Skip to main content

"इस तरह मरते है हम" - पाब्लो नेरुदा




************************
मरना शुरू होता है धीरे से
जब तक शुरू ना हो एक यात्रा 
शुरू नहीं करते बांचना जीवन का ककहरा
सुनना शुरू नहीं करते जीवन संगीत और अनहद नाद
शुरू नहीं करते पहचानना अपने आपको
इस तरह मरना शुरू करते है धीमे से
मार देते है जब अपने जमीर को
बंद कर देते है दूसरों से मदद लेना अपने लिए
तो मरना शुरू करते हो आप
अपनी बनाई आदतों के गुलाम बनते हुए
एक ही पथ पर चलाते हुए जीवन को
अगर नहीं बदलते ढर्रा अपना रोजमर्रा का
नहीं खोज पाते जीवन के रंग बिरंगी संसार को
मुखातिब नहीं होते अगर अनजान लोगों से
तो यकीन मानिए आप मरना शुरू कर रहे हो
जान ना पायें अपने आप को और अनजान रहे अपनी ही प्रकृति से
उद्दाम और अशांत भावों को समझने में असमर्थ
समझाने में उन्हें, जिनको देखकर खुद की ही आँखों में चमक आ जाती है
अपनी तेज साँसों के स्पंदन को ह्रदय में उछलता महसूस करो
तब हो जाता है मरना शुरू
असंतुष्टि भी नहीं बदल पाती जीवन का एकाकी राग
पगुराए प्रेम से व्यथित होकर भी नहीं बदलना चाहते
अनिश्चित कल के लिए जोखिम लेने को तत्पर ना हो
दौड़ ना जाएँ एक पनीले स्वप्न के पीछे
भागे ना हो महत्वपूर्ण क्षणों के अवसर पर एक बार भी जीवन में
कुछ ऐसा करने कि जो दिल ने चाहा करें और चाहे
दिमाग कहें कि चढ़ती धुप में एक मदमस्त बेखौफ घोड़े को ना दौडाओ
(अंग्रेजी से अनुवाद संदीप नाईक) मूल कविता का सौजन्य Manoj Pande
Ashish Retarekar भाई यह अनुवाद सिर्फ तुम्हारे लिए

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...