I
सर पर यादों की पोटली
आँखों में गीले सपनो की चमक
होठों पर निशब्द प्रार्थनाएं
दिल में ज्वर का हिलोर
और पाँव मुड़ रहे है आसमान में
समय धीरे धीरे थम रहा है
और सब कुछ खत्म हो रहा है
ये प्रस्थान बिंदु है ठहरता सा
जीभ पर कुछ पिघलता है
चेहरे की झुर्रियां काँप जाती है
हाथों पर रोएँ सिसक उठे है
नदी शांत है समुद्र में मिलकर
एक नीम बेहोशी में है पीपल
झींगुर गश खाकर गिरे है यही
जुगनू रात में बूझ गए है और
इस समय में एक आत्मा दीप्त है.
II
सिर्फ एक मुट्ठी गीले सपने लेकर
तुम तक आया था
सूख गए सब यहां तक आते आते ...
अब आँखों में धूल है,
सर पर सपनो की दहशत
और दिल में
कुछ नदियां अब भी बह रही है
अपनी सुनहरी रेत के सायों में
मानो ख़ौफ़ज़दा रातों में अँधेरे को चीरकर
फिर से सूरज निकलेगा.
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