ये है मातिहास, फ्रांस के सुदूर कोने से हिन्दुस्तान आया है और कुपोषण का डाक्टर है यहाँ के बच्चों के बारे में बहुत चिंतित है बहुत लंबा और गहरा काम है इसका. राजस्थान और मप्र के दूर दराज के क्षेत्रों में भरी गर्मी में घूम घूम कर लोगों को समझाता है और हर रोज दस से बीस डाक्टरों से मिलकर समझाईश देता है. मप्र में सरकारी अस्पतालों में बने पोषण पुनर्वास केन्द्रों में जाकर काम करने वालों की मदद करता है. "मै यहाँ काम करने आया हूँ, मै आंकड़े इकठ्ठे करके किसी अखबार में लेख नहीं लिखूंगा और अपनी रोजी रोटी कुपोषण से नहीं चलाउंगा, मेरे लिए दुनिया पडी है और एक लंबी उम्र भी...... ना ही मै कुपोषण की घटिया राजनीती में पडना चाहता हूँ, इस देश में मीडिया और एनजीओ ने बच्चों की मौत और वो भी कुपोषण से होने वाली मौतों को अपनी रोजी रोटी का धंधा बना लिया है और मीडिया में भी यही हो रहा है लोग बड़े-बड़े लेख लिखकर मालदार बन रहे है जो कि बहुत ही गंदी सोच का परिचायक है" मातिहास कहता है.
कितना सच कह रहा है यह बन्दा आप बताएं पर मुझे उसकी बात में कोई शक नजर नहीं आता. इसे मैंने बुरहानपुर में पकड़ा जहां यह गरीब लोगों के साथ बात कर रहा था....और कुपोषित बच्चों को स्वस्थ रखने के तरीके वो भी विशुद्ध भारतीय तरीके सीखला रहा था.
यह वही बन्दा है जो कहता है कि यूनिसेफ ने डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों के नाम पर और तैयार पदार्थों में दवाएं और कई प्रकार के रसायन मिलाकर बाजार में एक अनोखी प्रतिस्पर्धा खड़ी कर दी है. पूरी दुनिया को यूनिसेफ यह RUTF बेचकर अपनी दूकान चलाना चाहता है जो कि इसके दूषित मानसिकता में है, पहले भी यूनिसेफ ने टीकाकरण के नाम पर गरीब देशों को महंगे टीके बेचे और डर दिखाकर अब एच आई वी और एड्स के रूपये भी ऐसी युएन संस्थाएं हड़प जाना चाहती है. कहता है कि इतनी मोटी तनख्वाह लेकर इन लोगों की कितनी प्रतिबद्धता बचती है. दिल्ली में रहकर यह देश भर में घूमता है और अब उड़ीसा जाकर वहाँ के कुपोषण के मुद्दों को हल करने ख्वाब संजो रहा है.......आमीन.........
हम जैसों से तो यह बन्दा जोरदार है जो सिर्फ नारे नहीं लगाता बल्कि ठोस काम कर रहा है, कुपोषण को बेचता नहीं बल्कि उसकी जड़ में जाकर मदद करने की मंशा के साथ लोगों के साथ काम कर रहा है.
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नरेंद्र मौर्य