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यह नटखट था ही ऐसा



कुछ यूँही चलते चलते........

यह नटखट था ही ऐसा कि बरबस ही ध्यान खींच लिया इसने आज, गनेशधाम इंदौर की एक आंगनवाडी में ...... नाम था रूद्र , शुरू में थोड़ा रोया, फिर मुस्कुराया और फिर हंसने लगा और अंत में मुझे जीभ दिखाकर ताली पीटने लगा..........बस आते समय जी भरकर आशीष देकर आया हूँ आज कि रूद्र बाबू, खुश रहो, लम्बी उम्र जियो और जमाने को जीभ दिखाते रहो मुस्कुराते हुए !!! किसने कहा कि मॉडल बेबी बड़े और अच्छे घरों में पाए जाते है...........? बस ये ही बच्चे तो हमारी धरोहर है ...........

इंदौर 26 फरवरी 15 




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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

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