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Posts of 24 Sept 15


I

सर पर यादों की पोटली
आँखों में गीले सपनो की चमक
होठों पर निशब्द प्रार्थनाएं 
दिल में ज्वर का हिलोर 
और पाँव मुड़ रहे है आसमान में 
समय धीरे धीरे थम रहा है
और सब कुछ खत्म हो रहा है
ये प्रस्थान बिंदु है ठहरता सा
जीभ पर कुछ पिघलता है
चेहरे की झुर्रियां काँप जाती है
हाथों पर रोएँ सिसक उठे है 
नदी शांत है समुद्र में मिलकर 
एक नीम बेहोशी में है पीपल
झींगुर गश खाकर गिरे है यही 
जुगनू रात में बूझ गए है और 
इस समय में एक आत्मा दीप्त है.


II


सिर्फ एक मुट्ठी गीले सपने लेकर 
तुम तक आया था
सूख गए सब यहां तक आते आते ...
अब आँखों में धूल है, 
सर पर सपनो की दहशत 
और दिल में
कुछ नदियां अब भी बह रही है 
अपनी सुनहरी रेत के सायों में
मानो ख़ौफ़ज़दा रातों में अँधेरे को चीरकर 
फिर से सूरज निकलेगा.





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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

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