ऐसी नौबत आई कि एक नही चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों को जनता के सामने, मीडिया के सामने आकर 7 पृष्ठ की पीड़ा जारी करना पड़ी कि देश मे कुछ भी ठीक नही चल रहा। मैं दुखी हूँ और आहत हूँ क्योकि न्यायपालिका के निर्णयों से नीतियां प्रभावित होती है जो मेरे जीवन पर सीधा असर डालती है।
आशा है आप इस नम्र निवेदन को स्वीकार करेंगें।
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